Edited By Jyoti,Updated: 28 Sep, 2019 12:25 PM
आज यानि अश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या के साथ-साथ शनि अमावस्या मनाई जा रही है। इस दिन एक तरफ़ जहां देश भर में पितर तर्पण किया जाता तो दूसरी ओर शनि देव की कृपा पाने के लिए विभिन्न तरह से उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी।
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आज यानि अश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या के साथ-साथ शनि अमावस्या मनाई जा रही है। इस दिन एक तरफ़ जहां देश भर में पितर तर्पण किया जाता तो दूसरी ओर शनि देव की कृपा पाने के लिए विभिन्न तरह से उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी। हिंदू धर्म के तमाम देवी-देवताओं की तरह शनि देव को अधिक महत्व प्रदान है। बता दें शनि देव तो नवग्रहों में भी स्थान प्राप्त है। बल्कि ये एकलौते ऐसे ग्रह स्वामी हैं जिन्हें न्याय के देवता कहा जाता है। कहा जाता सूर्य पुत्र शनि देव हमेशा जातक को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। कहा जाता है जो व्यक्ति न्याय के मार्ग पर चलता है, उस पर कभी शनि देवता की कुदृष्टि नहीं पड़ती। बल्कि कहा जाता है कि इनका साथ मिलने पर इंसान दिनों में रंक से राजा बन जाता है।
परंतु वहीं अगर जातक गलत मार्ग पर चलने लगता है कि उसे इनके कुप्रभाव का सामना करना पड़ता है। जिससे जातक की लाइफ ऐसी उथल-पुथल हो जाती है कि उसके आगे पीछे केवल परेशानियां ही परेशानियां रह जाती हैं। यही कारण है कि हर कोई इनके नाम से ही थर-थर कांपने लगता है। मगर आपको बता दें इनके दुप्रभाव को शुभ फलों में बदला जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में किसी भी तरह का शनि दोष हो तो उसे निरतंर शनि देव के मंदिर जाकर उन पर तेल चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा शनि अमावस्या पर इनका तेल से अभिषेक करना चाहिए। तो अगर आप अपनी कुंडली में पैदा शनि दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं आज यानि शनि अमावस पर किसी भी शनि मंदिर में जाकर इन पर तेल ज़रूर अर्पित करें।
अब ये तो हुई बात शनि देव के कुप्रभाव से बचने के खास उपाय की। अब बात करते हैं कि आख़िर हमेशा शनि देव को प्रसन्न करने के लिए क्यों हमेशा इसी उपाय को अपनाया जाता हैतो आइए जानते है शनि देव पर तेल चढ़ाने का पौराणिक कारण-
ऐसा कहा जाता है कि श्री वाल्मीकि जी ने वाल्मीकि रामायण के अलावा आनंद रामायण की भी रचना की थी। जिसकी एक कथा के मुताबिक लंका पर चढ़ाई के लिए समुद्र पर जिस सेतु पुल का निर्माण किया गया था उसकी सुरक्षा का दायित्यव राम जी ने अपने प्रिय भक्त हनुमान जी को सौंपा था। एक रात हनुमान जी भगवान श्रीराम का ध्यान करते हुए सेतु पुल की रक्षा कर रहे थे कि वहां अचानक शनि देव आ पहुंचे और हनुमान जी को व्यंग्यबाणों से परेशान करने लगे।
हनुमान जी ने शनि देव के सारे आरोपों को स्वीकार करते उनसे कहा कि कृपया वह वे उन्हें सेतु की रक्षा करने दें। परंतु शनि देव नहीं माने और हनुमान जी को परेशान करने लगे। क्रोधित होकर हनुमान जी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में जकड़ कर इधर-उधर पटकना शुरू कर दिया। जिससे शनि देव को बहुत पीड़ा हुई इसी पीड़ा से बचने के लिए शनि देव ने अपने शरीर पर तेल का लेप लगाया, जिससे उनकी पीड़ा तुरंत दूर हो गई। ऐसा कहा जाता है तभी से शनि देव को तेल चढ़ाने की परम्परा शुरू हो गई जो आज तक जीवंत है।