Edited By Lata,Updated: 01 Nov, 2019 04:25 PM
उन दिनों गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का स्वास्थ्य खराब चल रहा था। डाक्टरों ने उन्हें पूरा आराम करने की सलाह दी थी।
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उन दिनों गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का स्वास्थ्य खराब चल रहा था। डाक्टरों ने उन्हें पूरा आराम करने की सलाह दी थी। उनके शुभचिंतक भी डाक्टरों की सलाह अमल में लाने के लिए उन्हें कहते रहते थे। फिर भी वह अपने आपको काम करने से रोक नहीं पाते थे। संयोगवश उसी दौरान महात्मा गांधी की उनसे मुलाकात हुई। उन्हें भी पता चला कि टैगोर डाक्टरों के कहने के बावजूद आराम नहीं करते। मिलने पर उन्होंने टैगोर से कहा, ''गुरुदेव, मैं आपके पास भिक्षा मांगने आया हूं और आपको वह देनी ही पड़ेगी। गुरुदेव ने पहले इसे बापू का मजाक समझा। बोले, ''जो स्वयं भिक्षुक हो, वह किसी को क्या दे सकता है? पर गांधी जी की गंभीरता देखकर उन्होंने पूछा, ''आखिर भिक्षा में आपको क्या चाहिए? महात्मा गांधी ने कहा, ''आप भोजन करने के बाद प्रतिदिन एक घंटा पूर्ण विश्राम करेंगे। उस दौरान कोई काम नहीं करेंगे, यही मेरी भिक्षा है।
गुरुदेव वचन में बंध चुके थे। गांधी जी की बात मानने के अतिरिक्त उनके पास कोई चारा नहीं था। सो उन्हें सहमति जतानी पड़ी। अब गुरुदेव प्रतिदिन भोजन करने के बाद एक घंटा पूरी तरह विश्राम करते थे। इस नियम को वह भंग नहीं होने देते थे। उनकी यह दिनचर्या जारी थी। एक दिन अचानक आचार्य क्षितिमोहन सेन उनसे मिलने उनके घर पहुंचे। संयोग से वह समय उनके आराम करने का था। क्षितिमोहन सेन के आने की खबर उन्हें लग गई। कदमों की आहट पाकर गुरुदेव ने कमरे में बैठे-बैठे पूछा, ''ठाकुर दादा आए हैं क्या? इस पर क्षितिमोहन सेन ने कहा, ''हां, पर आप कमरे में ऐसा क्या कर रहे हैं, जो स्वागत की परंपरा भी भूल गए? रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा, ''दादा, अकारण ही कमरे में नहीं बैठा हूं। इस समय मैं गांधी जी को भिक्षा दे रहा हूं। तब तक क्षितिमोहन सेन उनके कमरे में आ गए। भिक्षा का राज जान कर वह हंस पड़े।