सैटलाइट तस्वीरों से सऊदी को लेकर खतरनाक खुलासा, चीन पर शह देने का शक

Edited By Tanuja,Updated: 27 Jan, 2019 11:09 AM

experts images suggest a saudi ballistic missile program

जिस काम के लिए सऊदी अरब अपने धुर विरोधी ईरान की आलोचना करता रहा है उसी काम को विशेषज्ञों ने सऊदी की पोल खोल दी है। विशेषज्ञों और सैटलाइट से मिली तस्वीरों के आधार पर सऊदी को लेकर एक खतरनाक खुलासा किया गया...

दुबईः जिस काम के लिए सऊदी अरब अपने धुर विरोधी ईरान की आलोचना करता रहा है उसी काम को विशेषज्ञों ने सऊदी की पोल खोल दी है। विशेषज्ञों और सैटलाइट से मिली तस्वीरों के आधार पर सऊदी को लेकर एक खतरनाक खुलासा किया गया है जो अमेरिका की टैंशन बढढ़ा सकता है। सैटलाइट तस्वीरों में दावा किया जा रहा है कि अमेरिका का सहयोगी समझा जाने वाला और प्रमुख तेल उत्पादक सऊदी अरब अब अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने पर फोकस कर रहा है। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि सऊदी के एक सैन्य बेस पर बलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण और परीक्षण का काम चल रहा है। खास बात यह है कि इसी तरह के परमाणु हथियारों को लेकर सऊदी अरब लंबे समय से ईरान का विरोध करता आ रहा है।
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चीन पर शह देने का शक
कैलिफॉर्निया में मिडलबरी इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज के मिसाइल एक्सपर्ट जेफरी लुइस ने कहा कि मिसाइलों पर भारी निवेश से साफ है कि परमाणु हथियार बनाने में रुचि बढ़ रही है। उन्होंने कहा, 'मुझे इस बात को लेकर चिंता होगी कि हम सऊदी की महत्वाकांक्षाओं को कम आंक रहे हैं।' लुइस ने सैटलाइट से मिली तस्वीरों की स्टडी करते हुए यह बात कही। लुइस ने कहा कि सऊदी का स्टैंड ठीक उस तरह का दिखता है जैसा डिजाइन चीन इस्तेमाल करता है। हालांकि यह छोटा है। सऊदी को चीन से मिलने वाला सैन्य सहयोग कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। चीन ने लगातार सऊदी और दूसरे मध्यपूर्व के देशों को बड़ी संख्या में सशस्त्र ड्रोन बेचे हैं। उधर, अमेरिका ने इसकी बिक्री पर रोक लगा रखी है। पेइचिंग ने अपने कई बलिस्टिक मिसाइल रियाद को बेचे हैं। इससे आशंका जताई जा रही है कि हो सकता है कि तकनीकी जानकारी सऊदी को चीन से मिली हो। उधर, इस बारे में पूछे जाने पर चीन के रक्षा मंत्रालय ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।
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 प्रिंस सलमान ने पहले दे दिए थे संकेत
इन दावों के सच मानने की एक वजह यह भी है कि पिछले साल सऊदी अरब के शक्तिशाली क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस बात के संकेत भी दे दिए थे। सलमान ने कहा था कि अगर ईरान इस तरह के वेपंज प्रोगाम चलाता है तो देश को परमाणु हथियार विकसित करने में जरा भी हिचक नहीं होगी। बता दें कि बलिस्टिक मिसाइलें हजारों किमी दूर तक परमाणु हथियार ले जा सकती हैं। वहीं, रियाद में अधिकारियों और वॉशिंगटन में सऊदी दूतावास के अधिकारियों ने इस बाबत पूछे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
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और तनावपूर्ण होंगे अमेरिका-सऊदी के रिश्ते
गौर करने वाली बात यह है कि इस तरह के प्रोग्राम के चलते अमेरिका के साथ सऊदी के रिश्ते और भी तनावपूर्ण हो सकते हैं। अमेरिका, सऊदी का लंबे समय से सिक्यॉरिटी पार्टनर रहा है। वॉशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार जमाल खशोगी की हत्या और यमन में सऊदी के नेतृत्व में जंग के चलते दोनों देशों के रिश्ते पहले से ही उतने अच्छे नहीं चल रहे हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने सबसे पहले इन तस्वीरों के बारे अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी। यह जगह सऊदी की राजधानी रियाद से 230 किमी पश्चिम में अल-दवादमी नामक कस्बे के पास स्थित सैन्य बेस पर है। हालांकि इस बेस की जानकारी मीडिया में सबसे पहले 2013 में ही सामने आ गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक इस बैस पर 2 लॉन्च पैड्स हैं और इन्हें इसराईल और ईरान को बलिस्टिक मिसाइलों से टारगेट करने के हिसाब से तैयार किया गया है।
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सऊदी को कहां से मिली तकनीक?
इससे पहले सऊदी ने चीन से बलिस्टिक मिसाइलें खरीदी थीं। नवंबर में मिली सैटलाइट तस्वीरों में इतना बड़ा स्ट्रक्चर दिखाई देता है, जो बलिस्टिक मिसाइलें बनाने के लिए पर्याप्त है। बेस के कोने में रॉकेट इंजन टेस्ट स्टैंड भी दिखाई देता है। टेस्ट फायर के बारे में कुछ संकेत मिले हैं। जानकारों का कहना है कि मिसाइलें बनाने की दिशा में प्रयास करने वाले देशों के लिए इस तरह की टेस्टिंग अहम बात है। वॉशिंगटन में इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज में मिसाइल डिफेंस के सीनियर फेलो माइकल एलमैन ने भी सैटलाइट तस्वीरों की जांच की है। उन्होंने साफ कहा, 'मुझे लगता है कि वहां बलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम पर काम हो रहा है। हालांकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की फसिलटी बनाने के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान सऊदी अरब को कहां से मिला।'

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