Edited By Lata,Updated: 24 Jul, 2018 11:30 AM
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि इस भौतिक जगत में चार प्रकार के भक्त हैं। चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (7.16)
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भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि इस भौतिक जगत में चार प्रकार के भक्त हैं।
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (7.16)
अर्थात:- हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।
आर्त- वह मनुष्य जो शरीर पर कष्ट आने पर या धन-वैभव खो जाने पर, अपने दु:ख को दूर करने के लिए प्रभु को पुकारें और उनकी शरण में जाए।
जिज्ञासु- एेसे भक्त अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि संसार को अनित्य जानकर भगवान को जानने और उन्हें पाने के लिए भजन करतें हैं।
अर्थार्थी- वह भक्त जो भोग, ऐश्वर्य और सुख को पाने के लिए भगवान का भजन करते हैं। उनके लिए सिर्फ संसारिक भोग तथा धन प्रमुख होता है और भगवान का भजन कम महत्व रखता है।
ज्ञानी- आर्त, अर्थार्थी और जिज्ञासु तो सकाम भक्त हैं परंतु ज्ञानी भक्त सदैव निष्काम होता है। ज्ञानी भक्त केवल भगवान को पाना चाहता है और कुछ नहीं। इसलिए प्रभु ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है।
संसार में सर्वश्रेष्ठ कौन?
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।17।।
अर्थात: इनमें से जो परमज्ञानी है और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, अनन्य प्रेम-भक्तिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझे तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूं और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है। वहीं सर्वश्रेष्ठ जाना गया है। एेसे भक्त कभी-कभी और कहीं-कहीं देखने को मिलता है।
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