ये उपाय दूर कर सकते हैं आपके घर का वास्तु दोष

Edited By Lata,Updated: 20 Mar, 2020 04:23 PM

vastu tips for home

कई बार हम अपना मकान बनाने में करोड़ों रुपए लगा देते हैं परंतु एक अच्छे वास्तुविद की सलाह नहीं

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कई बार हम अपना मकान बनाने में करोड़ों रुपए लगा देते हैं परंतु एक अच्छे वास्तुविद की सलाह नहीं लेते और सारी उम्र कई समस्याओं से जूझते रहते हैं। समझ नहीं आता कि सब कुछ ठीक-ठाक होने के बावजूद समस्याएं क्यों हैं? इस समस्या से मुक्ति के लिए आप अपने घर की दिशा चैक करें और उपाय करें। पूर्व दिशा यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊंचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी संतान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढ़ाई-लिखाई से जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीड़ित रहेगी। पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आंखों की बीमारी, स्नायु अथवा हृदय रोग की समस्या का सामना करना पड़ता है। 
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घर के पूर्व में कूड़ा-कर्कट, गंदगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि की आशंका होती है। भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान होने से गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर आदि किसी बीमारी से पीड़ित होता है। पूर्व की दीवार पश्चिम दिशा की दीवार से अधिक ऊंची होने पर संतान हानि का भय रहा है। अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियां अवश्य अस्वस्थ रहेंगी।
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उपाय 
पूर्व दिशा में पानी, पानी की टैंकी, नल, हैंडपम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा। पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य कालपुरुष के मुख का प्रतीक है। इसके लिए पूर्वी दीवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज लगाएं। 
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पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगे। धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पश्चिम दिशा पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरुष का पेट, गुप्तांग एवं प्रजनन अंग है। 
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पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफड़े, मुख, छाती और चमड़ी इत्यादि के रोगों का सामना करना पड़ता है। यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरुष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा। 

यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरुष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पड़ेगा। भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर होने पर अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा। 

यदि पश्चिम दिशा की दीवार में दरारें आ जाएं, तो गृहस्वामी के गुप्तांग में अवश्य कोई बीमारी होगी। यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोड़े-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी। ऐसी स्थिति में अपने घर की पश्चिमी दीवार पर ‘वरुण यन्त्र’ स्थापित करें। 
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परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखे और जरूरतमंदों में काले चने बांटे। पश्चिम की दीवार को थोड़ा ऊंचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें। इस दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगाएं। 

उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरुष का हृदय स्थल माना जाता है। जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है। ये दिशा ऊंची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियां, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियां बनी रहेंगी। 

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