सौ से अधिक संस्कृत कविताओं के लेखक और दर्जन से अधिक ग्रन्थों के सम्पादक हैं डॉ. ऋषिराज पाठक

Edited By Varsha Yadav,Updated: 31 Mar, 2024 01:33 PM

dr rishiraj pathak is the author of more than a hundred sanskrit poems

साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार प्राप्त डॉ. ऋषिराज पाठक वेद, साहित्य, संगीत और नाट्यशास्त्र के विद्वान् हैं। संस्कृत, हिन्दी और ब्रजभाषा के कवि ऋषिराज पाठक ने संस्कृत में १०० से अधिक रचनाएँ लिखी हैं।

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार प्राप्त डॉ. ऋषिराज पाठक वेद, साहित्य, संगीत और नाट्यशास्त्र के विद्वान् हैं। संस्कृत, हिन्दी और ब्रजभाषा के कवि ऋषिराज पाठक ने संस्कृत में १०० से अधिक रचनाएँ लिखी हैं। संस्कृत में उनके दो काव्य ग्रन्थ प्रकाशित हैं। उनके पहले काव्य संकलन आद्योन्मेषः में अलग अलग विधाओं और विषयों पर लिखी ५१ कविताएँ प्रकाशित हैं। उनके दूसरे ऐतिहासिक खण्डकाव्य श्रीमदूधमसिंहचरितम् में जलियाँवाला बाग की घटना के नायक क्रान्तिवीर श्री ऊधम सिंह के जीवन चरित का वर्णन है। ऋषिराज की अनेक नृत्य रचनाएँ अप्रकाशित भी हैं।

 

इसके अलावा ऋषिराज पाठक अपने गुरु आचार्य रमाकान्त शुक्ल के अभिनन्दन ग्रन्थ श्रीहीरकप्राभृतम् के चार खण्डों के सम्पादक हैं। इस ग्रन्थ में आचार्य रमाकान्त शुक्ल के विषय में समकालीन विद्वानों, कवियों और लेखकों की प्रशस्तियाँ और आधुनिक संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित हैं। 

 

ऋषिराज पाठक ने अपने पिता श्री नारायण पाठक की रचनाओं को भी नारायण-रचनावली नाम से पाँच खण्डों में प्रकाशित किया है। नारायण-रचनावली के प्रथम खण्ड सद्गुरु-महिमा एवं आध्यात्मिक उद्बोधन में सद्गुरु तत्त्व का महत्त्व और आध्यात्मिक विषयों का वर्णन है। दूसरे खण्ड सांस्कृतिक एवं नैतिक उद्बोधन में भारतीय संस्कृति, देशभक्ति और नैतिक शिक्षा से सम्बन्धित रचनाएँ हैं। तीसरे खण्ड श्रीकृष्ण-ब्रज-होली-लीला एवं सुदामा चरित में भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं और सुदामा चरित का वर्णन है। चौथे खण्ड नारायण-रामायण में भगवान् श्री राम का चरित नौटंकी शैली में वर्णित है। पाँचवें खण्ड शिव-शक्ति-स्तुति में भगवान् शिव और माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा भाव गेय भजनों के माध्यम से वर्णित हुआ है। नारायण-रचनावली में एक हज़ार से अधिक गेय रचनाओं का संकलन है। 

 

ऋषिराज के पिता श्री नारायण पाठक हिन्दी और ब्रजभाषा के उत्कृष्ट कवि रहे हैं। भक्त कवि श्री नारायण पाठक आध्यात्मिक साधक और प्रवक्ता थे जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक रचनाओं के माध्यम से समाज को प्रेरित किया।

    

इसके अलावा ऋषिराज पाठक ने आचार्य उमाकान्त शुक्ल कृत अन्योक्तिवसन्ततिलकम्, चेतःपंचाशिका और अनुबोधपंचाशिका जैसे संस्कृत काव्यों का भी सम्पादन किया है।

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