Edited By Jyoti,Updated: 25 Jun, 2020 10:31 AM
ईश्वरचंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक सवेरे उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया।
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ईश्वरचंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक सवेरे उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाए देख उनके मन में करुणा उमड़ी। वे तुरन्त घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी माता जी से कहा कि वे उस भिखारी को कुछ दे दें। माता जी के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। उन्होंने अपना कंगन उतार कर ईश्वर चंद विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा, ‘‘जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे उस दिन मेरे लिए दूसरा बनवा देना, अभी इसे बेचकर जरूरतमंदों की सहायता कर दो।’’
बड़े होने पर ईश्वरचंद विद्यासागर ने अपनी पहली कमाई से अपनी माता जी के लिए सोने के कंगन बनवा कर ले गए और उन्होंने माता जी से कहा, ‘‘मां! आज मैंने बचपन का तु हारा कर्ज उतार दिया।’’
उनकी माता जी ने कहा, ‘‘बेटे! मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पाएगा, जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे।’’
माता जी की सीख ईश्वरचंद विद्यासागर के दिल को छू गई और उन्होंने प्रण किया कि वे अपना जीवन गरीब-दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट दूर करने में व्यतीत करेंगे और उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसा ही किया।
शिक्षा : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि महापुरुषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढ़ने के लिए वे कई कष्ट और कठिनाइयों के दौर से गुजते हैं और हर महापुरुष का जीवन कहीं न कहीं अपनी मां की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित रहता है। संकलन-संतोष चतुर्वेदी