Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 May, 2018 12:18 PM
गिरीशचंद्र घोष बांग्ला के प्रसिद्ध कवि-नाटककार थे। उनके एक धनी मित्र थे, जो अपनी रईसी अपने व्यवहार में भी दिखाते थे। वह कहीं जाते तो उनका नौकर उनके लिए चांदी के बर्तन साथ लेकर चलता था, ताकि वह अपना खाना उन्हीं में खाएं। घोष जी को यह बात अच्छी नहीं...
गिरीशचंद्र घोष बांग्ला के प्रसिद्ध कवि-नाटककार थे। उनके एक धनी मित्र थे, जो अपनी रईसी अपने व्यवहार में भी दिखाते थे। वह कहीं जाते तो उनका नौकर उनके लिए चांदी के बर्तन साथ लेकर चलता था, ताकि वह अपना खाना उन्हीं में खाएं। घोष जी को यह बात अच्छी नहीं लगती थी पर वह मित्र का दिल नहीं दुखाना चाहते थे। फिर उन्होंने तय किया कि वह उसकी इस आदत को सुधार कर रहेंगे।
एक दिन घोष जी ने अपने रईस दोस्त को खाने पर आमंत्रित किया। हमेशा की तरह उनके मित्र अपने नौकर के साथ पहुंचे। नौकर बर्तन लेकर आया था। लेकिन घोष जी अपने मित्र के आते ही उन्हें और लोगों के बीच ले गए। जब तक मित्र कुछ समझ पाते, तब तक उनके सामने पत्तल में खाना परोस दिया गया। बाकी लोगों के सामने भी पत्तल में खाना रखा था।
उनके रईस मित्र संकोच में पड़ गए। उन्होंने नौकर को आवाज देनी चाही लेकिन तब तक सब लोग खाने लगे और उनसे भी खाने का अनुरोध करने लगे। मन मसोस कर उन्हें भी पत्तल में खाना पड़ा। खाने के बाद जैसे ही वह उठे तो घोष जी उनके बर्तनों में व्यंजन लेकर उनके सामने हाजिर हुए।
उन्होंने हंसते हुए मित्र से कहा, ‘‘क्षमा करें, थोड़ी गलतफहमी हो गई। जब तुम्हारे नौकर को घर की महिलाओं ने बर्तन लेकर आते देखा तो उन्हें लगा कि शायद तुम अपने बच्चों के लिए खाना ले जाना चाहते हो। उन्होंने इसमें खाना दे दिया है।’’
मित्र लज्जित होकर चले गए। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्होंने दिखावा करना छोड़ दिया।
तात्पर्य यह कि धन का दिखावा बहुत ही निम्न श्रेणी के लोग करते हैं। भले ही वे धन का दिखावा कर स्वयं संतुष्ट हो जाते हैं, पर समाज उन्हें इस तुच्छ बात के लिए नकार देता है, जैसा कि गिरीशचंद्र घोष जी के धनवान मित्र के साथ हुआ। अगर कुछ दिखाना ही है तो लोगों के प्रति परोपकारी रहो, ताकि आपका यश चारों तरफ गूंजे।