Edited By Lata,Updated: 24 Oct, 2019 09:50 AM
इंसान अपने सुख-दुख का कर्ता-धर्ता स्वयं होता है। जैसे विचार और कार्य होते हैं, वैसा ही उसका परिणाम आता है।
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इंसान अपने सुख-दुख का कर्ता-धर्ता स्वयं होता है। जैसे विचार और कार्य होते हैं, वैसा ही उसका परिणाम आता है। इस सिद्धांत को समझने के बाद हर समझदार एवं विवेकी व्यक्ति उसी बात का संकल्प करेगा जो उसे शांति और आनंद का अनुभव करा सके लेकिन वर्तमान में विडम्बना है कि वह कल्पना के ऐसे आकाश में उड़ान भर रहा है जहां तनाव, असंतुलन और भ्रम की स्थितियां बनी हुई हैं।
आज का आदमी यथार्थ की धरती पर पांव टिकाए बिना ही कल्पना के लोक में विहार करने के लिए उतावला हो रहा है। यह वर्तमान की एक बड़ी समस्या है। जेस सी. स्कॉट ने एक बार कहा था, ''सबसे चमकदार रोशनी के पीछे घुप अंधेरा भी होता है। जैसे-जैसे आप खुद को शुद्ध करते हैं, सार्थक, आनंदित और संतुलित जीवन जीने का प्रयास करते हैं, वैसे-वैसे आपकी परछाइयां बड़ी होने लगती हैं। आपका अंधेरा पक्ष उजाले की मांग करने लगता है। हर इंसान आज जल्दी से जल्दी सफलता चाहता है। जब वह गलत मूल्यों में जीने वाले लोगों को ख्याति और समृद्धि के छोर पर खड़ा देखता है तो उसके मन में हर हाल में सफलता की सीढिय़ां चढऩे की इच्छा बलवती होने लगती है परंतु जो यह जानता है कि आज नहीं तो कल, बोया हुआ बीज तो उगेगा ही, वह सही और गलत के बीच फर्क करते हुए ही जीवन जीना बेहतर मानता है।
ईश्वर की सत्ता और हर आत्मा में ईश्वर बनने की क्षमता को स्वीकार करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से इसे लेकर सतर्क रहता है कि उसके द्वारा कोई ऐसा काम न हो जाए, जो उसके भविष्य को अंधकारमय बना दे। इस चिंतन के बावजूद उसके जीवन में ऐसे नाजुक क्षण आ जाते हैं, जिनसे उसका मन दुर्बल होता है और वह किसी गलत कार्य में प्रवृत्त हो जाता है परंतु इस प्रवृत्ति की टीस उसे व्यथित करती रहती है और एक न एक दिन वह अपना रास्ता बदलने या बनाने में सक्षम हो जाता है।