Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 May, 2024 07:47 AM

बात उस समय की है जब मोहनदास करमचंद गांधी सातवीं कक्षा में पढ़ते थे। स्कूल के प्रधानाचार्य बहुत अनुशासन प्रिय थे और उन्होंने विद्यार्थियों के लिए व्यायाम, खेल-कूद अनिवार्य कर रखा था। मोहनदास को इनमें बिल्कुल
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Mohandas Karamchand Gandhi Story: बात उस समय की है जब मोहनदास करमचंद गांधी सातवीं कक्षा में पढ़ते थे। स्कूल के प्रधानाचार्य बहुत अनुशासन प्रिय थे और उन्होंने विद्यार्थियों के लिए व्यायाम, खेल-कूद अनिवार्य कर रखा था। मोहनदास को इनमें बिल्कुल दिलचस्पी नहीं थी और वह किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लेते थे।
छुट्टी होने पर मोहनदास स्कूल से सीधे घर भागते थे क्योंकि उन्हें अपने पिता की देखभाल करनी होती थी। अगर वह स्कूल में पढ़ाई के बाद खेलकूद के लिए रुकते तो समय से अपने पिता की देखभाल के लिए घर नहीं पहुंच पाते। मोहनदास ने प्रधानाचार्य से इस कारण खेलकूद में भाग लेने से छूट मांगी।
हालांकि उनकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की गई। एक शनिवार को खेलकूद के लिए मोहनदास को सायं 4 बजे स्कूल जाना था। मोहनदास के पास घड़ी नहीं थी और उस दिन आसमान में बादल छाए हुए थे। इसके चलते ठीक समय का उन्हें पता नहीं चला। जब वह स्कूल पहुंचे, सभी लड़के वापस जा चुके थे।
दूसरे दिन प्रधानाचार्य ने मोहनदास से खेलकूद में शामिल न होने का कारण पूछा। यद्यपि मोहनदास ने सही-सही कारण बता दिया फिर भी प्रधानाचार्य ने विश्वास नहीं किया और झूठ बोलने के लिए उन पर दो आने का जुर्माना कर दिया।

मोहनदास को बड़ी पीड़ा पहुंची कि उनके अध्यापक ने उन्हें झूठा समझा। बाद में मोहनदास के पिता द्वारा पत्र लिखे जाने पर कि मोहनदास स्कूल शाम को गया था और घड़ी न होने की वजह से ठीक समय का पता नहीं चल पाया था। जुर्माना माफ कर दिया गया।
बालक मोहनदास ने तब समझा कि सच बोलने के साथ-साथ समय की पाबंदी भी आवश्यक है।
