Lala Jagat Naryan Story: यहां से शुरू हुआ लाला जगत नारायण द्वारा पुलिस के विरुद्ध संघर्ष का प्रारम्भ

Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 May, 2024 07:33 AM

lala jagat naryan story

कालेज के शिक्षा-वर्षों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ऐसा घटनाचक्र उभरा, जिसने जगत नारायण की भावी जीवन-दिशा पर प्रभाव डाला। प्रथम विश्व युद्ध इनमें सर्वोपरि था। न चाहते हुए भी भारत को इस विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करनी

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Lala Jagat Naryan Story: कालेज के शिक्षा-वर्षों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ऐसा घटनाचक्र उभरा, जिसने जगत नारायण की भावी जीवन-दिशा पर प्रभाव डाला। प्रथम विश्व युद्ध इनमें सर्वोपरि था। न चाहते हुए भी भारत को इस विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करनी पड़ी। आशा व अपेक्षा थी कि इसके बाद ब्रिटिश सरकार भारतीयों की स्वाधीनता की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी, परन्तु हुआ इसके विपरीत।

‘रोलैट एक्ट’ जैसे दमनकारी कानून का सहारा लेकर ब्रिटिश सरकार ने दमन चक्र चलाया। इस एक्ट का देशव्यापी विरोध हुआ। 1919 में सत्याग्रह सभा से प्रारम्भ हुआ इसका विरोध देश भर में फैल गया।

पंजाब में भी इसका काफी प्रभाव हुआ। 29 मार्च, 1919 को लाहौर के कॉलेज के छात्रावासों में रात को भोजन नहीं बना। सभी विद्यार्थी 24 घंटों के उपवास पर थे। डी.ए.वी. कालेज, लाहौर के बाहर भी सूचना चिपका दी गई थी कि 30 मार्च को सभी विद्यार्थी काली पगड़ी बांध कर व नंगे पांव चल कर प्रदर्शन करते हुए ब्रैडला हॉल पहुंचेंगे। जगत नारायण ने अभी पगड़ी बांधनी नहीं सीखी थी। वह टोपी पहन कर ही चल पड़े।

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महात्मा गांधी गिरफ्तार कर लिए गए। रोष की लहर और तीव्र हो गई। फिर आया 13 अप्रैल, 1919 का काला मनहूस दिन। अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के खून से होली खेली। हजारों व्यक्ति गोलियों का शिकार हो गए। लाहौर में भी कफ्र्यू लगा दिया गया, परन्तु अंग्रेज जितना स्वतंत्रता की भावना दबाना चाहते थे, उतनी ही यह आग और भड़कने लगी-आजादी के दीवाने, मस्ताने व परवाने बोल उठे-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है काोर कितना बाकाुए कातिल में है।

यह वह समय था जब जगत नारायण बी.ए. (अंतिम वर्ष) की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। पिछले एक महीने से वह लाहौर के एक भाग शाहदरा में अपनी पढ़ाई में जुटे हुए थे। इस हृदय विदारक नरसंहार से उनके युवा मन पर गहरा आघात लगा। वह क्षुब्ध हो उठे।

फिर एक अन्य ऐसी ही घटना उनकी आंखों के सामने घटी। एक मामूली से अपराध के कारण लाहौर के किले के समीप एक नवयुवक की पुलिस द्वारा की गई नृशंस हत्या ने उन्हें बुरी तरह से विचलित कर दिया। उन्हें ब्रिटिश सरकार के दमन की निर्दयता व पाशविकता का बोध हो गया।

‘मार्शल-ला’ लागू करने के लिए ब्रिटिश शासन की ओर से यह आदेश दिया गया कि प्रत्येक विद्यार्थी दो घंटों के लिए ड्यूटी देगा। ब्रिटिश शासकों का नया आदेश हुआ कि प्रत्येक विद्यार्थी दिन में चार बार ब्रैडला हॉल जाकर ब्रिटिश साम्राज्य के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को सलाम करे। यदि किसी विद्यार्थी ने ऐसा करने में कोई ढील दिखाई या आना-कानी की तो सीधे गोली मार देने का आदेश था। जगत नारायण के जीवन में ऐसा अवसर पहले कभी नहीं आया था। ऐसी अपमानजनक स्थिति से बचने के लिए उन्होंने लायलपुर जाने का मन बना लिया। निर्णय खतरे से खाली नहीं था।

यह प्रारम्भ था जगत नारायण का पुलिस के विरुद्ध संघर्ष का। तीन दिनों की पैदल यात्रा करके वह लाहौर से लायलपुर पहुंचे। माता-पिता अपने बेटे जगत नारायण को इस प्रकार अचानक पहुंचा देख आश्चर्य में पड़ गए, परन्तु जब उन्हें पूरी बात का पता चला तो उन्होंने इस पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की क्योंकि इससे पढ़ाई समाप्त होने की आशंका थी। उन्होंने जगत नारायण को समझाया-बुझाया पर व्यर्थ। उनकी आयु इस समय 20 वर्ष की रही होगी। लाहौर से पुलिस उनके नाम गिरफ्तारी का वारंट लेकर लायलपुर आ गई। माता-पिता के लिए यह सब अप्रत्याशित था। उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कभी ऐसी स्थिति भी आ सकती है।

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जगत नारायण को भली-भांति ज्ञात था कि अब लाहौर में उनके साथ क्या होगा। पुलिस उन्हें लाहौर ले आई तथा पुन: होस्टल में सैनिक अधिकारियों के हवाले कर दिया। सार्वजनिक रूप से डंडों से पिटाई भी की गई, परन्तु इस अपमान भरी पीड़ा ने उन्हें ब्रिटिश दासता से मुक्त होने के लिए दृढ़ बना दिया।

यह पहला अवसर था जब उनके हृदय में विद्रोह की चिंगारी ज्वाला बन कर भड़क उठी और वह धीरे-धीरे स्वतंत्रता-संग्राम की आग में कूद पड़े। चाहे उन्होंने न ऐसा चाहा हो तथा न सोचा हो परन्तु उनकी भावी नियति भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक की ही थी।

ब्रिटिश दमनचक्र अब विद्यार्थियों  के विरुद्ध और उग्र रूप धारण कर गया। लाहौर में मार्शल ला के प्रशासक लैफ्टीनैंट कर्नल फ्रैंक जॉनसन ने विद्यार्थियों  को आदेश दिया कि वे दिन में चार बार अधिकारियों के सामने हाजरी दें। कई बार ऐसा करने के लिए विद्यार्थियों  को तपती दोपहर में मीलों पैदल चल कर आना पड़ता था। इतना ही नहीं, मनमाने ढंग से विद्यार्थियों को कालेज से निकाल देना, उनकी वरिष्ठता समाप्त कर देना या फिर उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद कर देना, उन पर कोड़े बरसाना आदि अन्य कई प्रकार की मानसिक व शारीरिक यातनाएं भी विद्यार्थियों को दी जाती थीं। इनके विरुद्ध प्रदर्शन भी होते रहते थे, जिनका नेतृत्व डा. गोकुल चंद नारंग व लाला दूनी चंद जैसे नेता या फिर महाशय कृष्ण व काली नाथ राय जैसे पत्रकार करते थे।

स्थिति सुखद नहीं थी। संघर्ष, दमन और विरोध भरे वातावरण में जैसे-तैसे अधिकारियों ने बी.ए. की परीक्षा करवाई। जगत नारायण ने बी.ए. की परीक्षा पास कर ली। उन दिनों बी.ए. की उपाधि प्राप्त करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि समझी जाती थी। बी.ए. के बाद जगत नारायण एक बार फिर लाहौर जाकर लॉ कालेज में वकालत की शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। 1920 में उन्होंने लॉ कालेज, लाहौर में प्रवेश ले लिया। वकालत की पढ़ाई शुरू भी कर दी, परन्तु आगे होना तो कुछ और ही था। विधाता का निर्देश तो अलग ही था।      

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