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मुक्ति और मोक्ष ज्ञान में है अंतर, जानिए द्वापर युग में किस-किस ने पाया मोक्ष ज्ञान

Edited By Jyoti,Updated: 04 Mar, 2021 05:31 PM

sri krishna devotee moksha

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में यूं तो भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उनके बहुत से भक्तों नेे मोक्ष पाया। तो इनके ही कारण हज़ार भक्तों ने ज्ञान प्राप्त किया था

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में यूं तो भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उनके बहुत से भक्तों नेे मोक्ष पाया। तो इनके ही कारण हज़ार भक्तों ने ज्ञान प्राप्त किया था। अब आप सोच रहे हैं होंगे कि ज्ञान और मोज्ञ से क्या अर्थ है तो आपको बता दें ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ है मोक्ष के दर्शन करना और फिर उसी पर चल पड़ना। मगर जो ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता वो कभी मोक्ष नहीं पा सकते है। ऐसे कई पात्र हुए हैं जो श्री कृष्ण के समीप होते हुए भी मोक्ष पाना तो दूर उसके समीप भी नहीं जा पाए। इसका कारण है उनके बीच पैदा अंहकार या खुद को बड़े ज्ञान के रूप में देखना। इसलिए कहा जाता है कि मोक्ष पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सबसे पहले अंदर से अंहकार को निकालना चाहिए। 

आज अपने इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं द्वापर युग के उन पात्रों के बारे में जिनहोंने श्रीकृष्ण की कृपा से मोक्ष पाया। 

अक्सर लोग मुक्ति और मोक्ष में अंतर नहीं समझ पाते। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मुक्ति और मोक्ष एक नहीं होता, बल्कि इनमें फर्क होता है। बता दें इस आर्टिकल में में हम उन लोगों की बात नहीं करे जिनका श्रीकृष्ण ने उद्वार किया था या जो पिछले जन्म में देवलोक में थे। उदाहरण के लिए जैसे भीष्म पितामह देवलोक के एक वसु थे, तो महात्मा विदुर स्वयं ही धर्मराज के अंश थे। 

अष्ट सखियां : 
सनातन धर्म के अनुसार श्री राधा रानी तो स्वयं संबुद्ध अर्थात मोक्ष प्राप्त कर चुकी महिला थीं। परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी अष्ट सखियों ने भी श्रीकृष्‍ण और राधा के संग रहकर मोक्ष प्राप्त किया था। हालांकि किंवदंतियां प्रचलित हैं कि देवी ललिता नाम की सखी इसमें चूक गई थी। जिस कारण उसने कई जन्मों के बाद दोबारा मीरा या स्वामी हरिदास के रूप में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त किया था।

उद्धव: 
उद्धव श्रीकृष्ण के चाचा देवभाग के पुत्र थे जो आयु में श्रीकृष्ण से बड़े थे, इनका असली नाम बृहदबल था तथा इनके पिता का नाम 'उपंग' था। कहा जाता है कि बाल्यकाल में उन्हें देवताओं के गुरु बृहस्पति ने अपना शिष्य बना लिया था। जिसके बाद उद्धव को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई और वे निरंतर प्रभु के निराकार और निर्गुण रूप की उपासना करने लगेे। वे खुद को ब्रह्मज्ञानी समझते थे। श्रीकृष्ण और राधा के सत्य को जानकर ज्ञान से प्रेम मार्ग बन गए थे, इसके बाद श्रीकृष्ण ने उद्धव को योग मार्ग का उपदेश दिया। बता दें यह उपदेश उद्धव गीता या अवधूत गीतार्ध के नाम से प्रसिद्ध है। कथाएं हैं श्रीकृष्ण के इच्छा से उद्धव बदरिकाश्रम चले गए और वहीं तपस्या करते हुए उन्होंने अपनी देह त्याग दी थी।

सुदामा: 
श्रीकृष्ण के वैसे तो बहुत मित्र थ, परंतु उनरे परम भक्त तथा परम मित्र भी थे। सुदामा जान गए थे कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु है। अपनी भक्ति से ही  सुदामा ने मोक्ष प्राप्त किया था। इनके अलावा भगवान श्रीकृष्ण के भक्ति के कालांतर में हजारों लोगों के मोक्ष प्राप्त किया, इस सूची में सुदामा से लेकर सुरदास तक के नाम शामिल हैं।

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