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Birja Temple जहां नवरात्रि में 15 साड़ियों और सोने से हो रहा देवी का भव्य शृंगार, आलू भरता और दूध से लगाया जाता है भोग

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 02 Apr, 2025 12:15 PM

birja temple goddess is decorated with 15 saris and gold during navratri

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 90 किमी दूर जाजपुर जिला स्थित बिरजा देवी का मंदिर तीर्थ यात्रियों के लिए एक प्रमुख स्थान है। यहां स्थित मां बिरजा का मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है जहां श्रद्धालु पवित्रता प्राप्त करने के लिए आते हैं। इस...

नेशनल डेस्क। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 90 किमी दूर जाजपुर जिला स्थित बिरजा देवी का मंदिर तीर्थ यात्रियों के लिए एक प्रमुख स्थान है। यहां स्थित मां बिरजा का मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है जहां श्रद्धालु पवित्रता प्राप्त करने के लिए आते हैं। इस स्थान को विराज या बिराज क्षेत्र कहा जाता है जो श्रद्धालुओं के शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार ऐतिहासिक महत्व

यह स्थान स्कंद पुराण के अनुसार अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां माता सती की नाभि गिरी थी जिसके बाद यहां एक गहरा कुआं बन गया जिसे धरती की नाभि कहा जाता है। श्रद्धालु इस कुएं के जल से पितरों का पिंडदान करते हैं। नवरात्र के दिनों में इस स्थान पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है जो यहां धार्मिक अनुष्ठान करने आते हैं।

श्रद्धालुओं की आस्था 

नवरात्र के दौरान भास्कर टीम द्वारा इस स्थान पर किए गए दौरे में आंध्र प्रदेश से आए गोपालन कृष्णन ने बताया कि वह पितरों के लिए पिंडदान करने आए हैं। उन्होंने इसे प्रयागराज और गया की तरह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बताया। मंदिर के ट्रस्टी सदस्य ज्ञान रंजनपति ने बताया कि स्कंद पुराण में बिरजा क्षेत्र का महात्म्य स्पष्ट रूप से वर्णित है जहां देवी पार्वती ने भगवान शिव से मिलन के लिए तपस्या की थी।

 

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108 शिवलिंग और अनूठा कुआं

यह मंदिर 13वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और यहां मां बिरजा के साथ 108 शिवलिंग भी स्थापित हैं जो 800 साल से यहां मौजूद हैं। इन शिवलिंगों का महत्व श्रद्धालुओं के लिए अद्भुत है। मान्यता है कि यहां स्थित कुएं को "नाभिगया" कहा जाता है जो भगवान विष्णु के भक्त राक्षस गयासुर की नाभि गिरने की जगह मानी जाती है। यहां पिंडदान की परंपरा भी है और यह भारत के 51 शक्तिपीठों में एक ऐसा स्थान है जहां पिंडदान की विशेष मान्यता है।

मां बिरजा की मूर्ति और दर्शन का महत्व

मंदिर में मां बिरजा की मूर्ति का स्वरूप भी विशेष है। उनके मस्तक में भगवान शिव, गणपति, शक्ति, नागराज और चंद्रमा की आकृतियां बनी हुई हैं जो इस मूर्ति को और भी अद्भुत बनाती हैं। रंजनपति ने बताया कि मां बिरजा के स्वरूप को महिषासुरमर्दनी के रूप में पूजा जाता है और उनकी पूजा में विशेष महत्व है। स्थानीय मान्यता के अनुसार काशी और जगन्नाथ मंदिर में बिताए गए समय के बराबर पुण्य मां बिरजा के एक बार दर्शन करने से प्राप्त होता है।

नवरात्र में विशेष पूजा और भोग

मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। नवरात्र के दौरान सुबह मंगला आरती के समय श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। एक दिन में 15 साड़ियां और लगभग 1.5 से 2 किलो सोने के आभूषणों से मां बिरजा का श्रृंगार किया जाता है। इस दौरान मां को साग की सब्जी और रबड़ी का भोग दिया जाता है जबकि रात में आलू भरता और दूध का भोग चढ़ाया जाता है।

यहां के दर्शन न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं बल्कि श्रद्धालुओं के लिए एक आत्मिक शांति और पुण्य का भी स्रोत हैं। नवरात्रि के दिनों में इस तीर्थ स्थल की भव्यता और श्रद्धालुओं की आस्था देखी जा सकती है जो दूर-दूर से यहां आते हैं और मां बिरजा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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