पार्टी मोदी के साथ, भले चर्चा गडकरी पर हो: राजीव प्रताप रूडी

Edited By Anil dev,Updated: 11 Jan, 2019 12:06 PM

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भाजपा चंडीगढ़ से छात्र राजनीति शुरू करने वाले और छपरा से लालू यादव को हराने वाले राजीव प्रताप रूडी अटल और मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं और कॉमर्शियल जहाज उड़ाने वाले अकेले राजनेता हैं। लोकसभा चुनाव पर इसी बीच नवोदय टाइम्स/ पंजाब केसरी से उन्होंने...

नई दिल्ली: भाजपा चंडीगढ़ से छात्र राजनीति शुरू करने वाले और छपरा से लालू यादव को हराने वाले राजीव प्रताप रूडी अटल और मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं और कॉमर्शियल जहाज उड़ाने वाले अकेले राजनेता हैं। लोकसभा चुनाव पर इसी बीच नवोदय टाइम्स/ पंजाब केसरी से उन्होंने खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

लोकसभा चुनाव जो इस साल होने वाले हैं, अलग क्यों लग रहे हैं?
चुनाव आते ही पक्ष अपनी बात कहता है और विपक्ष अपनी बात कहता है। दबाव बढऩे लगता है। हम लोगों ने देश में सरकार बनाने के बाद बहुत काम किया और उसको लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं। अभी तक सभी पार्टियां मिलकर कांग्रेस को हराती थीं। पहली बार सभी पार्टियां मिलकर भाजपा को हराने में लगी हैं। सभी को पता है कि अगर इस बार वो चूक गए तो फिर पता नहीं कब मौका मिले। सरकार के आने के बाद बहुत सारी योजनाएं शुरू की गईं। योजनाओं का लाभ तो अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा भी। दरअसल केन्द्र की योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाना कठिन काम है। हमारी सरकार ने बहुत सारी योजनाओं को सीधे व्यक्ति तक पहुंचाया। उज्ज्वला योजना में सबसे ज्यादा वितरण मेरे संसदीय क्षेत्र सारण में हुआ। सब जगह बिजली पहुंचाई गई। ऐसी बहुत सारी योजनाएं फलीभूत हुईं हैं। लेकिन, जो गेम चेंजर योजना है, वह पांच लाख रुपए तक का नि:शुल्क इलाज। लोगों का इलाज हो रहा है उसका खर्च अस्पताल को सरकार की तरफ से दिया जा रहा है। इससे मरीजों को बड़ी राहत है और अस्पतालों की माली हालत भी सुधर रही है।

अमित शाह कहते हैं  कि केंद्रीय योजनाओं का लाभ 22 करोड़ लोगों तक पहुंचा है। लेकिन, बीते विधानसभा चुनावों के परिणाम विपरीत रहे?
परिणाम चकित करने वाले रहे, इसमें कोई दो राय नहीं। एमपी में पंद्रह साल से सरकार थी और कुछ सीटों से हम सरकार बनाने से रह गए। राजस्थान में जितना खराब कहा जा रहा था, परिणाम उससे बहुत अच्छे रहे। कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए एलार्म की तरह है। राज्यों के परिणामों से जो झटका लगा है, उससे हम फिर से एकाग्र होकर लग गए हैं। लेकिन, जिन राज्यों में कांग्रेस से सीधी टक्कर है, वहीं पर इस तरह के परिणाम सामने आए हैं। बाकी जगहों पर टक्कर अलग-अलग पार्टियों से है। 

यूपी के उपचुनावों के बाद भी खतरे की घंटी नहीं सुनाई दी थी?
दरअसल जिस तरह से देश की जनता ने भाजपा को भारी बहुमत देकर सरकार में भेजा था, वैसा जनादेश बहुत कम देखने को मिलता है। राजीव गांधी की मृत्यु के बाद वैसा जनादेश देखने को मिला था। इस तरह के जनादेश से बेहतर जनादेश मिले, ऐसा मुश्किल से होता है। लेकिन, पार्टी स्तर पर तो पहले से बेहतर परिणामों के लिए ही प्रयास किए जाएंगे, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर ऐसा दावा तर्कसंगत नहीं है। फिर भी आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 2014 के मुकाबले इतनी कम नहीं होंगी कि सरकार न बनाई जा सके। व्यावहारिक तौर पर मुझे लगता है कि 250 से 260 सीटें आसानी से आ जाएंगी और राजनीतिक रूप से हम 300 सीटों की उम्मीद रखकर चल रहे हैं।

कहा जा रहा है कि इस बार कमजोर सरकार बनेगी और मायावती किंग मेकर की भूमिका में होंगी।
मैं असहमत हूं। इस तरह की बातें भाजपा को हटाने के लिए झूठ का सहारा लेकर फैलाई जा रही हैं। 

सपा-बसपा मिलकर मोदी को पीएम बनने से रोक सकती हैं। यूपी से 72 सीटें तो नहीं आएंगी। इस पर क्या कहेंगे?
इसे सही मानें तो भी लोकसभा चुनाव में सीटें जीतने के मामले में भाजपा से बड़ा कोई दल नहीं होगा। हम देश की सबसे बड़ी पार्टी हैं और  रहेंगे भी। 

जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा में भाजपा विरोधी माहौल है। दिल्ली-बिहार आप देख ही रहे हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ हार गए। फिर 250 सीटें कैसे कह रहे हैं?
केरल, कर्नाटक, उड़ीसा हमारे लिए हैं और जिन राज्यों में हमारी हार हुई है, उसमें भी हम पिछली बार की तरह ही सीटें जीतकर आएंगे। सर्वे कराकर देखा जा सकता है। जिस दिन से सारी पार्टियों ने मिलकर मोदी को हराने की बात कही है, उसी दिन से हमारी सीटों की संख्या बढऩे लगी हैं।  

मध्य प्रदेश, राजस्थान में काम हुआ फिर भी भाजपा हार गई। यूपी में भी योगी विकास का दावा कर रहे हैं। ऐसे में हार के पीछे क्या अतिविश्वास कारण है या कुछ और?
देखिए 25 प्रतिशत वोट तो पार्टी के होते हैं, 25 प्रतिशत वोट पार्टी के प्रबंधन का वोट होता है। बाकी 50 प्रतिशत वोट विभिन्न कारणों और सेंटीमेंट्स से होता है। हार-जीत इस पर बहुत ज्यादा निर्भर होती है। 

आप कह रहे हैं कि भाजपा बनाम बाकी पार्टियों की लड़ाई है। लेकिन, आगामी चुनाव बीजेपी बनाम बीजेपी जैसा लग रहा है। जिसमें नितिन गडकरी उभरकर प्रधानमंत्री के दावेदार दिख रहे हैं, इस पर क्या कहेंगे?
यह तो बहुत ही अच्छा सवाल आपने किया। हमारे लिए लीडरशिप एक है, आस्था एक है। वह पीएम मोदी हैं। यह चुनाव उनके नेतृत्व का है, इसमें डगमगाने की गुंजाइश है ही नहीं। 

तो क्या नितिन गडकरी का कोई चांस नहीं है? 
हम अटकलों में नहीं जाना चाहते। ऐसी बातों से हम पार्टी की नींव कमजोर नहीं करेंगे। हमने पांच साल तक पीएम मोदी के नेतृत्व में काम किया है। वह हमारी पूंजी हैं। पार्टी और कार्यकर्ता पूरे तौर पर मोदी के साथ हंै,भले ही कुछ लोग गडकरी पर चर्चा कर रहे हों। 

चुनाव में राफेल मुद्दा बनेगा क्या?
राफेल तो मुद्दा ही नहीं है। कांग्रेस आरोप लगा रही है, लेकिन प्रमाण नहीं दे रही। इसको देश की जनता देख और समझ रही है। जहां तक बात अंबानी को काम देने की बात है तो 200 कंपनियों को काम मिला है। सिर्फ अंबानी को काम मिलता होता तो सवाल उठाया जा सकता था। जिसको भी काम मिला है, नियम पूरा करने के बाद ही मिला है। 80 प्रतिशत लोग कांग्रेस के आरोप पर विश्वास नहीं करते।

मेक इन इंडिया की बात करते हैं और एयरक्राफ्ट बाहर से ले रहे हैं?
इस तकनीक में हम बहुत सक्षम नहीं हैं। इस कारण इसे बाहर से लेना पड़ रहा है। आईटी में हम बहुत आगे हैं तो उसके लिए हम बहुत काम कर रहे हैं।

कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी प्रोपेगंडा फिल्में ठीक चुनाव से पहले रिलीज की जा रही हैं। 
फिल्में बनाने या किताब लिखने पर रोक तो है नहीं। जो लोग इस तरह की बात कर रहे हैं, उन लोगों ने तो ‘किस्सा कुर्सी का’ और ‘आंधी’ जैसी फिल्म के प्रिंट उठवा लिए थे। इसके अतिरिक्त अन्य फिल्मों को भी रोका गया। 

ऊर्जावान युवाओं की पसंद हैं मोदी
2014 में 65 प्रतिशत युवाओं ने मोदी को रोजगार के नाम पर वोट दिया था। लेकिन, यह वर्ग बेरोजगारी झेल रहा है। क्या युवाओं को गंभीरता से लिया नहीं जा रहा?
बेरोजगारी का मुद्दा बहुत विवादित है। जो भी युवा ऊर्जा से भरा है वह पूरी तरह से मोदी के साथ है। कांग्रेस की तरफ उसका झुकाव नहीं है। वह मोदी को देश ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखता है। 

पासवान साथ हैं, साथ रहेंगे
बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब है, क्या कहेंगे?

बिहार का नक्शा बदल चुका है। विकास का काम खूब हुआ है। जहां तक बात कानून-व्यवस्था की है तो बहुत बड़ी जनसंख्या को नियंत्रण करना मुश्किल होता है। हां, आपसी रंजिश के मामले में हत्या आदि की घटनाएं हो रही हैं। माफियाराज जैसा पहले था वैसा नहीं है। सीएम नीतीश कुमार काम कर रहे हैं। 

कहते हैं पासवान जी जिधर जाते हैं, हवा उस तरफ चलती है, अभी तो नाराज थे?
ऐसा नहीं है, वह हमारे साथ ही हैं और रहेंगे। चुनाव के पहले गठबंधन के दल थोड़ा बहुत अपनी बात रखने के लिए ऐसा करते हैं। लेकिन, सब साथ हैं। 

विकास के दम पर मांगेंगे वोट
चुनाव में आपका मुद्दा मंदिर होगा या आर्थिक स्थिति होगी?

मंदिर मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही साफ कह दिया है कि अदालत के निर्णय से पहले कोई हस्तक्षेप मंदिर मुद्दे में नहीं  किया जाएगा। जहां तक बात रही प्राथमिकता की तो विकास, गरीब और आर्थिक सुधार ही है। आर्थिक सुधार के लिए जो काम हमने किए हैं, उससे सुधार हुआ भी है। यह खुद व्यापारी मानते हैं भले ही उनको नुक्सान हुआ है, लेकिन जो काम हुए हैं वह बहुत अच्छे हैं। पिछले एक महीने में स्थिति बहुत सुधरी है। 

मेरा सवाल फिर वही है कि मार्च में आचार संहिता लग जाएगी।भाजपा की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए मंदिर या इकोनॉमी?
मंदिर के प्रति हमारी आस्था तो है ही। इस मुद्दे को तो हम छोड़ नहीं सकते हैं। लेकिन, चूंकि मामला अदालत में है तो हम उसका इंतजार कर रहे हैं। अब तो मुद्दा विकास के वह कार्य हैं, जो हमने किए हैं। इन कार्यों को ही जनता के सामने रखना है।

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