Edited By Jyoti,Updated: 13 Jun, 2019 04:02 PM
14 जून को इस माह का मासिक प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त के समय को ‘प्रदोष’ कहा जाता है। बता दें यह व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है।
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14 जून को इस माह का मासिक प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त के समय को ‘प्रदोष’ कहा जाता है। बता दें यह व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इसलिए इस दौरान इनका यानि महादेव का पूजन-अर्चन करने का अधिक महत्व होती है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई सच्ची श्रद्धा-भाव से भगवान शिव की पूजा करना चाहता हो तो इसके लिए सबसे उत्तम समय प्रदोष काल ही होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रात्रि के आगमन के बीच का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस काल में की गई शिव की अराधना इंसान की हर अधूरी कामना पूरी करती है। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें-
प्रदोष काल में नृत्य करते हैं महाकाल-
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रदोष काल में देवों के देव महादेव कैलाश पर्वत पर डमरु बजाते हुए अत्यन्त प्रसन्नचिेत होकर ब्रह्मांड को खुश करने के लिए नृत्य करते हैं। बाकि समस्त देवी-देवता इस दौरान शिव शंकर की स्तुति करने के लिए कैलाश पर्वत पर आते हैं। मां सरस्वती वीणा बजाकर, इन्द्र वंशी धारणकर, ब्रह्मा ताल देकर, माता महालक्ष्मी गाना गाकर, भगवान विष्णु मृदंग बजाकर भगवान शिव की सेवा करते हैं। यक्ष, नाग, गंधर्व, सिद्ध, विद्याधर व अप्सराएं भी प्रदोष काल में भगवान शिव की स्तुति में लीन हो जाते हैं। शास्त्रानुसार प्रदोष व्रत रखने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं बल्कि प्रदोष काल में शिव जी की प्रार्थना करता है तो उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है, वह सदैव निरोग रहता है।
ऐसे करें प्रदोष काल में शिव पूजा
सूर्यास्त से 15 मिनट पहले स्नान कर धुले हुए सफ़ेद वस्त्र पहनकर भोलेनाथ को पहले शुद्ध जल से फिर पंचामृत से स्नान करवाएं। पुन: शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, अक्षत, इत्र, अबीर-गुलाल अर्पित करें। फिर मंदार, कमल, कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल व बेलपत्र चढ़ाएं, इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल व दक्षिणा चढ़ाकर आरती के बाद पुष्पांजलि समर्पित करें।
अपनी हर अधूरी कामना को पाने के लिए इस मंत्र का जाप करें-
भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शशिमौलिने।।
उग्रायोग्राघ नाशाय भीमाय भयहारिणे।
ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नम:।।