Edited By Jyoti,Updated: 24 Jun, 2021 02:58 PM
इनमें से कई मंदिर ऐसे हैं जिनके रहस्य से आज तक कोई भी पर्दा नहीं उठा पाया है यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिस का र
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हमारे देश में अनगिनत मंदिर व धार्मिक स्थल हैं, जिनमें कई मंदिर ऐसे हैं जिनके रहस्य से आज तक कोई भी पर्दा नहीं उठा पाया है यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिस का रहस्य अपने आप में अचंभित करने वाला है। जी हां असल में जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वह मंदिर मध्य प्रदेश में स्थित है जिसे लेकर मान्यताएं प्रचलित है कि इस मंदिर में जलने वाली ज्योत तेल से नहीं बल्कि पानी से जलाई जाती है। आपको जानकर यह हैरान की तो जरूर हुई होगी लेकिन इस मंदिर से जुड़ी तमाम प्रचलित मान्यताएं यही कहती है।
बता दें मध्य प्रदेश के कालीसिंध नदी के किनारे स्थित आगर मालवा के नलखेड़ा गांव से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर गाड़िया गांव के पास यह मंदिर स्थित है, जिसे गड़ियाघाट वाली माता जी के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि प्राचीन समय में यहां हमेशा तेल का दीपक जला करता था परंतु कुछ वर्ष पहले माता ने मंदिर के एक पुजारी को सपने में दर्शन देकर जहां पानी से दीपक जलाने के लिए कहा।
जिसके बाद सुबह पुजारी ने कालीसिंध नदी से पानी भर कर दिए में डाला। जब दीए में रखी हुई रुई के पास जैसे ही चलती हुई माचिस ले जाई गई वैसे ही ज्योत जलने लगी। पुजारी यह दृश्य देखकर खुद घबरा गया और लगभग 2 महीने तक उसने इस बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताया। परंतु जब उसने इस बारे में ग्रामीणों को बताया तो पहले तो उसकी बात पर किसी ने यकीन नहीं किया परंतु जब उन्होंने भी दिए में पानी डालकर ज्योत जलाई तो जल उठी। इसके बाद इस चमत्कार की चर्चा पूरे गांव में फैल गई। कहा जाता है तब से लेकर आज तक इस मंदिर में कालीसिंध नदी के पानी से ही दिए जलाए जाते हैं। लोकमत है कि जब दीए में पानी डाला जाता है तो वह एक चिपचिपे तरल पदार्थ में बदल जाता है और दीए में रखी लौ जलने लगती है।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि पानी से जलने वाली यह ज्योत बारिश के मौसम में नहीं जलती है। क्योंकि बरसात के मौसम में पानी का स्तर बढ़ने के कारण काली सिंध नदी के पानी से यह मंदिर डूब जाता है जिससे यहां पूजा करना संभव नहीं होता। इसलिए शारदीय नवरात्रि के पहले दिन के साथ यहां दोबारा ज्योत जलाई जाती है जो अगले वर्ष बारिश के मौसम तक जलती रहती है।