महाराष्ट्र की हांडी : ‘सांड की आंख’ पर निशाना चुकी भाजपा

Edited By vasudha,Updated: 01 Dec, 2019 10:49 AM

bjp has targeted bull eye

खेल तो खेल कोई पूरी बिसात ही उठाकर ले गया। भाजपा महाराष्ट्र में कुछ ऐसा ही महसूस कर रही होगी। निशाना ‘सांड की आंख’ पर लगाना था, मगर चूक गई। वह अपने ही खेल में फंस गई। हालांकि पिछले छह साल से वह राजनीति के इस खेल को पूरी कुशलता से खेल रही थी और देश...

नेशनल डेस्क: खेल तो खेल कोई पूरी बिसात ही उठाकर ले गया। भाजपा महाराष्ट्र में कुछ ऐसा ही महसूस कर रही होगी। निशाना ‘सांड की आंख’ पर लगाना था, मगर चूक गई। वह अपने ही खेल में फंस गई। हालांकि पिछले छह साल से वह राजनीति के इस खेल को पूरी कुशलता से खेल रही थी और देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी प्रमुख अमित शाह जिन्हें मीडिया राजनीति का चाणक्य कहता है, महाराष्ट्र की विफलता की जिम्मेदारी से वह मुक्त नहीं हो सकते। असल में उन्होंने समय आने से पहले ही काम कर डाला। यानी बंदूक चलने से पहले ही कूद गए। 

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2014 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। वहां उन्होंने सामाजिक तानेबाने और जातीय गणित का जो हिसाब-किताब बैठाया उससे भाजपा 70 सीटों के जादुई आंकड़े को पार कर गई थी। उनकी विशेषज्ञता पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बूथ स्तर तक के आंकड़े उनकी जुबान पर रहते हैं। ऐसा तभी संभव है जब आदमी घुमक्कड़ हो और अमित शाह तो सुपर घुमक्कड़ हैं। तो फिर महाराष्ट्र में कहां गड़बड़ी हुई? अमित शाह लक्ष्य से कैसे चूक गए। क्या आकलन में कोई गलती हुई या भाजपा के अतिआत्मविश्वास से ऐसा हुआ? इन सवालों के जवाब के लिए तथ्यों को देखते हैं। 

 

भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने महाराष्ट्र में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। कांग्रेस पूरी तरह से हाशिए की ओर थी। राकांपा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी। मतदान से पहले ईडी ने शरद पवार को समन कर दिया था। ऐसे में उसकी संभावनाओं पर असर दिख रहा था। मगर महाराष्ट्र का मतदाता फडणवीस सरकार से असंतुष्ट था। किसानों की आत्महत्याएं, दलित उत्पीडऩ, छूटती नौकरियां, आर्थिक मंदी की आहट थी और अच्छे दिन का वादा सिर के ऊपर से गुजर गया था। इसके बाद भी प्रचार के दौरान यह दावा किया जा रहा था कि भाजपा-शिवसेना गठबंधन का कोई विकल्प नहीं है। मतदाता शांति से सब सुन रहा था। दूसरी ओर शरद पवार खुद को राजनीतिक विद्वेष का शिकार हो रहे नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे। मराठा वोटों की सहानुभूति उनके लिए बढ़ रही थी। कांग्रेस के प्रत्याशी अपनी सीटों को बचाने का प्रयास कर रहे थे। 

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बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआ

 

पहला दृश्य 
जो पहला दृश्य दिख रहा था वह यह था कि भाजपा की 105 सीटें, निर्दलीयों और कुछ छोटे दलों को मिलाकर भाजपा कुल 125 सीटों तक पहुंच रही थी। इसलिए भाजपा को 20 विधायकों की और जरूरत थी। दल-बदल विरोधी कानून की वजह से शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस से कुल मिलाकर 20-25 विधायक तोडऩा मुश्किल था। लेकिन 10 से 15 विधायक अपनी सदस्यता गंवाने को राजी हो जाते तो भाजपा का काम बन जाता। कर्नाटक में कुछ महीने पहले ऐसा ही हुआ था। मगर इसके लिए समय की जरूरत थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। अजित पवार का समर्थन सुनिश्चित किया गया और ऑपरेशन लोटस शुरू कर दिया गया। मगर यहीं पर अमित शाह मराठा नेता शरद पवार की क्षमता को आंकने में धोखा खा गए।

 

दूसरा दृश्य
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े चाणक्यों में से एक हैं। सभी पार्टियों में उनकी पहुंच है। वह हमेशा अधिकतम लाभ को देखते हुए रुख पलटते हैं। 2014 में उन्होंने फडणवीस सरकार को बाहर से समर्थन दिया था। इसके बावजूद प्रचार के दौरान फडणवीस ने अजित पवार के लिए चक्कीपीसिंग-चक्कीपीसिंग जैसी बाते कहीं और ईडी ने शरद पवार तथा सुप्रिया सुले को समन भेजा। पवार के लिए यह सब फडणवीस सरकार को दोबारा समर्थन से रोकने के लिए काफी था। 

 

तीसरा दृश्य
महाराष्ट्र में कांग्रेस अपने ही बोझ से दबी थी फिर भी 44 सीटें जीत गई। यहां तक कि गांधी परिवार ने भी महाराष्ट्र के प्रचार को लेकर कोई बहुत ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया था। जो 44 जीतकर आए थे उन्हें संभालना जरूरी था। इनमें से कोई भी दोबारा जल्द चुनाव नहीं चाहता था। ऐसे में कांग्रेस विधायक भाजपा की गोद में आसानी से जा सकते थे। कांग्रेस के सामने आस्तित्व का संकट भी था। अगर अब सरकार में शामिल नहीं हुए तो फिर कभी नहीं। अशोक च्वहाण जैसे राज्य के नेता इसे सुनहरा मौका मान रहे थे। ऐसे में शिवसेना और एनसीपी के साथ जाना मतलब गैर भाजपा सरकार था। 

 

चौथा दृश्य 
शिवसेना अपना खेल कब तक खेल पाएगी। उसे उसके भाग्य पर छोड़ देते हैं। यहां तक कि शरद पवार हमेशा पर फडफ़ड़ाने के लिए जाने जाते हैं। उनके अंह को साधे रखना होगा। एक सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बर्बाद कर लिया है। कहां तो वह शिवसेना को बाहर से भी समर्थन देने से भी न-न कर रही थी। 

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जब दो गुजराती चाणक्य हुए आमने-सामने
भाजपा के चाणक्य से एक और भूल हुई कि उन्होंने कांग्रेस के अहमद पटेल को कम आंका। जो गुजरात के राज्यसभा चुनाव में अपना कौशल दिखा चुके हैं। भाजपा को लग रहा था कि कांग्रेस गुलाम नबी आजाद, एके एंटनी, आनंद शर्मा, दिग्विजय सिंह वाली लाइन पर ही चलेगी। ऐसे में कांग्रेस के विधायक टूटकर उसकी तरफ ही आएंगे न कि शिवसेना राकांपा की तरफ जाएंगे। मगर इस बार कांग्रेस के वित्तीय हित भी दांव पर थे। इस तरह महाराष्ट्र में एक बार फिर दो गुजराती चाणक्य भिड़े। इस सबके बावजूद यह नहीं भूूलना चाहिए कि पिक्चर अभी बाकी है। 

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