मृत्यु के समय ये कर्म ले जाता है भगवान के पास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Apr, 2018 09:21 AM

this karma takes person towards god at the time of death

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद  अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति  श्लोक प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव। भु्रवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।। 10।।

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति 

 

श्लोक
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भु्रवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।। 10।।


अनुवाद एवं तात्पर्य: मृत्यु के समय जो व्यक्ति अपने प्राण को भौंहों के मध्य स्थिर कर लेता है और योग शक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्ण भक्ति के साथ परमेश्वर के स्मरण में अपने को लगाता है, वह निश्चित रूप से भगवान को प्राप्त होता है। इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि मृत्यु के समय मन को भगवान की भक्ति में स्थिर करना चाहिए। जो लोग योगाभ्यास करते हैं उनके लिए संस्तुति की गई है कि वे प्राण को भौंहों के बीच (आज्ञा चक्र में) ले जाएं। यहां पर षटचक्रयोग अभ्यास का प्रस्ताव है, जिसमें छ: चक्रों पर ध्यान लगाया जाता है परंतु निरंतर कृष्णभावनामृत में लीन रहने के कारण शुद्ध भक्त भगवत्कृपा से मृत्यु के समय योगाभ्यास के बिना भगवान का स्मरण कर सकता है।


इस श्लोक में योगबलेन शब्द का विशिष्ट प्रयोग महत्वपूर्ण है क्योंकि योग के अभाव में चाहे वह षटचक्रयोग हो या भक्तियोग-मनुष्य कभी भी मृत्यु के समय इस दिव्य अवस्था (भाव) को प्राप्त नहीं होता।


कोई भी मृत्यु के समय परमेश्वर का सहसा स्मरण नहीं कर पाता, उसे किसी न किसी योग का, विशेषतया भक्तियोग का अभ्यास होना चाहिए, चूंकि मृत्यु के समय मनुष्य का मन अत्यधिक विचलित रहता है, अत: अपने जीवन में मनुष्य को योग के माध्यम से अध्यात्म का अभ्यास करना चाहिए। 

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