Kundli Tv- जानें, मां नवदुर्गा के तीसरे अवतार की कहानी

Edited By Jyoti,Updated: 12 Oct, 2018 03:37 PM

जैसे कि सब जानते होंगे कि आज यानि 12 अक्टूबर 2018 शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन है। इस दिन माता के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। मां दुर्गा का ये लोकप्रिय अवतार है

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जैसे कि सब जानते होंगे कि आज यानि 12 अक्टूबर 2018 शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन है। इस दिन माता के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। मां दुर्गा का ये लोकप्रिय अवतार है जिसकी वैष्णो देवी में भी पूजा की जाती है। माना जा रहा है कि शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा महा मंगला बनकर आई हैं। इनकी आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। ये देवी कल्याणकारी है। मां चंद्रघंटा व्यक्ति के मन पर अधिकार रखती हैं।
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अगर मां चंद्रघंटा के रूप की बात की जाए तो मां के इस रूप के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र सुशोभित है, इसीलिए ही इन्हें चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। अपने इस रूप से माता देवगण, संतों और भक्तजनों के मन को संतोष प्रदान करती हैं। 

मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर बैठकर अपने दस हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप नष्ट होते हैं और जन्म-जन्मांतर का डर खत्म होता है और जातक निर्भय बन जाता है।
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आपको बताते हैं मां चंद्रघंटा की साधना की विधि
सबसे पहले नहा धोकर घी का दीपक जलाएं और फिर कलश में गंगा जल मिला लें। साथ ही कलश में दूर्वा, सुपारी, सिक्का केसर चावल बेलपत्र डालें। मां को पीले फूल चढ़ाएं दूध, दही, शहद, गुड़ घी का पंचामृत चढ़ाएं। लाल अनार, गुड़ या गुलाब जामुन का भोग लगाएं। साथ ही 21 रूपये की दक्षिणा चढ़ाएं। मां के इस रूप की पूजा करने से नौकरी, बिज़नेस में आ रही परेशानी दूर होती है। साथ ही घर के सभी क्लेश भी खत्म होते हैं।
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आइए अब जानते हैं कि मां चंद्रघंटा से जुड़ी एक कथा, जिसके बारे में शायद ही आपको पता हो। दरअसल देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्वाबमी महिषासुर था और देवताओं के स्वामी इंद्र थे। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वेर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य  देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें  बंधक बनाकर स्वर्गलोक का राजा बन गया है। देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए कोई जगह नहीं है।
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ये सुनकर ब्रह्मा, विष्णु् और भगवान शंकर को बहुत गुस्सा आया। तीनों देवता के गुस्से की कोई सीमा नहीं थी। गुस्से की वजह से तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई और देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। ये दसों दिशाओं में व्याप्तु होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र-शस्त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। तभी उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर ये समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। अन्य दैत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े। लेकिन देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्यन बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई। 
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