भक्ति मार्ग पर चलने के लिए ये दो हैं सही रास्ते

Edited By Lata,Updated: 15 Oct, 2019 12:11 PM

two right ways to follow the path of devotion

जीव, जगत और परमात्मा बारे जानने और इनके परस्पर संबंधों को समझने की मानवीय जिज्ञासा उतनी ही पुरानी है

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जीव, जगत और परमात्मा बारे जानने और इनके परस्पर संबंधों को समझने की मानवीय जिज्ञासा उतनी ही पुरानी है जितना हमारा मानवीय सभ्यता का इतिहास। अपनी इस ज्ञान-पिपासा की तृप्ति के लिए अपनाए जाने वाले मार्गों में प्रमुख है भक्ति मार्ग। इस पर चलने वालों की संख्या भी ज्ञान मार्ग के मुकाबले काफी बड़ी है। इसका प्रमुख कारण भक्ति मार्ग की सरलता, सहजता और सुगम्यता को माना जाता है। ज्ञान मार्ग को अपेक्षाकृत कठिन माना जाता है। 
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दोनों मार्गों में से कौन-सा श्रेष्ठ है इसे लेकर दोनों ओर से अपने-अपने तर्क दिए जाते हैं। सामान्य समझ के आधार पर यह भी कहा जाता है कि चूंकि ज्ञान मार्ग कठिन है तो उसका श्रेष्ठ होना भी स्वाभाविक है। यह बिल्कुल वैसा ही जैसे महंगी और कठिनाई से प्राप्त होने वाली वस्तु को बेहतर मानना लेकिन सच्चे साधक को श्रेष्ठता साबित करने के वाद-विवाद में नहीं पड़ना चाहिए। उसे अपना ध्यान साध्य पर लगाना चाहिए और साधनों का चुनाव अपनी सामथ्र्य अनुसार कर लेना चाहिए। यहां विशेष रूप से समझने वाली बात यह है कि साधना के सभी रास्ते उस परम पिता परमेश्वर की ओर जाने के लिए ही बने हैं। सभी नदियां अंत में समुद्र में ही जाकर मिलती हैं चाहे किसी भी रास्ते से वहां तक पहुंची हों। 

आध्यात्मिकता का इतिहास ऐसी अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां भक्ति मार्ग पर चलकर असंख्य भक्तों ने परमात्मा को साधा है। मीरा बाई, सूरदास, तुलसीदास जैसे महान और अनन्य भक्तों ने इस मार्ग को सुशोभित किया और साधारण मनुष्य को भी भगवत कृपा का सहज और आसान रास्ता दिखाया लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि आसानी के लिए ज्ञान मार्ग पर चलने से बचना चाहिए। 
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एक सांसारिक व्यक्ति के लिए उचित तो यही है कि वह परिवार, देश, राष्ट्र और समाज प्रति अपनी अपेक्षित जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भक्ति मार्ग पर चलता रहे और स्वयं की क्षमता की पहचान कर ज्ञान मार्ग की ओर अग्रसर हो। 

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