लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं मिली सफलता, विदुर बताएंगे कारण

Edited By Jyoti,Updated: 03 Jun, 2020 01:53 PM

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जिस तरह से आचार्य चाणक्य को उनके ज्ञान और नीतियों के माध्यम से जाना जाता है ठीक उसी तरह महाभारत के एक ऐसे पात्र हैं जिन्होंने अपने ज्ञान के दम समाज में अपनी पहचान बनाई।

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जिस तरह से आचार्य चाणक्य को उनके ज्ञान और नीतियों के माध्यम से जाना जाता है ठीक उसी तरह महाभारत के एक ऐसे पात्र हैं जिन्होंने अपने ज्ञान के दम समाज में अपनी पहचान बनाई। इससे पहले कि आप सोचने लगे कि कौन हैं वो महान विभूति तो बता दें इन्हें प्राचीन काल में महात्मा विदुर के नाम से जाना जाता था। जिन्होंने महाभारत के युद्ध में अपनी खास भूमिका निभाई थी। जी नहीं, आपको बता दें युद्ध तो नहीं लड़ा था, मगर इन्होंने युद्ध से संबंधित ऐसी-ऐसी धृतराष्ट्र को बताई थी। जो न केवल उस ससय उपयोगी मानी गईं बल्कि आज भी अगर कोई महात्मा विदुर की इन नीतियों को अपने जीवन में उतार लें तो व्यक्ति अपने जीवन के कईं ऐसे मंजरों से निकल जाता है जहां से निकलना उसके लिए आसान होता। बता दें इन्होंने अपने नीति शास्त्र जिसे विदुर नीति के नाम से जाना जाता है में हर तरह की नीति के बारे में बताया है। तो चलिए जानते हैं इनकी उस नीति के बारे में जिसमें इन्होंने बताया है कि सफल होने का राज़ क्या है। 
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त्याग दें अहंकार 
विदुर जी कहते हैं कि अहंकार व्यक्ति का पतन करने में सबसे अहम रोल निभाता है। अगर इसके उदाहरण की बात की जाए तो हिंदू धर्म के शास्त्रों में ऐसे कई पात्र इसकी सटीक उदाहरण है। फिर चाह वो रावण हो, कंस या फिर हिरणाकश्यप।  

वाणी पर संयम होना आवश्यक
कुछ लोग न चाहकर भी ऐसी कुछ बातें बोल देेते हैं जिससे सामने वाले को न केवल बुरा लगता है बल्कि उन शब्दों का कई बार उस व्यक्ति पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ जाता है। इसलिए कहा जाता है हर व्यक्ति को बोलने से पहले सोच-विचार कर लेना चाहिए ताकि आपके शब्द किसी के दल को ठेस न पहुंचाए।  
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अपने आप में रखें त्याग की भावना 
कहा जाता जो मनुष्य अपने आप में त्याग की भावना रखता है, उसे समाज में श्रेष्ठता का दर्जा प्राप्त होता है। इतना ही नहीं इन्हें पूजनीय और वंदनीय भी माना जाता है। इसकी उदाहरण है मर्यादा पुरुषोत्त्म भगवान श्री राम जिन्होंने अपने पिता का वचन पालन करने के लिए अयोध्या का राज पाट तक त्यागा दिया था। 

ये हैं मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु
विदुर जी से अनुसार लालच और स्वार्थ मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं। कहा जाता है जिस व्यक्ति के भीतर लालच और स्वार्थ होता है वह व्यक्ति कभी किसी की नज़रों में अच्छा नहीं बन सकता। तो वहीं लालच और स्वार्थ से कोई मनुष्य अगर सफलता पा भी लेता है, मगर उसका शीघ्र ही पतन होने लगता है।  

इससे भी बनाएं दूरी 
विदुर जी कहते हैं कि क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन बनाता है। इसके कारण ही इंसान में हिंसा जन्म का जन्म होता है। कहा जाता है क्रोधी व्यक्ति सदा दूसरों से लड़ता झगड़ता ही रहता है। जिसके चलते समाज में उसकी छवि नकारात्मक हो जाती है, और उसके साथ धीरे-धीरे करके सभी अपना संबंध खत्म कर देतें हैं। 
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