Edited By Jyoti,Updated: 18 Jul, 2022 10:48 AM
आगे बढ़ने की प्रबल कामना, ऊंचा उठने की प्रबल अभिलाषा जाग पड़ी एक किशोर के मन में। पैसों का अभाव और विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने का लम्बा खर्च। जैसे-तैसे किराया मात्र जुट सका। वहां पहुंच कर क्या होगा? कुछ अता-पता नहीं।
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आगे बढ़ने की प्रबल कामना, ऊंचा उठने की प्रबल अभिलाषा जाग पड़ी एक किशोर के मन में। पैसों का अभाव और विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने का लम्बा खर्च। जैसे-तैसे किराया मात्र जुट सका। वहां पहुंच कर क्या होगा? कुछ अता-पता नहीं।
एकमात्र मनोबल के सहारे अमरीका पढऩे चल दिया। वहां जाकर वैभव तथा विलास का साम्राज्य देखा। वहां का औसत नागरिक यहां के किसी धनाढ्य से कम नहीं था। पैसा कदम-कदम पर बिखरा-सा लगता। चांदी-सोने की कोई कीमत नहीं। हर चीज इतनी ंमहंगी कि मूल्य सुनकर प्राण कांप जाते।
ऐसे शहर में रहना तथा पढ़ना कितना मुश्किल था, पर इस साहसी युवक ने न हिम्मत हारी और न साहस छोड़ा। पैसा तो आखिर चाहिए ही था। तब उसने खेतों पर जाकर काम करना प्रारंभ किया।
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बगीचे में जाकर काम किया और एक बार तो होटल में जूठी प्लेटें साफ करने का भी काम करना पड़ा। जो भी परिस्थिति उसके सामने आई, अपने संकल्प बल से जीती और जीवन-संग्राम में अपने साहस को हारने नहीं दिया।
ऐसी अटूट निष्ठा तथा असाधारण लगन के धनी थे जयप्रकाश नारायण। जो न विपत्ति से हारे, न कभी निराश हुए और अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ते चले गए और सर्वोदय आंदोलन के अग्रणी नेता हुए।