शिरडी में झलकता है साईं बाबा का नूर

Edited By Jyoti,Updated: 18 Feb, 2019 05:21 PM

shirdi sai baba

बाबा एक अवतार रूपी संत के रूप में आज विश्व भर में पूजे जाते हैं। विश्व भर में उनके करोड़ों  अनुयायी हैं। बाबा का समूचा जीवन ही मानवता की भलाई को समर्पित रहा।

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बाबा एक अवतार रूपी संत के रूप में आज विश्व भर में पूजे जाते हैं। विश्व भर में उनके करोड़ों  अनुयायी हैं। बाबा का समूचा जीवन ही मानवता की भलाई को समर्पित रहा। वह जीव-जंतुओं से विशेष स्नेह रखते थे। एक  साधारण फकीर के तौर पर जीवन बिताते हुए सिर्फ पांच घरों से ही भिक्षा मांग कर भोजन ग्रहण किया। इस भोजन का कुछ हिस्सा वह नितनेम से विभिन्न जीव-जंतुओं को डालने के बाद ही खुद भोजन ग्रहण करते। वह हमेशा यही कहते कि सबका मालिकएक है। उनके जीवन का एक ही मकसद रहा कि सभी जातियों को स मान मिले। किसी के साथ कोई भेदभाव न हो। 
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तप- शिरडी आने से पहले बाबा ने 16 वर्ष एक दिव्य तेज रूप बालक के अवतार में गुरु स्थान पर तप किया। उसका स्वरूप था शिरडी के मन्दिर में उपस्थित गुरु स्थान पर नीम के पेड़ के नीचे पाए जाने वाले जगते हुए चार दीए जो आज भी शिरडी के हर एक विशेष स्थान पर प्रस्तुत हैं। माना जाता है कि बाबा के परिश्रम से उस नीम के पेड़ के पत्ते मीठे और इतने ताकत से परिपूर्ण हैं कि श्रद्धालु दूर-दूर से उस पेड़ का एक पत्ता ग्रहण करने के लिए आते हैं।  

बाबा का खंडोवा मन्दिर आना- बाबा एक बारात के साथ शिरडी पहुंचते हैं और मानो तो शिरडी को स्वर्ग बनाना ही बाबा का मकसद रहा। खंडोबा मन्दिर के पंडित महालसापति ने एक रात पहले स्वप्न में देखा कि खंडोबा बाबा जो महादेव का रूप है उन्हें स्वप्न में कहते हैं कि दिव्य बालक के आते ही आओ साईं, कह कर उनका स्वागत किया जाए। जैसे ही बाबा खंडोबा मन्दिर में चरण रखते हैं तो महालसापति आओ साईं कह कर उन्हें साईं नाम देते हैं। 
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समाधि मन्दिर- समाधि मन्दिर में बाबा का शरीर समाधि के रूप में बाबा की याद में उपस्थित है। इस मन्दिर में सुबह से रात तक लाखों की सं या में श्रद्धालु हाजिरी भरते हैं। इंसानों व अन्य जीवों में बाबा कोई अंतर नहीं समझते। सभी में आत्मा-परमात्मा का एक ही तरह से निवास है। आज भी बाबा की प्रसिद्धि का दीया पूरे जगत में जगमगा रहा है। जगह-जगह की जा रही है साईं संध्या और किया जा रहा प्रचार। बाबा ने शरीर तो त्याग दिया लेकिन आज भी उनके भक्तों के दिलों में साईं बाबा की जोत विराजमान है। यहां  बता दें कि जो साईं बाबा की समाधि पर रूप है,उसमें से बाबा का नूर झलकता है जिसे देखकर हर श्रद्धालु की आंखें नम हो जाती हैं। 
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साईं बाबा की रसोई- साईं बाबा की रसोई में एक साथ हजारों लोग मु त खाना खाते हैं। बाबा हर पल गरीबों का पेट भरने के लिए अपने हाथों से खाना बनाते रहे और श्रद्धालु भोजन ग्रहण करते थे। बाबा के श्रद्धालु के रसोई घरों में बाबा के खाना बनाते हुए लगी तस्वीर उनके प्रति आस्था को बयां करती है। 

साईं बाबा ने चोला त्यागा- साईं बाबा ने 15 अक्तूबर 1918 को चोला त्याग दिया तथा उनका शताब्दी वर्ष श्रद्धालुओं द्वारा दुनिया भर में मनाया जा रहा है। आज भी साईं बाबा अपने वचनों के मुताबिक हर श्रद्धालु के हृदय में जीवित हैं। समाधि छोड़ चला जाऊंगा,भक्त हेतु चला आऊंगा। श्रद्धालु आज भी उसी भावना से दिल से जब आंखें बंद करके उनको याद करते हैं तो अपने सामने साईं बाबा के दर्शन पाते हैं। 
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चावड़ी पंचायत घर- साईं बाबा चावड़ी में पंचायत करते और खतरनाक रोग को मूंगफली के दाने से ही ठीक कर देते। चावड़ी में पुरुष व महिला का स्थान अलग-अलग से स्थापित करवाया। आज जो भी श्रद्धालु उनके  दरबार में हाजिरी भरने के लिए विश्व भर से आते हैं वे पंचायत घर में अपनी हाजिरी लगवाना अनिवार्य समझते हैं। हर एक श्रद्धालु के मन में यह भावना आज ाी बरकरार है कि यहां पर माथा टेकने से वे बाबा की अपार कृपा से लंबे समय तक रोगमुक्त जीवन व्यतीत कर सकेंगे। इसके अलावा हर एक श्रद्धालु जो भी शिरडी में से चीज खरीद कर अपने घर ले जाना चाहता है तो पहले वह इस पंचायत घर में साईं बाबा के चरणों में रखकर आशीर्वाद लेते हैं। 

लेंडी बाग- इस बाग का हर एक वृक्ष बाबा ने अपने हाथों से लगाया।  बाबा लेंडी बाग में सैर करने के लिए आते। नन्दादीप पर लोग दीया जला कर बाबा से अपने मन की बात करते हैं। इस बाग में बाबा की याद में स्त भ खड़ा किया गया है। सबसे पहला चमत्कार बाबा ने दीपावली के दिन पानी से दीए जला कर किया और शिरडी का बच्चा-बच्चा उन्हें पूजने लगा।  
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द्वारका माई- बाबा ने अपना सारा जीवन मानो लगभग 60 वर्ष द्वारकामाई के एक पत्थर पर व्यतीत किया। वह पत्थर आज भी शिरडी के द्वारकामाई में उपस्थित है। बाबा जो धूनी लगाते वह आज भी  बाबा की कृपा से बरकरार है । श्रद्धालुओं को बाबा के स्थान की एक-एक ईंट से प्रेम है। बाबा की काकड़ आरती का समय 4.15 सुबह का है और श्रद्धालुओं की कतारें रात से ही अपना आसन तय कर लेती हैं। 

भगत चमन की भक्ति- जब किसी भक्त ने अंतर ध्यान होकर अपने स्वामी के दर्शनों हेतु भक्ति की तो उसेे अपने गुरु के दर्शन होने के साथ-साथ आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। इनमें से एक भक्त चमन जी हुए, जिन्होंने साईं बाबा के दर्शनों हेतु लंबे समय तक दिन-रात भक्ति की तो साईं बाबा ने अपने इस भक्त से मिलने के लिए खुद शिरडी से कुछ किलोमीटर दूर स्थित कोपर गांव में आए तथा उसे दर्शन और आशीर्वाद दिया। 
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