भूटान के प्रधानमंत्री पहली बार जर्मनी की यात्रा पर

Edited By DW News,Updated: 13 Mar, 2023 04:02 PM

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भूटान के प्रधानमंत्री पहली बार जर्मनी की यात्रा पर

जर्मनी और भूटान के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित हुए सिर्फ दो साल ही हुए हैं. अब इन रिश्तों को आगे ले जाने की कोशिश में पहली बार भूटान की सरकार का कोई प्रतिनिधि आधिकारिक दौरे पर जर्मनी जा रहा है.जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग का सैन्य सम्मान के साथ बर्लिन में स्वागत करेंगे. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते 25 नवंबर 2020 को स्थापित हुए थे. हालांकि आज भी भूटान में जर्मनी का दूतावास नहीं है. भारत में जर्मनी के राजदूत ही भूटान में भी जर्मनी के राजदूत का काम देखते हैं. जुलाई 2000 में दोनों देशों ने वाणिज्य दूतावासों की स्थापना की थी. जून 2022 में जर्मनी ने भूटान में अपने पहले आनरेरी कौंसलु को नियुक्त किया था. जहां तक भूटान का सवाल है वो मुख्य रूप से यूरोपीय संघ में अपने दूतावास के जरिए जर्मनी से कूटनीतिक रिश्तों का निर्वाह करता है. अब नहीं रहा सबसे गरीब देश दोनों देशों के बीच मुख्य रूप से स्वास्थ्य, विज्ञान, शोध, पर्यावरण और सामाजिक विषयों पर सहयोग होता है. इसके अलावा जर्मनी भूटान में चल रहे विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि जैसे कई बहुराष्ट्रीय संगठनों की कई परियोजनाओं को भी समर्थन देता है. साल 2023 भूटान के इतिहास और भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साल है. हिमालय की गोद में बसा यह देश इस साल दुनिया के सबसे गरीब देशों की सूची से बाहर निकल जाएगा. संयुक्त राष्ट्र ने 1971 में सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) नाम के इस समूह को 1971 में बनाया था. 13 दिसंबर, 2023 को भूटान इस सूची से निकलने वाला अभी तक का सिर्फ सातवां देश बन जाएगा. देश के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने हाल ही में कतार की राजधानी दोहा में हुए एलडीसी शिखर सम्मलेन में इस विषय पर कहा था, "हम इस समय बेहद सम्मान और गर्व महसूस कर रहे हैं, हम बिल्कुल भी नर्वस नहीं हैं." भारत से 30 प्रतिशत ज्यादा प्रति व्यक्ति आय उन्होंने आगे कहा था, "जिंदगी का दूसरा नाम अनुकूलन है. यह हारने और जीतने के बारे में हैं. आप कुछ हारते हैं, तो कुछ जीतते भी हैं. मुझे लगता है हमें अब कुछ अनुदान उपलब्ध नहीं रहेंगे लेकिन और ज्यादा व्यापार और निवेश के अवसर मिलेंगे. यह सिर्फ खेल का एक दांव है." भूटान पन-बिजली का एक बड़ा उत्पादक है जिसे उसने अपने पड़ोसी देश भारत को बेचकर काफी कमाई की है. इस कमाई से मात्र लाख 8,00,000 लोगों की आबादी वाले इस देश की प्रति व्यक्ति आय 3800 डॉलर प्रति वर्ष हो गई, जो भारत की प्रति व्यक्ति आय से 30 प्रतिशत ज्यादा है. लेकिन कोरोना वायरस महामारी और वैश्विक मुद्रास्फीति की वजह से सरकार का खर्च बढ़ गया है. पैसे को देश से बाहर निकलने से रोकने के लिए पिछले साल सरकार ने विदेशी गाड़ियों के आयात पर बैन लगा दिया था. इस समूह में भूटान के अलावा 45 और देश हैं और वो सब भूटान के पदचिन्हों पर चलना चाह रहे हैं. 2026 के अंत तक बांग्लादेश, नेपाल, अंगोला, लाओस, द सोलोमन आइलैंड्स और साओ तोमे भी इस सूची से निकल जाएंगे. एलडीसी से मध्य आय वाला देश बनने के लिए देशों को तीन में से दो इम्तिहान पास करने पड़ते हैं. उन्हें या तो अपनी राष्ट्रीय आय को 1,222 डॉलर से ऊपर ले जाना होता है या मानव कल्याण या आर्थिक विकास के तय अंक हासिल करने होते हैं. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र की समितियां इन उपलब्धियों को सालों तक परखती हैं. हालांकि कई एलडीसी देश समूह को छोड़ने के तीन साल के बाद व्यापार विशेषाधिकारों के गायब होने को लेकर चिंतित हैं. अंगोला और सोलोमन्स ने अपने निकास में विलंब की अपील की है. और देश भी ऐसा कर सकते हैं. सीके/एए (डीपीए/एएफपी)

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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