Mahashivratri 2019: दो भागों में बंटा है इस मंदिर का शिवलिंग

Edited By Jyoti,Updated: 02 Mar, 2019 11:59 AM

the shivling of this temple is divided into two parts

जैसे कि सब जानते हैं कि देश में भोलेनाथ के अनगिनत मंदिर पाए जाते हैं। हर मंदिर की अपनी-अपनी एक विशेषता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां का शिवलिंग उस मंदिर की प्रसिद्धि का कारण है।

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जैसे कि सब जानते हैं कि देश में भोलेनाथ के अनगिनत मंदिर पाए जाते हैं। हर मंदिर की अपनी-अपनी एक विशेषता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां का शिवलिंग उस मंदिर की प्रसिद्धि का कारण है। तो चलिए देर न करते हुए आपको बताते हैं कि क्या है इस अद्भुत मंदिर का रहस्य और कहां है ये दिलचस्प मंदिर। इतना तो सब जानते हैं कि काशी को भगवान शंकर कोr नगरी माना जाता है। यहां पर भगवान शंकर के कईं मंदिर हैं जहां भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए हज़ारों की संख्या में भक्त आते हैं। काशी के इन्हीं मंदिरों में से एक है केदारखंड का गौरी केदारेश्वर मंदिर है। आप में से बहुत से लोगों ने कई तरह के शिवलिंग देखे होंगे परंतु काशी के केदारखंड के शिवलिंग की बात ही कुछ निराली है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या है इस शिवलिंग मे तो आपको बता दें कि ये शिवलिंग बहुत ही चमत्कारिक है। इस अद्भुत मंदिर की एक नहीं बल्कि बहुत सी महिमाएं प्रचलित हैं।
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तो चलिए शुरू करते हैं इस मंदिर के अद्भुत शिवलिंग को जानने का किस्सा-
इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत है कि ये शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है। कहा जाता है कि शिवलिंग के एक भाग में माता पार्वती के साथ भगवान शिव जी वास करते हैं तो दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं।
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इसके अलावा इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने का तरीका बाकि के शिव मंदिरों से भिन्न माना गया है। इस मंदिर के अंदर ब्राह्मण बिना सिला हुआ वस्त्र धारण करके चार पहर की आरती करते हैं और शिवलिंग पर बेलपत्र दूध गंगाजल के साथ ही खिचड़ी भी चढ़ाते हैं। यहां शिवलिंग को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि भगवान शंकर स्वयं यहां खिचड़ी का भोग ग्रहण करने आते हैं।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर को लेकर बताया जाता है कि जिस स्थान पर गौरी केदारेश्वर का मंदिर है, ये पहले भगवान विष्णु का होता था, जहां मान्धाता ऋषि कुटिया बना कर रहा करते थे। मान्धाता जाति से बंगाली थे, जिस वजह से वह ज्यादातर चावल का समान ही बनाते थे। कहा जाता है कि ऋषि मान्धाता भोलेनाथ के भक्त थे। वह रोज़ाना भोलेनाथ की तपस्या करने के बाद ही इसी स्थान जहां (आज के समय में ये मंदिर है) पर खिचड़ी बनाकर उसे एक पत्तल पर निकाल देते और उसके दो भाग कर देते। बता दें कि शिवपुराण में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि ऋषि मान्धाता अपने हाथों से बनाई गई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर रोज़ाना गौरी केदारेश्वर को खिलाने के लिए हिमालय जाते फिर वापस आकर आधी खिचड़ी के और दो भाग करके एक हिस्से अतिथि को देते थे और दूसरा हिस्सा खुद खाते।
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कहा जाता है कि ऋषि मान्धाता ने कई सालों तक ऐसे ही भगवान शंकर की सेवा की लेकिन एक बार की बात है कि उनकी तबीयत बहुत ज्यादा ही बिगड़ गई और बहुत प्रयास करने के बाद भी वह खिचड़ी बनाकर हिमालय नहीं ले जा सके। जिस कारण वह हताश और दुखी हो गए। बीमारी के कारण वो बेहोश हो गए। माना जाता है कि अपने भक्त की ये हालात देख हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर स्वयं प्रकट हुए और इन्होंने खिचड़ी का भोग लगाया और ऋषि मान्धाता को आशीर्वाद दिया था कि आज से मेरा एक स्वरुप काशी यानि यहीं वास करेगा।
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