Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jun, 2018 09:07 AM
अनुवाद एवं तात्पर्य- वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं- एक प्रकाश (शुक्लपक्ष) तथा दूसरा अंधकार (कृष्णपक्ष)।
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शुक्लकृष्णे गती ह्योते जगत: शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुन:।।
अनुवाद एवं तात्पर्य- वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं- एक प्रकाश (शुक्लपक्ष) तथा दूसरा अंधकार (कृष्णपक्ष)।
जब मनुष्य शुक्ल मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु कृष्ण मार्ग से जाता है तो पुन: लौटकर आता है।
आचार्य बलदेव विद्याभूषण ने छान्दोग्य उपनिषद् से ऐसा ही विवरण उद्धृत किया है। जो अनादि काल से सकाम श्रमिक तथा दार्शनिक चिन्तक रहे हैं वे निरंतर आवागमन करते रहे हैं। वस्तुत: उन्हें परममोक्ष प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वे श्री कृष्ण की शरण में नहीं जाते।
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