मंत्रमुग्ध कर देगी यहां की सुंदरता

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 May, 2018 04:36 PM

sambhar lake

लावण्य का अर्थ है नमकीन सूरत जिसके चेहरे पर नूर-नमक हो। वह लावण्यमय सांभर जो भारत में नमक की झील के कारण जाना-पहचाना जाता है, अपने भीतर और भी कई आकर्षण छिपाए हुए है। ‘सांभर सॉल्ट्स’ की खुली रेल की चार बोगियों में लगभग 80 कुर्सियां लगी हुई हैं।

लावण्य का अर्थ है नमकीन सूरत जिसके चेहरे पर नूर-नमक हो। वह लावण्यमय सांभर जो भारत में नमक की झील के कारण जाना-पहचाना जाता है, अपने भीतर और भी कई आकर्षण छिपाए हुए है। ‘सांभर सॉल्ट्स’ की खुली रेल की चार बोगियों में लगभग 80 कुर्सियां लगी हुई हैं। ‘सांभर साल्टस’ की अपनी रेल, अपनी पटरियां पीले रंग का साफ-सुथरा डीजल इंजन और मार्गदर्शन के लिए साथ में उनके कुछ कर्मचारी, रेल के दोनों ओर नीचे की तरफ देख़ने पर नमक की पतली जमी हुई परत और दोनों ओर की पाल पर जमा हुआ नमक, बर्फ की तरह लगता है। लगभग 7 किलोमीटर चलने के बाद बाईं तरफ झील का पानी दिखाई देता है। यहां रेल को रोक दिया जाता है। नीचे उतर कर धीरे-धीरे आगे बढ़ने पर झील में सैंकड़ों लम्बी-लम्बी पतली-पतली टांगों की परछाइयां नज़र आती हैं। काफी संख्या में सफेद और गुलाबी पंखों वाले फ्लेमिंगोज पानी में से ‘एलगी’ काई चुरा ले जाते हैं। ऐसे गर्म मौसम में जब झील का आधे से ज्यादा पानी सूख चुका होता है, इन विदेशी पक्षियों को देख कर आश्चर्य होता है।


सांभर का सर्किट हाऊस लगभग 180 वर्ष पुराना होते हुए भी अच्छी हालत में है। सामान ऊपर पहुंचाने के लिए लिफ्ट भी लगी है। यहां के ऊंचे-ऊंचे दरवाजें, बड़ी गोल मेज़, कुर्सियां और बड़े पुराने पंखे, सभी कुछ साफ-सुथरा और व्यवस्थित है। इसी सर्किट हाऊस के सामने सांभर सॉल्टस का म्यूजियम है, जिसकी स्थापना कला मुगल तथा अंग्रेजी कला का मिश्रण है। यहीं पर नमक से बनाया गया एक ताजमहल का सुंदर मॉडल, शीशे के बक्से में बंद है।


सांभर का बड़ा बाज़ार घूमनें के लिए अच्छी जगह है। पतली-पतली लम्बी गलियां, दोनों तरफ ऊंचाई पर दुकानें जिनमें बड़े-बड़े पुराने लकड़ी के दरवाजे लगे हैं, कुछ कपड़ों की, कुछ सुनारों की साफ सुथरी दुकानें जिन पर रंग-बिरंगी गोटे किनारी की ओढ़नियों में लिपटी महिलाएं जेवर बनवाती नज़र आती हैं।


आगे छोटी-सी सब्जी मंडी और फिर अनाज मंडी जहां ट्रैक्टरों पर से अनाज की बोरियां उतारी जाती हैं। अनाज मंडी के दूसरी तरफ गली में पुरानी शेखावटी हवेलियों जैसे मकान, पेंटिंग्स और सुंदर खिड़कियां हैं। यहां से सेठ लोग अधिकतर कोलकाता मुम्बई और जयपुर शहरों में व्यापार करते तथा वहीं रहते हैं।


अनाज मंडी के बीच में एक बड़ा दरवाजा है जिसके बाहर ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती की दरगाह का बोर्ड है। अंदर खुले स्थान पर सुकून परस्त दरगाह है, जहां न कोई खादिमों की भीड़ है और न कोई फकीर। ऊंचाई पर बनी यह दरगाह हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर वाले गरीब़ नवाज के सबसे बड़े पुत्र हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन अबुल खैर के साहबजादे, ख्वाजा हिसामुद्दीन की है और हरी-पीली खुशनुमा चादर से सुसज्जित है।


शाम का सुहाना सूर्य अस्ताचल को जाते-जाते ताक-झांक करता है, लगभग नौ किलोमीटर सांभर झील की सूखी जमीन पर अंदर-अंदर होकर अन्यथा सड़क मार्ग द्वारा यही रास्ता सांभर से, मंदिर तक 23 किलोमीटर चलने के पश्चात मां शाकम्भरी का एक टापू पर स्थित मंदिर नजर आता है। यह ऊंचे टीले पर पौराणिक महत्व का देवयानी तीर्थ स्थल है। देवयानी सरोवर और उसके आसपास के कुंओं में मीठा जल उपलब्ध है जबकि इसके नीचे का लम्बा चौड़ा क्षेत्र क्षारीय है।


सांभर में केवल मंदिर-मस्जिद ही नहीं यहां की कला भी उत्कृष्ट है। यहां की चित्रकला के नमूने भित्ति चित्रों के रूप में उपलब्ध हैं तथा यहां के प्रसिद्ध चित्रकारों के आकर्षक चित्रों को देख़कर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। दिल्ली से उदयपुर, अजमेर, जोधपुर तथा अहमदाबाद जाने वाले ब्राड गेज की हर गाड़ी सांभर के पास फुलेरा जंक्शन पर रुकती है। सांभर की प्राकृतिक सुंदरता, प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति, सांभर साल्ट्स द्वारा खुली रेल में दृश्यावलोकन, शाकम्भरी माता का मंदिर व नालियासर मोखन्न से प्राप्त अवशेषों का महत्व सांभर को पर्यटन के मानचित्र पर उचित स्थान दिलाने के लिए काफी है। 


राजस्थान का पर्यटन विभाग भी सांभर को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनाने में पूरी तैयारी में है।

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