चुनौतियों स्वीकार करना है पसंद तो स्पेशल एजुकेटर बन दें करियर को नई दिशा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jan, 2018 11:48 AM

accepting challenges is like becoming a special educator

कुछ बच्चे शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग  होते हैं। उन्हें लर्निंग डिसेबिलिटी की समस्या होती है। इनका मस्तिष्क ऐसा ...

नई दिल्ली : कुछ बच्चे शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग  होते हैं। उन्हें लर्निंग डिसेबिलिटी की समस्या होती है। इनका मस्तिष्क ऐसा नहीं होता कि वे आम बच्चों की तरह सीख पाएं लेकिन विशेष ध्यान देने पर उनकी क्षमता की परख हो सकती है। इसी हुनर को पहचानता है एक स्पैशल एजुकेटर। स्पैशल एजुकेटर बच्चों का दोस्त बन कर उनके मैंटल लैवल को समझता है, उनका कान्फिडैंस बढ़ाता है और आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। यदि आप भी उन लोगों में से एक हैं जिन्हें बच्चों से गहरा लगाव है, नर्म दिल हैं और चुनौतियों को स्वीकारना भी पसंद है तो स्पैशल एजुकेटर के रूप में करियर आपके लिए एक उम्दा विकल्प है 

योग्यता 
साइकोलॉजी के साथ आप इस क्षेत्र में डिप्लोमा, डिग्री के अलावा एम.एससी., एम.फिल, पीएच.डी. तक के कोर्स कर सकते हैं। इसके लिए प्रोफैशनल कोर्स भी उपलब्ध हैं। आप स्पैशल एजुकेशन में बी.एड भी कर सकते हैं जो रैगुलर और पत्राचार माध्यम दोनों ही तरह से उपलब्ध है। इग्नू के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय तथा देश के सभी शहरों में इससे संबंधित कोर्स उपलब्ध हैं।  कई संस्थानों में करवाया जाने वाला बी.एड स्पैशल एजुकेशन कोर्स रिहैबिलिटेशन काऊंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त होता है। कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों में इस कोर्स में दाखिले के लिए छात्र को प्रवेश परीक्षा देनी होती है क्योंकि इन संस्थानों के इस कोर्स में सीमित सीटें होती हैं। बी.एड स्पैशल एजुकेशन कोर्स का मकसद उन स्कूलों में पढ़ाने के लिए सक्षम बनाना है जहां धीमी गति से समझने वाले छात्र पढ़ते हैं

रिहैबिलिटेशन काऊंसिल ऑफ इंडिया 
देश में विशेष जरूरतों वाले लोगों के हित में काम करने वाला यह संस्थान नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है। इसने अनेक सर्टीफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री कोर्स आदि शुरू किए हैं जो देश भर के 450 संस्थानों में करवाए जाते हैं।

कौशल 
चूंकि इस क्षेत्र में मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के साथ काम करना होता है, एक स्पैशल टीचर में उच्च स्तर का धैर्य होना पहली जरूरत बन जाती है। उनमें लगातार सुनने की क्षमता,  सीखने की ललक, काम के प्रति गंभीरता, अच्छा सम्प्रेक्षण कौशल भी प्रदर्शित करना पड़ता है।

अवसर
रोजगार के लिए इस फील्ड में भी विकल्पों की कोई कमी नहीं है। एक स्पैशल एजुकेशन टीचर स्कूल-कॉलेज के अलावा, एन.जी.ओ., प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों व क्लीनिक्स में रोजगार तलाश सकता है। आप स्पीच एंड लैंग्वेज पैथोलॉजी में गै्रजुएट होने के साथ इस क्षेत्र में अनुभवी हैं तो ऑस्ट्रेलिया, इंगलैंड व अन्य यूरोपीय देशों में भी रोजगार की संभावनाएं बनती हैं। आमतौर पर स्पैशल एजुकेटर किसी आम प्राथमिक शिक्षक जितना पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं जो कि करीब 22 से 25 हजार रुपए प्रतिमाह होता है। ट्रेन्ड ग्रैजुएट टीचर का पारिश्रमिक 30 हजार रुपए तक होता है ।

रोजगार विकल्प
इस फील्ड में काम करने वाले स्पैशल एजुकेटर या टीचर के अलावा निम्न स्वरूपों में भी अपनी शुरूआत कर सकते हैं : ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, स्पीच एंड लैंग्वेज थैरेपिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, स्कूल काऊंसलर्स, सोशल वर्कर, एजुकेशनल डाइग्नोस्टिशियन।

प्रमुख संस्थान
रिहैबिलिटेशन काऊंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली (बी.एड इन स्पैशल एजुकेशन)
जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली (एम.एड इन स्पैशल एजुकेशन)
श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरे वुमन्स यूनिवर्सिटी, मुम्बई (बी.एड इन स्पैशल एजुकेशन)
वाई.एम.सी.ए. इंस्टीच्यूट फॉर स्पैशल एजुकेशन, नई दिल्ली

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