‘सैम बहादुर’ में काम करना जिंदगी का सबसे बड़ा अवॉर्ड : विक्की कौशल

Updated: 29 Nov, 2023 09:58 AM

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सैम बहादुर के निर्देशक और स्टारकास्ट ने की ‘पंजाब केसरी ग्रुप से खास बातचीत

नई दिल्ली,टीम डिजिटल। भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के अदम्य साहस और वीरता को दिखाती फिल्म ‘सैम बहादुर’ 1 दिसम्बर को सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है। फिल्म में सैम मानेकशॉ के किरदार में विक्की कौशल नजर आएंगे, जो ट्रेलर में ही हर एंगल से शानदार दिख रहे हैं। उनके अलावा इस फिल्म में फातिमा सना शेख, नीरज काबी, सान्या मल्होत्रा और जीशान अयूब जैसे बेहतरीन कलाकार अहम रोल में हैं। ‘सैम बहादुर’ का निर्देशन मेघना गुलजार ने किया है, जिन्होंने ‘गिल्टी’, ‘छपाक’ और ‘राजी’ जैसी फिल्में भी बनाई हैं। फिल्म के बारे में निर्देशक मेघना गुलजार, विक्की कौशल और सान्या मल्होत्रा ने पंजाब केसरी(जालंधर) / नवोदय टाइम्स/ जगबाणी हिंद समाचार से खास बातचीत की-

आर्मी ऑफिसर हमारे देश के रियल हीरो होते हैं : विक्की कौशल

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Q. आपको आर्मी ऑफिसर के किरदार इतने पसंद क्यों हैं, अब तो हम आपको देखकर  कंफ्यूज हो जाते हैं कि ये विक्की हैं या आर्मी ऑफिसर ?
A-आर्मी ऑफिसर हमारे देश के रियल हीरो होते हैं। उनसे मैं बहुत इंस्पायर होता हूं। आर्मी ऑफिसर का किरदार निभाने में हमेशा गर्व महसूस होता है। मुझे जब भारतीय सेना की वर्दी पहनने का मौका मिलता है, तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं काम के जरिए कुछ मीनिंगफुल अच्छी कहानियां दे पा रहा हूं और सैम बहादुर जैसी कहानी तो लाइफ में सिर्फ एक बार ही आती है। तो यह फिल्म मिलना और यह किरदार मिलना हर एक्टर के लिए एक सपने जैसा होता है।

यह एक ऐसा किरदार है जो आपको आत्मविश्वास भी देता है कि ऐसी बड़ी चुनौती आपने फेस की और लोगों को आपका काम पसंद आ जाए तो आपका आत्मविश्वास आगे के लिए और बढ़ता है।

इसके अलावा ऐसे किरदारों से आपको सीखने को बहुत कुछ मिलता है और मुझे इस पूरी जर्नी में इस टीम के साथ बहुत सीखने को मिला है क्योंकि जीवन में ऐसे अवसर कम मिलते हैं कि किसी के जीवन में जाकर आपको उसके बारे में इतना जानने को मिले। कुछ किरदारों को सिर्फ करना ही बहुत सम्मान की बात होती है। सैम बहादुर करना ही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा अवॉर्ड है।

Q. सैम बहादुर की जर्नी कैसी रही, क्या मुश्किलें आई?
A -सैम बहादुर मेरे लिए एक ऐसा अवसर था कि जिसमें किसी किरदार को जीने का, उसे पूरी गहराई से समझने का मौका मिला। मैं कोई ऐसा किरदार करना भी चाहता था, जिसमें पूरी तरह ढलने का मौका मिले और इस फिल्म में मुझे मौका मिला कि मैं खुद को पूरी तरह एक किरदार में झोंक सकूं। साथ ही मुझे पता था कि जब सैम बहादुर शुरू होगी तो पूरे साल अपना सारा फोकस इसी में करना है। रही लुक की बात तो मेघना के पास ऐसी टीम थी, जिसने मुझे पूरी तरह सैम बहादुर के लुक में ढाल दिया और इस किरदार को निभाने का अनुभव भी मेरा बहुत अलग और अच्छा रहा।

Q. काल्पनिक किरदार निभाना आसानी होता है या बड़ी शख्सियत का किरदार निभाना?
A -एक काल्पनिक किरदार को निभाना ज्यादा आसान होता है क्योंकि उसमें आप पर कोई दबाव नहीं होता कि आपको ऐसा ही करना है। लेकिन जब किसी की असल जिंदगी पर फिल्म बनी है तो मतलब उन्होंने कुछ बड़ा किया है। आप पर भी उस किरदार को निभाते हुए यह जिम्मेदारी होती है कि आपको उन्हीं की तरह चलना है, दिखना है। इसमें आप अपना कोई तरीका नहीं क्रिएट कर सकते। लेकिन काल्पनिक किरदार में आपके पास छूट होती है कि उसे आपको कैसे करना है, आपका उसमें क्या एंगल है।

फिल्म के लिए मुझे अपनी आवाज पर काम करना पड़ा : सान्या मल्होत्रा, अभिनेत्री

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Q. आपको जब यह फिल्म ऑफर हुई तो पहला ख्याल क्या आया था ?
A- जब मेरे पास मेघना मैम का कॉल आया उन्होंने मुझे इसके बारे में बताया तो पहले तो मैं हैरान थी कि मुझे ये रोल ऑफर हुआ। मैं हमेशा से ही ऐसे अवसर के तलाश में थी जिससे मुझे कुछ नया करने और नया सीखने को मिले और जब मुझे ये अवसर मिला तो मैंने बिल्कुल देर नहीं की और सोचा कहीं किसी और को न मिल जाए इसलिए मैंने मेघना मैम को इस किरदार के लिए तुरंत हां कर दिया।

Q. आप अलग -अलग जॉनर की फिल्में कर चुकी हैं इस किरदार को निभाना कितना मुश्किल रहा ?
A- हम कोई भी किरदार निभाए सभी में चुनौतियां होती ही हैं। लेकिन जब हमें किसी व्यक्ति की असल जिंदगी में खुद को ढालना हो तो उसकी हर एक बारीकियों को समझना पड़ता है। जैसे इस फिल्म के लिए मुझे अपनी आवाज पर थोड़ा काम करना पड़ा जो वैसी ही लगे जैसे रियल में सीलू की थी और मैं मेघना मैम को थैंक्स कहना चाहूंगी कि जब इस रोल पर मैं तैयारी कर रही थी तो उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है जैसे सीलू कैसे बोलती थीं कैसी दिखती थीं। वहीं, इस फिल्म के लिए मेरे बहुत बार लुक टेस्ट हुए ताकि मैं सीलू जैसा दिखने में कोई कमी न रह जाए। उनके लुक को क्रिएट करना भी कहीं न कहीं एक चुनौती ही थी।

Q. आपको इस फिल्म से क्या सीखने को मिला?
A- इस फिल्म में मैंने बहुत कुछ सीखा है। मैं मेघना मैम और विक्की से बहुत प्रेरित हुई हूं। शूटिंग शुरु हुए करीब तीन महीने हो गए थे, जिसके बाद मैं सेट पर आई थी। जोधपुर में मेरा पहला दिन था शूट का , मैं सेट पर पहुंची और हम पद्म भूषण वाला सीन शूट कर रहे थे। विक्की से मिले करीब तीन महीने हो गए थे, बाद में जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। वो बिल्कुल सैम मानेकशॉ की तरह लग रहे थे, उनका चलना, बोलना सब कुछ बिल्कुल उन्हीं की तरह था। ऐसे में मुझे इन दोनों ही लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला। एक कलाकार के रूप में मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मुझे यह फिल्म करने का मौका मिला।


स्क्रिप्ट होती है तो आपको खुद ही दिमाग में किरदार दिखने लगते हैं : मेघना गुलजार, निर्देशक

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Q. सैम मानेकशॉ पर फिल्म बनाने का आइडिया कैसे आया? उनकी जिंदगी के कौन से पक्ष ने आपको अट्रैक्ट किया?
A -फिल्म बनाने का आइडिया हमारे प्रोड्यूसर को आया था। उन्होंने सैम मानेकशॉ का जिक्र मेरे सामने किया। उस समय मैं इनके बारे में इतना नहीं जानती थी लेकिन जो थोड़ा पता था, उससे यह समझ आ गया था कि उनके व्यक्तित्व में वह कहानी है जो कही जानी चाहिए। उनके जीवन के किसी एक पहलू की बात करना उनके बाकी जीवन में किए गए कामों के साथ नाइंसाफी होगी। लेकिन एक बात मैं बताना चाहूंगी कि वह इंडियन एकेडमी के पहले बैच में थे, जिन्हें पनिशमेंट मिली थी और वही शख्स जाकर इंडिया के पहले फील्ड मार्शल बनें।

Q. आप आगे फिल्म की स्टारकास्ट के चुनाव में सटीक रहती हैं, ऐसा लगता है उनको ध्यान में रखकर फिल्में बनानी हैं, यह कैसे करती हैं ?
A -जब आपके पास किसी फिल्म की स्क्रिप्ट होती है तो खुद ही दिमाग में किरदार दिखने लगते हैं और एक्टर्स के चेहरे भी सामने आने लगते हैं। यह मेरी खुशनसीबी है कि मैं जो एक्टर्स पहले सोचती हूं तो फिर मुझे बाद में कभी उससे पीछे नहीं हटना पड़ता। जब दो लोग साथ में काम करते हैं तो दोनों की सोच, उनका उद्देश्य एक होता है तो उसका नतीजा भी वैसा आता है। किसी किरदार में वह एक्टर खुद को इतना ढाल लेते हैं कि आपको लगता है कि इससे अच्छा कोई और कर ही नहीं सकता है। साथ ही मेरा सौभाग्य है कि जितने भी कलाकारों के साथ मैंने काम किया है उन्होंने मुझ पर मेरी फिल्म पर भरोसा किया है।

Q. सामान्य फिल्म बनाने के मुकाबले देशभक्ति की फिल्म बनाना कितना मुश्किल है ?
A -जब हम किसी की असल जिंदगी पर या किसी आर्मी ऑफिसर की जिंदगी पर फिल्म बनाते हैं तो जिम्मेदारी होती है कि उनके अस्तित्व, उनके व्यक्तित्व और उनकी यादों से छेड़छाड़ न हो। साथ ही असल जिंदगी पर बनी फिल्म में सटीकता दिखाना बहुत जरूरी और चुनौतीपूर्ण होता है। और इस फिल्म में हमारी मूल भावना देशभक्ति की नहीं एक किरदार की जिंदगी को दिखाने की थी अगर उस किरदार से लोगों में देशभक्ति की भावना जागती है तो वो बहुत ही अच्छी बात है।

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