भारत ने ली हिन्दी को बचाने की जिम्मेदारी : सुषमा स्वराज

Edited By Sonia Goswami,Updated: 18 Aug, 2018 02:13 PM

11th world hindi conference

संस्कृति और भाषा को बचाने पर जोर देते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि अलग-अलग देशों में हिन्दी को बचाने की जिम्मेदारी भारत ने ली है। 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान अपने उद्घाटन संबोधन में सुषमा स्वराज ने कहा कि भाषा और संस्कृति एक दूसरे...

पोर्ट लुई/मारिशस: : संस्कृति और भाषा को बचाने पर जोर देते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि अलग-अलग देशों में हिन्दी को बचाने की जिम्मेदारी भारत ने ली है। 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान अपने उद्घाटन संबोधन में सुषमा स्वराज ने कहा कि भाषा और संस्कृति एक दूसरे से जुड़ी हैं। ऐसे में जब भाषा लुप्त होने लगती है तब संस्कृति के लोप का बीज उसी समय रख दिया जाता है।

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उन्होंने कहा कि जरूरत है कि भाषा को बचाया जाए, उसे आगे बढ़ाया जाए, साथ ही भाषा की शुद्धता को बचाए रखा जाए । विदेश मंत्री ने कहा कि हिन्दी भाषा को बचाने, बढ़ाने और उसके संवद्र्धन के बारे में कई देशों में चिंताएं सामने आई। ऐसे में इन देशों में लुप्त हो रही इस भाषा को बचाने की जिम्मेदारी भारत की है। उन्होंने कहा कि इस बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह ‘मोर के साथ डोडो’ है। पिछली बार मोर था, इस बार इसमें डोडो को भी जोड़ दिया गया है। डोडो लुप्त होती हिन्दी का प्रतीक है और भारत का मोर आएगा और उसे बचाएगा ।      

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मारिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ ने 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर दो डाक टिकट जारी किए। एक पर भारत एवं मारिशस के राष्ट्रीय ध्वज और दूसरे पर दोनों देशों के राष्ट्रीय पक्षी मोर और डोडो की तस्वीर है।      मारिशस के प्रधानमंत्री ने भारत के सहयोग से बने साइबर टावर को अब अटल बिहारी वाजपेयी टावर नाम देने की धोषणा की ।  

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से विश्व के हिन्दी प्रेमियों को अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पितत करने का मौका मिलेगा।  सुषमा ने कहा कि पिछले विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भाषा और साहित्य पर जोर होता था ।  उन्होंने कहा कि गिरमिटिया देशों में उन्होंने भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूकता देखी है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि मारिशस के प्रधानमंत्री ने उनसे कहा कि उन्हें ज्यादा हिन्दी नहीं आती है लेकिन भाषा को न जानने की निराशा और संस्कृति को बचाने की बेचैनी उनमें साफ झलकती है।

 

विदेश मंत्री ने कहा कि सम्मेलन के दौरान एक विषय ‘भाषा और संस्कृति के अंतर संबंध’ रखा गया है। इसके अलावा एक अन्य विषय ‘हिन्दी शिक्षण और भारतीय संस्कृति’ है।  उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान पहले सत्र होता था, चर्चाएं होती थी, अनुशंसाएं होती थी लेकिल अनुवर्ती कार्य नहीं देखा गया । पिछले छह महीने के परिश्रम से पिछले सम्मेलन की अनुशंसाओं और अनुवर्ती कार्यो का संकलन करने का कार्य किया गया है। यह केवल मौखिक रूप में नहीं बल्कि लिखित रूप में पुस्तक के रूप में है जिसका शीर्षक ‘‘ भोपाल से मारिशस’ है। इसमें एक एक अनुशंसा पर की गई कार्रवाई का वर्णन है ।

 

11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन शुरू होने से पहले सभागार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई । सम्मेलन में गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी विशिष्ठ अतिथि हैं । सम्मेलन में विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह, गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू, विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह आदि हिस्सा ले रहे हैं ।       मारिशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुकन लक्षुमन ने सम्मेलन में आए अतिथियों का स्वागत किया ।       

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