Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Dec, 2022 07:50 AM
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नल और नील भगवान विश्वकर्मा के वानर पुत्र माने जाते हैं। इन दोनों को ऋषियों ने श्राप दिया था, जो आगे चल कर वरदान साबित हुआ। बचपन में नल और नील काफी नटखट थे। दोनों ऋषियों के पास रहते थे।
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Ramayan: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नल और नील भगवान विश्वकर्मा के वानर पुत्र माने जाते हैं। इन दोनों को ऋषियों ने श्राप दिया था, जो आगे चल कर वरदान साबित हुआ। बचपन में नल और नील काफी नटखट थे। दोनों ऋषियों के पास रहते थे। जब ऋषि परमात्मा की पूजा में लीन हो जाते, तब दोनों भाई चुपके से दबे पांव आते और उनकी ठाकुर जी की मूर्ति उठाकर जल में फैंक देते थे। बच्चों से स्नेह के कारण व तप में विघ्न आ जाने के बावजूद ऋषिगण चुप रह जाते।
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Story of nal and neel in ramayana: नल और नील का उपद्रव दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। तब एक दिन ऋषियों ने सलाह करके श्राप के रूप में ऐसा आशीर्वाद दिया कि इन दोनों के हाथ से जिस भी चीज का स्पर्श हो जाए वह वस्तु चाहे जितनी भी भारी क्यों न हो जल में न डूबे।
उसके पश्चात दोनों जब भी कोई मूर्ति उठाकर जल में फैंक देते तो वह ऊपर ही तैरती रहती और ऋषिगण उसे जल में से उठा लाते।
ऋषियों के इसी श्राप कारण नल और नील ने भगवान राम की सेवा की। यह बात हनुमान जी अच्छी तरह जानते थे। लंका जाने के लिए हनुमान जी ने भगवान राम से वानर सेना द्वारा सेतु का निर्माण करवाने का अनुरोध किया जिसे श्री राम ने स्वीकार कर लिया।
लंका पहुंचने के लिए भगवान श्री राम अपनी वानर सेना के साथ समुद्र किनारे पहुंच गए। उन्होंने समुद्र से लंका जाने के लिए रास्ता देने की प्रार्थना की जिसे समुद्र ने ठुकरा दिया तब उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष बाण का सहारा लिया।
इस दृश्य को देख कर समुद्र डर कर भगवान श्री राम के सामने प्रस्तुत हो गया। समुद्र ने भगवान श्री राम को बतलाया कि आपकी सेना में भगवान विश्वकर्मा के दो वानर पुत्र नल और नील हैं, वे जिस भी चीज को हाथ लगाते हैं वह पानी में नहीं डूबती आप समुद्र पर सेतु बनाने के लिए इन दोनों की सहायता ले सकते हैं।
भगवान श्री राम ने अपनी वानर सेना को नल और नील की सहायता के लिए पत्थर लाने पर लगा दिया। वानर पत्थर इकट्ठा करते तथा नल और नील हर पत्थर पर जय श्री राम लिख कर समुद्र में फैंक देते थे जो समुद्र पर तैरते रहते।
इस प्रकार मात्र 5 दिन में लंका जाने के लिए सेतु का निर्माण हो गया। जब यह कार्य चल रहा था, श्री राम ने एक पत्थर उठाया तथा समुद्र में फैंक दिया जो डूब गया।
वह इस दृश्य को देख कर हैरान हो गए तब भगवान श्री राम से हनुमान जी ने कहा कि आपने पत्थर पर अपना नाम नहीं लिखा था, इस कारण पत्थर समुद्र में डूब गया। आपसे अधिक आपका नाम बड़ा है।
ऋषियों द्वारा दिया गया श्राप नल और नील के लिए आशीर्वाद बन गया। राम सेतु नामक इस पुल की लम्बाई 48 किलोमीटर है।