Edited By Jyoti,Updated: 07 Apr, 2020 10:59 AM
जीवन में क्या सही है और क्या गलत, इसे लेकर कई बार लोग अस्पष्टता या संशय की स्थिति में दिखाई पड़ते हैं।
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जीवन में क्या सही है और क्या गलत, इसे लेकर कई बार लोग अस्पष्टता या संशय की स्थिति में दिखाई पड़ते हैं। जिन लोगों की सोचने और समझने की क्षमता अपेक्षाकृत बहुत ही क्षीण होती है उनके बारे में माना जा सकता है कि उनके लिए वास्तव में सही और गलत में भेद करना आसान नहीं होता है।
मनुष्य में अंतर्निहित अच्छाई के मद्देनजर इस बात के लिए कुछ लोगों पर विश्वास भी किया जाना चाहिए। लेकिन बाकी सभी लोगों द्वारा इस स्थिति का फायदा उठाने की चेष्टा अनुचित भी है और अतार्किक भी। वजह यह है कि जहां कुदरत ने प्रत्येक जीव की मूल प्रकृति में आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार दैहिक चिह्न समान रूप से समाहित किए हैं वहीं मानव को अतिरिक्त विवेक देकर अन्य जीवों से भिन्न और श्रेष्ठ बनाया है। यही विवेक मानव को धर्मसंगत आचरण करने की प्रेरणा देता है तथा सही-गलत और उचित-अनुचित के बीच भेद कर पाने की सूझबूझ भी प्रदान करता है।
इसका मतलब हुआ कि एक सामान्य मानव में स्वभावत: ही अच्छे और बुरे के बीच भेद कर पाने की योग्यता और क्षमता होती है जो उसे किसी भी कृत्य का विचार आते ही सुझा देती है कि क्या सही है और क्या गलत। जो लोग सामान्य विवेक के इस संकेत को समझ लेते हैं वे अपने आचरण को धर्मसंगत बना लेते हैं। इसके विपरीत जो लोग तर्क-वितर्क की आड़ लेकर इस संकेत को दबा देते हैं उनके लिए सही और गलत तथा उचित और अनुचित में फर्क कर पाना आसान नहीं रह जाता है। जो लोग कुदरत द्वारा आशीर्वाद स्वरूप मिले विवेक का इस्तेमाल करते हुए अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुरूप आचरण करते रहते हैं उन्हें यकीनन जीवन में कोई पछतावा नहीं रहता।