Edited By ,Updated: 21 Feb, 2015 05:28 PM
पिछले साल के मार्च महीने में प्रधानमंत्री को लेकप्रियता के शिखर पर पंहुचाया था। लेकिन इस साल का मार्च महीना न सिर्फ मोदी सरकार की 'सियासी धमक' का भविष्य तय करेगा।
नई दिल्ली: पिछले साल के मार्च महीने में प्रधानमंत्री को लेकप्रियता के शिखर पर पंहुचाया था। लेकिन इस साल का मार्च महीना न सिर्फ मोदी सरकार की 'सियासी धमक' का भविष्य तय करेगा। बल्कि नरेंद्र मोदी का सियासी भाविष्य भी इसी मार्च महीने में तय होगा। पिछले साल मार्च माह में मोदी द्वारा की गई मेहनत का नतीजा आया तो 16 मई को मोदी खुद हैरान थे लेकिन इस मार्च की मोदी की परीक्षा कठिन है जानिए कौन-कौन से मोर्चे पर फैलेगी मोदी सरकार-
-मार्च की शुरूआत से पहले ही अन्ना हजारे भूमि अधिग्रहण को लेकर अनशन कर रहे है। दिल्ली में अन्ना के अनशन को आरएसएस का समर्थन हासिल है। संसद का सत्र शुरू हो चुका होगा और बाहर मीडिया अन्ना को एक बार फिर हीरो बनाने का काम करेगी। इससे मोदी सरकार की धमक कम होगी।
-बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का नितिश कुमार की सरकार में शामिल होना विपक्ष की एकता का संकेत है। संसद के सत्र के दौरान राज्यसभा में यह एकता मजबूत हुई तो संसद का सत्र हंगामे की भेंट चढ़ेगा।
-यदि सरकार भूमि अधिग्रहण बिल और बीमा बिल जैसे अहम अध्यादेश कानून में तबदील न करवा पाई तो बाजार में इसका गलत संदेश जाएगा। और शेयर बाजार धूल चाटता नजर आ सकता है।
-राज्यसभा में फेल होने पर सरकार को अध्यादेश पास करवाने के लिए दोनों सदनों का सांझा सत्र बुलाना पड़ सकता है और यह सरकार की सियासी धमक कम होने का संकेत होगा।
-सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदों के मुताबिक बजट लाने की है। दीपक पारेख पहले ही मोदी सरकार के कार्य प्रणाली पर सवाल उठा चुके हैं। लेकिन यदि प्रचंड बहुमत और अनुकूल आर्थिक लागत में भी मोदी सरकार अच्छा बजट नहीं लाई तो जनता में सरकार की साख घटेगी।