इंदिरा की हत्या के बाद हुए चुनाव में डूब गई थी BJP की नैया

Edited By Anil dev,Updated: 05 Dec, 2018 12:08 PM

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मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीतिक कर्मभूमि भले ही राजस्थान बन गई हो, लेकिन उनकी चुनावी राजनीति की शुरुआत मध्य प्रदेश से हुई थी। शायद बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि वे मध्य प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़कर हार चुकी हैं। इसका मतलब ये भी है कि वे...

इंदौर(नवीन रंगियाल): मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीतिक कर्मभूमि भले ही राजस्थान बन गई हो, लेकिन उनकी चुनावी राजनीति की शुरुआत मध्य प्रदेश से हुई थी। शायद बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि वे मध्य प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़कर हार चुकी हैं। इसका मतलब ये भी है कि वे चुनावी अखाड़़े में अपराजित नहीं हैं। 

भाजपा ने लगाया था वसुंधरा पर दांव
राजस्थान की राजनीति में एकछत्र राज करने वाली वसुंधरा राजे को कुछ ऐसे कड़वे अनुभवों का सामना भी करना पड़ा है, जिसे भुलाना उनके लिए मुश्किल होगा। ऐसी ही एक घटना है 1984 की। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में आम चुनाव हुए थे। 1983 में ही भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था और पार्टी ने वसुंधरा राजे को भिंड से उतारा था। उस दौर में वसुंधरा राजे की मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा का प्रमुख चेहरा थीं। ग्वालियर और गुना में खासा प्रभाव रखने वाला सिंधिया राजपरिवार भिंड में उतना असरदार नहीं माना जाता था। नए चेहरे के तौर पर भाजपा ने वहां वसुंधरा राजे पर दांव लगा दिया, लेकिन पहले ही चुनाव में वसुंधरा को मुंह की खानी पड़ी। 

87,000 मतों से किया था वसुंधरा राजे को पराजित
कांग्रेस के कृष्ण सिंह ने वसुंधरा राजे को लगभग 87,000 मतों से पराजित किया था। कृष्ण सिंह को 19,4000 तथा वसुंधरा को 10,7000 वोट मिले थे। हालांकि पूरे देश में ही उस समय भाजपा के मात्र दो प्रत्याशी जीत सके थे। मध्य प्रदेश से भाजपा के सारे प्रत्याशी हार गए थे, जिनमें अटलजी के साथ ही बाद में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं उमा भारती भी शामिल हैं। ये उमा का भी पहला चुनाव था। वे खजुराहो से प्रत्याशी थीं और उन्हें सत्यव्रत चतुर्वेदी की मां विद्यावती चतुर्वेदी ने हराया था। इन चुनाव में कांग्रेस को इंदिराजी की हत्या के चलते सहानुभूति का जबरदस्त लाभ मिला था और कांग्रेस ने 1984 के आम चुनाव में रिकॉर्ड 405 सीटें जीतीं थीं।

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