लोकसभा चुनाव से पहले संसद में ‘बड़ा मुकाबला’

Edited By Naresh Kumar,Updated: 06 Jul, 2018 10:48 AM

before the lok sabha elections the big fight in parliament

लोकसभा चुनाव से पूर्व राज्यसभा के उपसभापति (डिप्टी चेयरमैन) के चुनाव के जरिए विपक्ष के सामने पहली बार भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का मौका बन रहा है। इस चुनाव के जरिए भाजपा और विपक्ष के बीच बड़ा मुकाबला होगा। हालांकि इससे पूर्व कर्नाटक के मुख्यमंत्री...

जालंधर(नरेश कुमार): लोकसभा चुनाव से पूर्व राज्यसभा के उपसभापति (डिप्टी चेयरमैन) के चुनाव के जरिए विपक्ष के सामने पहली बार भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का मौका बन रहा है। इस चुनाव के जरिए भाजपा और विपक्ष के बीच बड़ा मुकाबला होगा। हालांकि इससे पूर्व कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान विपक्ष ने मंच पर एकजुटता दिखाई थी लेकिन एकजुटता सिर्फ तस्वीर में थी। लेकिन इस चुनाव के जरिए विपक्ष संगठित हो सकता है। कांग्रेस के पी.जे. कुरियन रिटायर्ड हुए हैं और उनकी खाली हुई कुर्सी के लिए 18 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र के दौरान चुनाव होना है। राज्यसभा की वैबसाइट पर जारी जानकारी के मुताबिक भाजपा 69 सदस्यों के साथ राज्यसभा में सबसे  बड़ी पार्टी है लेकिन उसके पास अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए बहुमत नहीं है जबकि कांग्रेस के पास राज्यसभा में 50 सदस्य हैं लेकिन कांग्रेस भी सीधी टक्कर में अपना उम्मीदवार जिताने की स्थित में नहीं है।
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54 वोट निभाएंगे अहम भूमिका
राज्यसभा में कुल 240 सदस्य हैं और चुनाव होने की स्थिति में यदि सारे सदस्य वोट करें तो जीत के लिए 121 सदस्यों का वोट जरूरी होगा। यू.पी.ए. के पास 101 वोट हैं लिहाजा उसे 20 वोट अन्य पार्टियों से तोडऩे की जरूरत पड़ेगी जबकि  एन.डी.ए. के पास 85 वोट हैं, अन्य पार्टियों के पास 54 वोट हैं, 54 वोट हार-जीत में अहम भूमिका अदा करेंगे लेकिन यदि चुनाव के दौरान कुछ पार्टियां वाकआऊट कर गईं तो जीत के लिए जरूरी वोट का आंकड़ा कम हो सकता है।
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भारतीय जनता पार्टी की तरफ से फिलहाल आधिकारिक तौर पर इस बारे में कोई बात नहीं हुई है लेकिन यदि पार्टी मुझे उम्मीदवार बनाती है तो मैं अनुशासित सिपाही की तरह पार्टी के आदेश का पालन करूंगा।
—नरेश गुजराल, राज्यसभा सांसद, शिरोमणि अकाली दल

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राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को जीतने के लिए न तो कांग्रेस के पास पूरे वोट हैं और न ही भाजपा के पास, बतौर गठबंधन भी न यह चुनाव एन.डी.ए. जीत सकता है और न ही यू.पी.ए., ऐसे में शिरोमणि अकाली दल ऐसी अकेली पार्टी है जिसका सभी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ सद्भाव है और अकाली दल ने हमेशा किसानों और अन्य सभी वर्गों का साथ दिया है लिहाजा अकाली दल को एन.डी.ए. के बाहर से भी वोट मिल सकते हैं और पार्टी का उम्मीदवार यह चुनाव जीत सकता है।
—प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सांसद अकाली दल
 


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कांग्रेस-भाजपा दोनों समझौता करेंगे?
हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस पद के लिए अपना उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहती थी लेकिन चुनाव होने की स्थिति में उसे अपने सहयोगियों के अलावा बीजू जनता दल (9 सदस्य), टी.आर.एस. (6 सदस्य) और वाई.एस.आर. कांग्रेस (2 सदस्य) के समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी। भाजपा के अपने सहयोगी शिव सेना (3 सदस्य) और जनता दल-यू (6 सदस्य) के साथ भी भाजपा की खींचतान चल रही है, लिहाजा ये दोनों पार्टियां भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन देने की कीमत आगामी लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ाने के रूप में मांग सकती हैं।
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भाजपा के रणनीतिकार अपने उम्मीदवार को समर्थन न मिलता देख अकाली दल के उम्मीदवार को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं और अकाली दल की तरफ से इस पद के लिए नरेश गुजराल का नाम आगे बढ़ाया गया है। अकाली दल की तरफ से नरेश गुजराल के अलावा बलविंद्र सिंह भूंदड़ और सुखदेव सिंह ढींडसा राज्यसभा के सदस्य हैं लेकिन पार्टी इस पद के लिए नरेश गुजराल के चेहरे पर दाव खेल रही है। उधर कांग्रेस भी इस बार विपक्षी एकता की कीमत पर मैदान से पीछे हटने के विकल्प पर भी काम कर रही है। कांग्रेस यदि पीछे हटती है तो तृणमूल कांग्रेस की तरफ से सुखेंदु शेखर को मैदान में उतारा जा सकता है। सुखेंदु शेखर के नाम पर तृणमूल कांग्रेस और टी.आर.एस. का समर्थन भी मिल सकता है क्योंकि टी.आर.एस. के प्रमुख चंद्रशेखर राव ने ही ममता बनर्जी के साथ मिल कर संघीय मोर्चा बनाने की पहल की थी।

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