Edited By Jyoti,Updated: 08 Aug, 2022 11:11 AM
एक दिन एक व्यक्ति संत के पास गया और बोला, ‘‘महाराज! मुझे ऐसा उपदेश दीजिए, जो जिंदगी भर याद रहे क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं है, कि रोज आपके पास आऊं और घंटों बैठकर आपका उपदेश सुनूं।’’
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक दिन एक व्यक्ति संत के पास गया और बोला, ‘‘महाराज! मुझे ऐसा उपदेश दीजिए, जो जिंदगी भर याद रहे क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं है, कि रोज आपके पास आऊं और घंटों बैठकर आपका उपदेश सुनूं।’’
संत ने कहा, ‘‘ठीक है, तो चलो मेरे साथ। संत उस व्यक्ति को श्मशान ले गए। वह व्यक्ति घबरा रहा था। उसने कहा, आप मुझे कहां ले आए हैं?’’
संत ने कहा, ‘‘तुमने कहा था कि कोई ऐसा उपदेश दूं कि तुम्हें मेरे पास बार-बार आने की जरूरत न हो, तो यहां उस प्रश्र का उत्तर तुम्हें मिल जाएगा।’’
इसके बाद वह दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए। तभी उन्होंने देखा-कुछ लोग अरबपति व्यक्ति का शव लेकर श्मशान में पहुंचे। दूसरी ओर से कुछ लोग एक दरिद्र का शव लेकर पहुंचे। दोनों की चिताएं बनाई गईं और उन्हें अग्रि को समर्पित कर दिया गया।
साधु ने उस व्यक्ति को अगले दिन आने के लिए कहकर घर जाने को कहा। वह व्यक्ति अगले दिन श्मशान भूमि में पहुंचा। साधु महाराज पहले से ही वहां उपस्थित थे। उन्होंने एक मुट्ठी में सेठ की और दूसरी मुट्ठी में दरिद्र की चिता की थोड़ी-थोड़ी राख ली, फिर उस आदमी को वह राख दिखाते हुए बोले, इन दोनों मुट्ठियों में ही तुम्हारे प्रश्र का उत्तर छुपा हुआ है।
अमीर हो या गरीब, अंत में दोनों एक समान हो जाते हैं। अर्थात एक दिन मिट्टी में मिल जाते हैं। दोनों की मिट्टी में कोई अंतर नहीं रह जाता। इसलिए अपना अनमोल समय अच्छे कामों में लगाना चाहिए ताकि अंत में पछताना न पड़े। जीवन की ऐसी सार्थक परिभाषा सुनकर वह व्यक्ति धन्य हो गया। आखिर में उसने साधु के चरण स्पर्श किए और संतुष्ट होकर अपने घर चला गया।