नोटबंदी से गई 50 लाख लोगों की नौकरियां , पढ़े लिखे युवा अधिक बेरोजगार

Edited By bharti,Updated: 17 Apr, 2019 11:51 AM

50 million people lost their job after demonetisationto

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के देश में नोटबंदी के ऐलान  करने के फैसले ने देश में बहुत बड़े पैमाने पर...

नई दिल्ली : 8 नवंबर 2016 को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के देश में नोटबंदी के ऐलान  करने के फैसले ने देश में बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को बेरोजगार कर दिया है । इस फैसले ने बेरोजगारी के साथ - साथ लोगों के लिए भविष्य मेें नौकरी के अवसरों को भी खत्म कर दिया। इस बात का खुलासा अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनबल एंप्लॉयमेंट की ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में हुआ हैं। रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार के उस फैसले से तकरीबन 50 लाख लोगों मे नौकरी गंवाई है। रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक दशक में देश में बेरोजगारी दर तेजी से बढ़ी है, जबकि साल 2016 के बाद नौकरी से जुड़ा संकट भयावह हो गया है।
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रिपोर्ट के मुताबिक  पिछले एक दशक के दौरान देश में बेरोजगारी की दर में लगातार इजाफा हुआ है। 2016 के बाद यह अपने अधिकतम स्तर को छू गया है। रोजगार और मजदूरी पर 'स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019' की रिपोर्ट के अनुसार 20-24 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। यह गंभीर चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि यह युवा कामगारों का वर्ग है।यह बात शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के पुरुषों और महिलाओं के वर्गों पर लागू होता है। 

कम शिक्षित कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा किए जाने के आसपास ही नौकरी की कमी शुरू हुई, लेकिन उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इन दोनों के बीच संबंध पूरी तरह से स्थापित नहीं किया जा सकता है। यानी रिपोर्ट में यह साफ तौर पर बेरोजगारी और नोटबंदी में संबंध नहीं दर्शाया गया है। 'सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्लॉयमेंट' की ओर से जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी नौकरी खोने वाले इन 50 लाख पुरुषों में शहरी और ग्रामीण इलाकों के कम शिक्षित पुरुषों की संख्या अधिक है। इस आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र को ही तबाह किया है।
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 नौकरियों में गिरावट की शुरुआत का समय नोटबंदी के वक्त ही शुरू होता है। अगर तीन सालों की बात करें तो जनवरी-अप्रैल 2016 से सितंबर-दिसंबर 2018 तक, शहरी पुरुष एलएफपीआर की दर 5.8 फीसदी जबकि उसी आयु समूह में डब्ल्यूपीआर की दर 2.8 तक गिर गई है।  साथ ही नोटबंदी से भविष्य में भी नौकरी का संकट होने की बात कही गई है और अभी रिपोर्ट का दावा है कि अब तक नोटबंदी के बाद बने हालात सुधरे नहीं है। 
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20 से 24 साल के युवा सबसे ज्यादा बेरोजगार
'2016 के बाद भारत में रोजगार' वाले शीर्षक के इस रिपोर्ट के 6ठे प्वाइंट में नोटबंदी के बाद जाने वाली 50 लाख नौकरियों का जिक्र है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 के बाद से कुल बेरोजगारी दर में भारी उछाल आया है। 2018 में जहां बेरोजगारी दर 6 फीसदी थी। यह 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित और युवा हैं। शहरी महिलाओं में कामगार जनसंख्या में 10 फीसदी ही ग्रेजुएट्स हैं, जबकि 34 फीसदी बेरोजगार हैं। वहीं, शहरी पुरुषों में 13.5 फीसदी ग्रेजुएट्स हैं, मगर 60 फीसदी बेरोजगार हैं। इतना ही नहीं, बेरोजगारों में 20 से 24 साल की संख्या सबसे अधिक है। सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा प्रभावित हुई हैं। पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों में बेरोजगारी और श्रम भागीदारी दर बहुत ज्यादा है।
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महिलाओं की बेरोजगारी दर अधिक 
महिलाओं की बेरोजगारी दर अधिक यह रिपोर्ट ऐसे सामने आई है जब लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, ऐसे में यह रिपोर्ट चुनावी मुद्दा भी बन सकती है, विपक्ष इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार पर अपना हमला और तेज कर सकता है। चुनाव पूर्व तमाम मुद्दों की बात करें तो बेरोजगारी सरकार के लिए मुश्किल सबब बनती नजर आ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कहीं ज्यादा प्रभावित हैं। बड़ी समस्या यह है कि महिलाओं में बेरोजगारी दर अधिक है।

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