जातिवाद पर चुप्पी तोड़ती प्रेम कहानी है ‘धड़क 2’: शाजिया इकबाल

Updated: 14 Aug, 2025 01:08 PM

dhadak 2 director shazia iqbal exclusive interview with punjab kesari

फिल्म धड़क 2 और इसके संदेश को लेकर निर्देशक शाजिया इकबाल ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। निर्देशिका शाजिया इकबाल की फिल्म धड़क 2 दर्शकों के दिलों को छूने में कामयाब रही है। धर्मा प्रोडक्शंस, ज़ी स्टूडियोज़ और क्लाउड 9 पिक्चर्स के बैनर तले बनी इस फिल्म में तृप्ति डिमरी, सिद्धांत चतुर्वेदी और सौरभ सचदेवा मुख्य भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं। फिल्म की कहानी एक ऐसे प्रेम की दास्तान है जो जातिवाद की सामाजिक दीवारों से टकराती है। यह प्रेम कहानी तमाम बाधाओं के बावजूद अपने अंजाम तक पहुंचती है और अंततः प्यार की जीत होती है। फिल्म और इसके संदेश को लेकर निर्देशक शाजिया इकबाल ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश
 

शाजिया इकबाल
 
प्रश्न 1- यह फिल्म बनाने का विचार आपके मन में कैसे आया? 
उत्तर-
दरअसल यह फिल्म मारी सेल्वराज की तमिल फिल्म परियेरुम पेरुमल का अडॉप्टेशन है। इस फिल्म के राइट्स प्रोडक्शन हाउस के पास थे। मेरी शॉर्ट फिल्म बेबाक देखने के बाद सोमेन मिश्रा ने मुझसे संपर्क किया। उन्होंने मुझसे पूछा कि अगर मेरे पास कोई स्क्रिप्ट है तो वे बनाना चाहेंगे। हालांकि मेरी पहली स्क्रिप्ट नहीं बन पाई, लेकिन बाद में जब परियेरुम पेरुमाल के राइट्स उनके पास आए तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं इसे डायरेक्ट करना चाहूंगी।
फिल्म देखने के बाद मुझे लगा कि इसमें बहुत कुछ कहने का स्कोप है। फिर करण जौहर से मुलाकात हुई, उन्हें भी मेरी शॉर्ट फिल्म बेहद पसंद आई और उन्होंने मुझे कहा कि वे मानते हैं मैं इस फिल्म को निर्देशित करने के लिए सही इंसान हूं।

प्रश्न 2- कास्टिंग प्रोसेस कैसा रहा? खासकर तृप्ति डिमरी, सिद्धांत चतुर्वेदी और सौरभ सचदेवा की परफॉर्मेंस को काफी सराहा गया है।
 उत्तर-
जब स्क्रिप्ट लिखने का डेवलपमेंट फेज पूरा हुआ तो स्टूडियो और प्रोड्यूसर्स के साथ मिलकर कास्टिंग शुरू हुई। सिद्धांत का नाम सबसे पहले सामने आया। मुझे गली बॉय में उनका काम पसंद था लेकिन फिर मैंने इनसाइड एज का एपिसोड देखा और उनकी रेंज देखकर इंप्रेस हो गई। करण ने सिद्धांत के साथ मीटिंग तय की और स्क्रिप्ट सुनाई। स्क्रिप्ट सुनते ही उन्होंने तुरंत हां कर दी। तृप्ति को लेने का निर्णय थोड़ा बाद में हुआ। हम लगभग चार महीने तक एक्ट्रेस की तलाश करते रहे। सिद्धांत और करण ने तृप्ति का नाम सुझाया। लैला-मजनू में मैंने उन्हें पहले देखा था और जब उन्हें स्क्रिप्ट सुनाई गई तो वे पूरी तरह इन्वॉल्व हो गईं। सौरभ सचदेवा के किरदार के लिए पहले कई बड़े नामों पर विचार हुआ लेकिन डेट्स की दिक्कत रही। तभी जाने जा रिलीज हुई और सौरभ को देखकर लगा कि यही सही कलाकार हैं। मुकेश छाबड़ा ने कनेक्ट कराया और उन्होंने स्क्रिप्ट सुनकर तुरंत हामी भर दी। हमारी कास्ट एक तरह से एन्सेंबल कास्ट थी। तृप्ति, सिद्धांत, सौरभ के अलावा प्रियांक, साद, आदित्य, दीक्षा, मंजरी, विपिन, जाकिर हुसैन सभी ने शानदार काम किया। भोपाल के थिएटर एक्टर्स ने भी छोटे-छोटे रोल्स में गजब का असर डाला।

प्रश्न 3- फिल्म जाति जैसे गंभीर मुद्दे पर आधारित है साथ ही एक लव स्टोरी भी दिखती है। इसे बैलेंस करना कितना चुनौतीपूर्ण था?
उत्तर-
मेरे लिए यह कोई ब्रेव स्टेप नहीं था बल्कि मुझे यह बहुत जरूरी लगा। जब आप कोई लव स्टोरी दिखा रहे हो तो उस कपल की पहचान, जाति, वर्ग आदि भी उनके रिश्ते पर असर डालते हैं। मैं मणिरत्नम, श्याम बेनेगल, सईद मिर्जा जैसे फिल्ममेकर्स से बहुत प्रभावित हूं जिन्होंने अपनी फिल्मों में पहचान और समाज को कभी कैरेक्टर से अलग नहीं रखा। मुझे लगता है कि पहचान को अलग करके आप लव स्टोरी को कमजोर कर देते हैं। इसलिए मैंने कोशिश की कि लव स्टोरी के साथ-साथ सामाजिक यथार्थ को भी सामने लाया जाए।

प्रश्न 4- क्या आपको लगता है कि आज की जेन-ज़ी पीढ़ी जातिवाद से ऊपर उठ चुकी है?
उत्तर-
नहीं, मुझे नहीं लगता कि हम जातिवाद से ऊपर उठे हैं। मैं देखती हूं कि आज भी बहुत सारे युवा अपने माता-पिता, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव में इतने हैं कि वे चीज़ों को सवाल करना ही नहीं चाहते। जब तक हम अपने लिए खुद नहीं सोचते तब तक बदलाव संभव नहीं है। जातिवाद और सामाजिक पहचान आज भी गहराई से हमारे समाज में मौजूद हैं सिर्फ सोशल मीडिया पर बात हो जाने से बदलाव नहीं आता।

प्रश्न 5- निर्देशन के लिए आपके अनुसार सबसे जरूरी तत्व क्या है कहानी, अभिनय या कैमरा?
उत्तर-
मेरे लिए सबसे जरूरी है कहानी। एक निर्देशक को टेक्निकल चीज़ों का ज्ञान हो या न हो अगर कहानी में दम है और सहयोगी टीम अच्छी है तो फिल्म बनाई जा सकती है। धड़क 2 कोई पहली फिल्म नहीं है जो इंटरकास्ट लव स्टोरी पर आधारित है लेकिन इसमें मैंने एक खास नज़रिया पेश किया है जैसे कि निलेश को अपनी पहचान स्वीकार करनी चाहिए और विधि को एक महिला होने के नाते अपनी स्वतंत्रता के लिए खड़ा होना चाहिए।

प्रश्न 6- निर्देशन में आने से पहले आपने 13 साल प्रोडक्शन डिजाइनर के तौर पर काम किया। डायरेक्शन की ओर रुख कैसे हुआ? 
उत्तर-
मैं पहले एडवरटाइजिंग में थी लेकिन धीरे-धीरे उसमें रुचि खत्म हो गई। फिर मैंने स्क्रिप्ट लिखना शुरू किया और वो अच्छा लगने लगा। एक स्क्रिप्ट लैब में मेरी कहानी सिलेक्ट हो गई वहां तारीफ भी मिली। इसके बाद मैंने शॉर्ट फिल्म डायरेक्ट की और डायरेक्शन की तरफ कदम बढ़ाए। फिल्म स्कूल नहीं गई थी इसलिए खुद पढ़कर, वीडियो देखकर और एक वर्कशॉप करके सीखा। यह एक लंबी प्रक्रिया थी कोई एक मोमेंट नहीं था।

प्रश्न 7- सेंसर बोर्ड के सामने फिल्म पेश करते समय क्या कोई बात ध्यान में रखी थी?
उत्तर-
मेरे लिए यह पहला अनुभव था। बेबाक शॉर्ट फिल्म सेंसर हो चुकी थी लेकिन वहां अनुभव सीमित था। धड़क 2 के लिए मैं बिल्कुल क्लीन स्लेट के साथ गई। हमें इस बात का डर था कि शायद कुछ कट्स मिलें लेकिन मैंने फिल्म इस सोच के साथ नहीं बनाई कि क्या चीज़ें लोगों को आहत कर सकती हैं। आज के समय में कुछ भी किसी को आहत कर सकता है इसलिए हर चीज़ को सोचकर लिखना और बनाना संभव नहीं है।

प्रश्न 8- भविष्य में आप किस तरह की फिल्में बनाना चाहेंगी? क्या सामाजिक मुद्दे ही आपका फोकस रहेगा?
उत्तर-
नहीं, मेरा कोई एजेंडा नहीं है समाज सुधारने का। मेरा सिर्फ इतना मानना है कि जो चीज़ें समाज में सामान्य हो गई हैं लेकिन असल में सही नहीं हैं उन्हें चुनौती देना कलाकार का काम होता है। मैं अगली बार एक एक्शन-कॉमेडी बनाना चाहती हूं लेकिन उसमें भी एक सोशल कमेंट्री होगी। जैसे हॉरर या सुपरहीरो जॉनर में भी आप गंभीर बातें कह सकते हैं उसी तरह मैं भी मनोरंजन के साथ कुछ गहराई लाना चाहती हूं।

 

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