Edited By Jyoti,Updated: 08 Apr, 2021 12:36 PM
आधुनिक हिंदी के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी उदारता के कारण लगभग कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया जब उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि
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आधुनिक हिंदी के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी उदारता के कारण लगभग कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया जब उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि आए हुए पत्रों का उत्तर भेज सकें। जो पत्र आते थे, उनके उत्तर लिख कर लिफाफे में बंद कर भारतेंदु जी मेज पर रख देते थे। उन पर टिकट लगाने को पैसे हों तो पत्र भेजे जाएं। उनकी मेज पर पत्रों की एक ढेरी एकत्र हो गई थी।
उनके एक मित्र ने उन्हें 5 रुपए के डाक टिकट लाकर दिए, तब वे लैटर बॉक्स में डाले गए। भारतेंदु जी ने मुसीबतों से हिम्मत नहीं हारी जिसका परिणाम यह हुआ कि कुछ समय बाद उनकी स्थिति थोड़ी ठीक हुई। जब-जब वह मित्र से मिलते थे, तब-तब भारतेंदु जी जबरदस्ती उनकी जेब में 5 रुपए डाल देते और कहते, ‘‘आपको स्मरण नहीं, आपके 5 रुपए मुझ पर ऋण हैं।’’
मित्र ने एक दिन कहा, ‘‘मुझे अब आपसे मिलना बंद कर देना पड़ेगा।’’
भारतेंदु बाबू के नेत्र भर आए। वे बोले, ‘‘भाई तुमने मुझे ऐसे समय पांच रुपए दिए थे कि मैं जीवन भर तुम्हें प्रतिदिन अब पांच रुपए देता रहूं, तो भी तुम्हारे ऋण से छूट नहीं सकता।’’
यह थी कृतज्ञता की पराकाष्ठा। अपने बुरे वक्त को मत भूलिए और बुरे वक्त में जिन लोगों ने आपकी मदद की उन्हें तो बिल्कुल मत भूलिए। ऐसा करना आपके उन्नति मार्ग को प्रशस्त करता है।