Exclusive interview:  मैं खुश हूं कि मैं अब पूरी तरह ओरिजिनल हूं- शाहिद कपूर

Edited By Varsha Yadav,Updated: 05 Feb, 2024 06:04 PM

exclusive interview kriti senon and shahid kapoor

तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' ऐसे ही कॉन्सेप्ट पर बनी फिल्म है, जिसमें इंसान बने शाहिद कपूर रोबोट कृति सेनन के प्यार में पड़ जाते हैं।

नई दिल्ली। बॉलीवुड में आज तक एक से बढ़कर एक लव स्टोरीज देखने को मिली हैं, जिन्हें दर्शकों ने भी खूब प्यार दिया। लेकिन बदलती टेक्नोलॉजी के हिसाब से प्रेम की कहानियां भी बदल रही हैं। 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' ऐसे ही कॉन्सेप्ट पर बनी फिल्म है, जिसमें इंसान बने शाहिद कपूर रोबोट कृति सेनन के प्यार में पड़ जाते हैं। फिल्म में पहली बार शाहिद और कृति स्क्रीन शेयर कर रहें हैं। ऐसे में फैंस को भी पर्दे पर दोनों स्टार्स की केमिस्ट्री देखने का बेसब्री से इंतजार है। 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' वैलेंटाइन वीक में 9 फरवरी 2024 सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए तैयार है। ऐसे फिल्म के बारे में दोनों एक्टर्स ने पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्स/जगबाणी/ हिंद समाचार से खास बातचीत की।   

(शाहिद कपूर)
सवाल- इस नई और इम्पॉसिबल लव स्टोरी पर आपका क्या कहना है? 
जवाब- हो सकता है कि फ्यूचर में ऐसा हो क्योंकि फिल्में हम उन चीजों पर बनाते हैं जो हम आम जिंदगी में अनुभव करते हैं और कुछ फिल्में हम ऐसी बनाते हैं जो शायद हम सभी एक्सपीरियंस नहीं कर सकते हैं लेकिन कुछ वक्त बाद कर सकते हैं।15 साल पहले इंस्टाग्राम, सोशल मीडिया, एआई, चैटजीपीटी कुछ भी नहीं था तो हमें क्या पता 10 साल बाद कौन सी नई चीजें आ जाएं। ऐसे में मुझे लगा कि किसी ने कुछ नया सोचा है। ये चीजें भले ही आज हमारे लिए मानना थोड़ा मुश्किल है लेकिन हमें पता कि इस तरफ तो हम लोग जा रहे हैं। फोन पर हम इंसानों से ज्यादा समय बिता रहे हैं, तो टेक्नोलॉजी पर हमारी निर्भरता ज्यादा से ज्यादा बढ़ती जा रही है। वो चीजें जो इंसानों में होती हैं उसकी आदत हमारी छूटती जा रही है और जो चीजें हमें सेवाएं दे रहीं उसकी आदत हमें ज्यादा पड़ रही है। तो मुझे लगा कि ये विषय बहुत रिलेवेंट हैं। इसमें फैमिली है, रोमांस है, लव स्टोरी है लेकिन सबसे बड़ी बात जो हम कर रहे हैं कि आज की तनकीन आगे कहां तक जा सकती है। क्या यह इंसानों की पर्सनल चीजों को भी रिप्लेस करना शुरु कर देगा? 

 

सवाल- चॉकलेट बॉय से लेकर आपकी आजतक की जर्नी काफी बदल गई है, तो ये फिल्मों के हिसाब से हुआ या आप भी ऐसा चाहते थे?  
जवाब- ये सब तो बहुत पहले ही शुरु हो गया था। 'कमीने' फिल्म में भी मेरा किरदार कुछ उसी तरह का था लेकिन मुझे उन्ही फिल्मों ने मुझे कुछ अलग और हटकर करने के लिए मोटिवेट किया नहीं तो मैं एक ही चीज करता रहता। बार-बार एक जैसे रोल पर्दे पर दोहराने से आप कुछ नया नहीं सीखते। इसीलिए मुझे एक ही चीज बार-बार करना पसंद नहीं है। हालांकि मैं जानता हूं कई एक्टर्स एक जैसा रोल करके सफल भी रहे हैं। लेकिन मैं वैसा नहीं हूं। मैं दिल से क्रिएटिव हूं। अब काफी टाइम बाद इस जॉनर में काम किया तो मुझे काफी मजा आया। 

 


सवाल- कृति के साथ आप पहली बार स्क्रीन शेयर कर रहे हैं, तो उनकी कौन सी आदतें आपको सबसे अच्छी लगी? 
जवाब- जब आप उस आर्टिस्ट के साथ काम करते हैं जिनका काम देखकर आपको मजा आता है, तो आपके लिए काफी एक्साइटेड होता है। मुझे ऐसा लगता है कि कुछ सालों में कृति ने खुदपर काफी मेहनत की है। मैंने ऊपर से भले ही हीरो जैसे कपड़े पहने हैं लेकिन मैं अंदर से एक्टर ही हूं, तो जब भी कोई अच्छी एक्टिंग करता है तो मेरा दिल भी बहुत खुश होता है। वैसा मुझे कृति की कुछ परफॉर्मेंस में महसूस हुआ। जब हम पहली बार मिले तब बिल्कुल नहीं लगा कि मुझे कुछ मैनेज करना पड़ेगा। उनकी कोई उलझने नहीं थी, जिससे मुझे कोई दिक्कत हो। सबसे बड़ी बात कृति को पता है कि वो क्या कर रही हैं, वो उस फेज से निकल गई हैं जहां लोग कन्फ्यूज होते हैं कि मैं क्या कर रही हूं? आगे क्या करना चाहिए? मैंने उनके साथ काम करना काफी एंजॉय किया और उम्मीद है कि हम दोबारा फिर साथ काम करेंगे। 

 

सवाल- आप हर किरदार में इतनी अच्छी तरह कैसे ढल जाते हैं? 
जवाब- आज जब मैं अपने करियर को देखता हूं तो शुरुआती दस सालों में मैंने बहुत सारी गलतियां की हैं, जिनसे मैंने बहुत सीखा भी है। गलती सब करते हैं, लेकिन उससे आप सीखते कितना है ये जरूरी है। कभी-कभी तो आपको रिलाइज होता है कि आपने कितना अमेजिंग काम किया लेकिन फिर भी वो आपकी सबसे बडी गलती साबित हुई। खासतौर से क्रिएटिव फील्ड में ऐसा सबसे ज्यादा होता है, जब आपने अपने दिल से सबकुछ किया हो लेकिन जब पीछे जाकर उसे देखते हैं और कहते हैं कि यार मैं ये क्या कर रहा था। आप अपने अनुभव से सीखते हैं और सोचते हैं कि अब मैं किसी दूसरे की तरह नहीं बनना चाहता हूं। पहले पांच साल मैंने ये बहुत किया लेकिन अब मैं खुश हूं कि मैं पूरी तरह ओरिजिनल हूं। 

 

(कृति सेनन)
सवाल- इंसानों में भावनाएं सबसे ज्यादा होते हैं तो अगर उसमें भी एआई आ जाएगा तो उसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
जवाब- सच कहूं तो आगे जाकर कुछ भी हो सकता है। यहां एक ह्यूमन को रोबोट से प्यार हो रहा है तो अगर हम इसको भारतीय परिवार के बीच ले जाकर रख दें तो क्या-क्या हो सकता है। मुझे बेहद खुशी है कि मैं इस फिल्म का हिस्सा हूं और इसमें एक नए कॉन्सेप्ट पर बात हो रही है। इसे आप फैमिली, फ्रेंड्स, ग्रुप और पार्टनर सभी के साथ देख सकते हैं। जब मैं इसकी स्क्रिप्ट पढ़ रही थी तो मुझे लगा कि मैं इस कहानी से कैसे जुड़ गई जबकि मुझे पता था कि वो रोबोट है। मैं फिर भी चाहती थी कि दोनों साथ रहें। 

 

सवाल- रोबोट का किरदार निभाना आपके लिए कितना चैलेजिंग रहा? 
जवाब- मैंने इस जॉनर की फिल्में तो की हैं लेकिन रोबोट का रोल पहली बार निभा रही हूं। सबसे बड़ी बात मेरे पास इसके लिए ज्यादा रेफरेंस नहीं थे लेकिन अगर आप रोबोट को लेकर अपने विचारों को साइड में रखकर देखेंगे तो रोबोट और इंसान बहुत हद तक मिलते जुलते हैं। वो प्यार कर सकते हैं, उनमें फीलिंग्स हैं, ऐसे में बतौर एक्टर मेरे लिए इस रोल को प्ले करना काफी एक्साइटिंग था। हां कहीं-कहीं चैलेजिंग भी था, मुझे टेक देते हुए ध्यान रखना पड़ता था कि क्या शिप्रा नहीं कर सकती। शिप्रा के चलने, उठने और बैठने का तरीका काफी अलग रहता था।

 

 

सवाल- मैडॉक के साथ यह आपका सातवां प्रोजेक्ट है, ऐसे में सेट पर काफी पारिवारिक माहौल रहता होगा? 
जवाब- मुझे लगता है कि आप जब साथ में इतनी बार काम कर चुके होते हैं या कर रहे होते हैं तो आपकी जिम्मेदारी भी उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती हैं। आपको पता होता है कि प्रोजेक्ट की दिशा क्या हो सकती है? आपको कैसे काम करना है? मैंने इतनी फिल्म की लेकिन सबका कॉन्सेप्ट और किरदार काफी अलग- अलग थे। तो कुछ नया पाने के लिए कुछ नया करना भी पड़ता है। बाकी सेट पर घर जैसा माहौल रहता था काम करने में बहुत कंफर्टेबल तो होता ही था, साथ ही मजा भी आता था। 

सवाल- रोबोट के किरदार से बाहर निकलना आपके लिए कितना मुश्किल रहता था?  
जवाब- नहीं नहीं शिप्रा के किरदार से मैं आसानी से बाहर निकल आती थी। हां कुछ-कुछ जगह थोड़ी परेशानी जरूर हुई क्योंकि शिप्रा तो रोबोट है, जो पूरी तरह ह्यूमन की तरह लगती है, मगर है नहीं और सीन में मेरे अंदर से इमोशन निकल आते थे। ऐसे में मुझे खुद को काफी कंट्रोल करना पड़ता था।  हर बार जब हम टेक लेते थे तो इस बारे में काफी बात किया करते थे कि कहीं ज्यादा ह्यूमन तो नहीं लग रहा है या ज्यादा रोबोटिक तो नहीं लग रहा। सब कुछ बिल्कुल बैलेंस करना काफी चुनौतिपूर्ण था।

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