Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Jan, 2018 01:45 PM
एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला, ‘‘गुरुदेव, मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है। मैंने शास्त्रों का काफी ध्यान से अध्ययन किया है। फिर भी मेरा मन किसी काम में नहीं लगता।
एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला, ‘‘गुरुदेव, मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है। मैंने शास्त्रों का काफी ध्यान से अध्ययन किया है। फिर भी मेरा मन किसी काम में नहीं लगता। जब भी कोई काम करने के लिए बैठता हूं तो मन भटकने लगता है और मैं उस काम को छोड़ देता हूं। इस अस्थिरता का क्या कारण है? कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिए।’’
संत ने उसे रात तक इंतजार करने के लिए कहा। रात होने पर वह उसे एक झील के पास ले गया और झील के अंदर चांद के प्रतिबिंब को दिखाकर बोले, ‘‘एक चांद आकाश में और एक झील में, तुम्हारा मन इस झील की तरह है। तुम्हारे पास ज्ञान तो है लेकिन तुम उसको इस्तेमाल करने की बजाए सिर्फ उसे अपने मन में लेकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चांद का प्रतिबिंब लेकर बैठी है। तुम्हारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है जब तुम इसे व्यवहार में एकाग्रता और संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो। झील का चांद तो मात्र एक भ्रम है।
तुम्हें अपने काम में मन लगाने के लिए आकाश के चंद्रमा की तरह बनना है, झील का चांद तो पानी में पत्थर गिराने पर हिलने लगता है जिस तरह तुम्हारा मन जरा-जरा सी बात पर डोलने लगता है। तुम्हें अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियमपूर्वक लाना होगा और अपने जीवन को सार्थक व लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा (खुद को आकाश के चांद के बराबर बनाओ)। शुरू में थोड़ी परेशानी आएगी, पर कुछ समय बाद ही तुम्हें इसकी आदत हो जाएगी।