Rabindranath Tagore death anniversary: नोबेल पुरस्कार को प्राप्त करने वाले पहले एशियाई थे रबींद्रनाथ टैगोर

Edited By Updated: 07 Aug, 2025 06:52 AM

rabindranath tagore death anniversary

Rabindranath Tagore death anniversary 2025: भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले रबींद्रनाथ टैगोर केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की आवाज थे। उनका जीवन संदेश देता है कि साहित्य, कला और संवेदना के माध्यम से समाज और राष्ट्र...

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Rabindranath Tagore death anniversary 2025: भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले रबींद्रनाथ टैगोर केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की आवाज थे। उनका जीवन संदेश देता है कि साहित्य, कला और संवेदना के माध्यम से समाज और राष्ट्र को एक नई दिशा दी जा सकती है। आज भी भारतीय साहित्य, संगीत और संस्कृति की बात कहीं भी होती है, तो रबींद्रनाथ टैगोर का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। कवि, दार्शनिक, शिक्षाविद, संगीतकार और राष्ट्रप्रेमी के रूप में विख्यात रबींद्रनाथ टैगोर भारत ही नहीं, अपितु समूचे विश्व के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। उन्होंने न केवल साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं, बल्कि भारतीय आत्मा की गहराई को वैश्विक मंच पर भी स्वर दिया। आज जब हम भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की चर्चा करते हैं, तो रबींद्रनाथ टैगोर की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने साहित्य, संगीत और विचारों के माध्यम से न केवल भारत को जागृत किया, बल्कि उसे आत्मगौरव से भी भर दिया।

Rabindranath Tagore death anniversary

उनका जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा घर पर प्राप्त की और बाद में सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ाई की। 1878 में वह कानून की पढ़ाई के लिए इंगलैंड गए लेकिन बिना डिग्री लिए ही वापस आ गए। उनका झुकाव साहित्य और कला की ओर अधिक था। 

Rabindranath Tagore death anniversary

8 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी और 16 वर्ष की उम्र में उनकी पहली लघु कहानी प्रकाशित हुई। इनकी लेखनी ने बंगाली और हिंदी साहित्य को एक नया दृष्टिकोण दिया। इन्होंने 50 से अधिक कविता संग्रह, दर्जनों उपन्यास, नाटक, कहानियां और गीतों की रचना की। इनकी विश्वप्रसिद्ध कृति ‘गीतांजलि’ के लिए 1913 में इन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला और वे इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले एशियाई व्यक्ति बने। 1915 में उन्हें अंग्रेज राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया था, जिसे इन्होंने देश भक्ति का परिचय देते हुए 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में  यह कहकर लौटा दिया कि, ‘‘एक ऐसा शासन, जो निहत्थे नागरिकों पर गोली चलवाता है, उसका सम्मान नहीं चाहिए।’’ 

Rabindranath Tagore death anniversary
 
दो देशों का राष्ट्रगान, भारत का राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ और बंगलादेश का ‘आमार सोनार बांग्ला’ उनकी ही रचनाएं हैं। इतना ही नहीं, श्रीलंका के राष्ट्रगान की प्रेरणा भी रवींद्र संगीत से ही मिली।

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उनकी लेखनी में जहां एक ओर देशभक्ति की लहर दिखाई देती है, वहीं दूसरी ओर मानवता, प्रकृति और आध्यात्मिकता की गहराई भी झलकती है। उन्होंने जीवन की जटिलताओं को सरल भाषा और भावनात्मक संवेदना के साथ प्रस्तुत किया। ठाकुर केवल एक साहित्यकार नहीं थे, वह एक दूरदर्शी शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की, जहां परंपरागत और आधुनिक शिक्षा का समन्वय किया गया। उनका मानना था कि शिक्षा वह माध्यम है, जिससे समाज में आत्मा की चेतना जागृत की जा सकती है। 

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रवींद्रनाथ ठाकुर के गीतों की संख्या लगभग 2,000 से अधिक है, जिन्हें ‘रवींद्र संगीत’ के नाम से जाना जाता है। सरल और सादा जीवन उनका अहम सिद्धांत था। उनका कहना था कि जीवन में खुश रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है। 7 अगस्त, 1941 को उनका देहांत हो गया, लेकिन वे आज भी अपनी रचनाओं और विचारों के माध्यम से जीवित हैं।    

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