इस तरह हुआ एक क्रांतिकारी की बेटी का कन्यादान

Edited By Lata,Updated: 12 Nov, 2019 02:43 PM

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बात उस समय की है जब क्रांतिकारी रोशन सिंह को काकोरी कांड में मृत्युदंड दिया गया।

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बात उस समय की है जब क्रांतिकारी रोशन सिंह को काकोरी कांड में मृत्युदंड दिया गया। उनके शहीद होते ही उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में एक जवान बेटी थी और उसके लिए वर की तलाश चल रही थी। बड़ी मुश्किल से एक जगह बात पक्की हुई। कन्या का रिश्ता होते देख वहां के दारोगा ने लड़के वालों को धमकाया और कहा कि क्रांतिकारी की कन्या से विवाह करना राजद्रोह समझा जाएगा। इसके लिए आपको सजा भी हो सकती है, पर वर पक्ष वाले दारोगा की धमकियों से नहीं डरे और बोले, 'यह तो हमारा सौभाग्य होगा कि ऐसी कन्या के कदम हमारे घर में पड़ेंगे, जिसके पिता ने अपना शीश भारत माता के चरणों में रख दिया। वर पक्ष का दृढ़ इरादा देखकर दारोगा वहां से चला गया लेकिन किसी तरह इस रिश्ते को तोडऩे का उसका प्रयास जारी रहा।
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जब एक पत्रिका के सम्पादक को यह पता लगा तो वह आग बबूला हो गया। वह उस दारोगा के पास पहुंचकर बोला, 'मनुष्य होकर जो मनुष्यता ही न जाने वह भला क्या मनुष्य? तुम जैसे लोग बुरे काम कर अपना जीवन सफल मानते हैं। पर यह नहीं सोचते कि तुमने इन कर्मों से अपने आगे के लिए कितने कांटे बो दिए हैं। उन कांटों को तुम अभी से उखाडऩा भी शुरू करो तो अपने अंत तक न उखाड़ पाओगे। 

सम्पादक की बातें सुनकर दारोगा का मन बदल गया। उसने न सिर्फ कन्या की मां से माफी मांगी बल्कि शादी का सारा खर्च भी खुद उठाने को तैयार हो गया। कन्यादान के समय जब वधू के पिता का सवाल उठा तो वह सम्पादक अपने स्थान से उठे। उन्होंने कहा, 'रोशन ङ्क्षसह के न होने पर मैं कन्या का पिता हूं, कन्यादान मैं करूंगा। वह सम्पादक थे महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी।


 

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