दिल्ली विश्वविद्यालय ने आंसर शीट के रिवैल्यूएशन से कमाए 3 करोड़ रुपये

Edited By bharti,Updated: 02 Sep, 2018 05:04 PM

delhi university earns rs 3 crores from reversal of income sheet

डीयू यानि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने 2015-16 और 2017-18 के बीच उत्तरपुस्तिकाओं की...

नई दिल्ली : डीयू यानि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने 2015-16 और 2017-18 के बीच उत्तरपुस्तिकाओं की दोबारा जांच या नंबर दोबारा जोड़ने से करीब 3 करोड़ रुपये की कमाई हुई है। इस बात का खुलासा  एक आरटीआई से मिले जवाब में हुआ है। विश्वविद्यालय द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक, उसने 2015-16 और 2017-18 के बीच अकेले रीवैल्यूएशन से 2,89,12,310 रुपये कमाए हैं। इसी अवधि के दौरान, पुन: जांच से 23,29,500 और छात्रों को उनकी मूल्यांकित उत्तर पुस्तिका की प्रति मुहैया कराने के लिए 6,49,500 रुपये वसूले गए हैं।

ये है नियम
यूनिवर्सिटी के नियम के मुताबिक, एक कॉपी की दोबारा जांच के लिए 1,000 रुपये छात्रों को फीस के तौर पर देना होता है और मार्क्स का फिर से टोटल करवाने या प्राप्तांक के फिर से आकलन के लिए 750 रुपये देना पड़ता है। उत्तरपुस्तिका की कॉपी के लिए भी 750 रुपये का भुगतान करना होता है। इन सब बातों का खुलासा डीयू के एक छात्र डाले गए आरटीआई आवेदन के जवाब में प्राप्त सूचनाओं से हुआ है। 

सीआईसी के फैसले को चुनौती देगा डीयू
कानून के एक पूर्व छात्र ने बताया कि मैंने 2016 में अपनी उत्तर पुस्तिका देखने की मांग करते हुए आरटीआई अर्जी दायर की थी। मेरी याचिका दो सालों के लिए रोक दी गई और उसके बाद मैंने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का सहारा लिया, जिसने विश्वविद्यालय को आरटीआई की धारा 2 (जे) के तहत उत्तर पुस्तिका की जांच का आदेश दिया। विश्वविद्यालय ने हालांकि अभी मुझे मेरी उत्तर पुस्तिका दिखाने के लिए नहीं बुलाया है। कहा गया है कि वे मामले को हाईकोर्ट में ले जाएंगे।आरटीआई की धारा 2 (जे) के तहत कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के तहत रखे गए रिकॉर्ड को हासिल कर सकता है, जिसमें निरीक्षण, नोट्स, निष्कर्ष अन्य उद्देश्य शामिल हैं। आवेदक ने कहा कि उसे अपनी उत्तर पुस्तिका की जांच की इजाजत दे गई है और अगर कोई भी अंतर पाया जाता है तो वह दोबारा गणना- रीवैल्यूएशन के लिए कह सकते हैं, जिसे विश्वविद्यालय को मुफ्त में ठीक करना होगा, क्योंकि वह विश्वविद्यालय द्वारा की गई गलतियों के लिए भुगतान करने को बाध्य नहीं है
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विश्वविद्यालय अपनी गलतियों के लिए छात्रों से भुगतान करा रहे  
उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर जनहित का मुद्दा है। हर कोई इतना अमीर नहीं कि वह पुनर्मूल्यांकन के लिए एक हजार रुपये या 750 रुपये चुकाए। यह ठीक भी है कि अगर कोई अंतर पाया जाता है तो विश्वविद्यालय को उसे बिना किसी कीमत के ठीक करने के लिए बाध्य होना चाहिए। वे (विश्वविद्यालय प्रशासन) अपनी गलतियों के लिए छात्रों से भुगतान करा रहे हैं। सीआईसी ने 18 अगस्त के अपने फैसले में दिल्ली विश्वविद्यालय को व्यापक जनहित में आवेदक को उसकी उत्तर पुस्तिका जांचने की इजाजत देने को कहा था। 

सीआईसी के फैसले के बाद भी उत्तर पुस्तिका जांचने की इजाजत नहीं देने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र ने एक और आरटीआई के माध्यम से विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी से संपर्क किया, जिसने उन्हें बताया कि विश्वविद्यालय की परीक्षा शाखा ने आदेश को चुनौती देने का फैसला किया है।इससे पहले विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने सीआईसी के समक्ष दावे के साथ कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत उत्तर पुस्तिका की जांच की इजाजत देने के खिलाफ हैं।

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