शाह के नेतृत्‍व में खत्‍म हुआ बोडोलैंड राज्‍य व‍िवाद, NDFB-ABSU ने किए शांति समझौते पर हस्ताक्षर

Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Jan, 2020 04:29 PM

bodoland state dispute ended under leadership of amit shah

केंद्र सरकार ने असम के खतरनाक उग्रवादी समूहों में से एक, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के साथ सोमवार को एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे। लंबे समय से बोडो राज्य की मांग करते हुए...

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने असम के खतरनाक उग्रवादी समूहों में से एक, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के साथ सोमवार को एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे। लंबे समय से बोडो राज्य की मांग करते हुए आंदोलन चलाने वाले ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस त्रिपक्षीय समझौते पर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, एनडीएफबी के चार गुटों के नेतृत्व, एबीएसयू, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग और असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा ने अमित शाह की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक समझौता है। उन्होंने कहा कि इससे बोडो मुद्दे का व्यापक हल मिल सकेगा। पिछले 27 साल में यह तीसरा 'असम समझौता' है। इस विवाद को सुलझाने के लिए मोदी सरकार लंबे समय से प्रयासरत थी और शाह के गृहमंत्री बनने के बाद इसमें कफी तेजी आई।

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क्‍या है बोडो विवाद
करीब 50 साल पहले असम के बोडो बहुल इलाकों में अलग राज्‍य बनाने को लेकर हिंसात्‍मक विरोध प्रदर्शन हुआ। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्‍व एनडीएफबी ने किया था। यह विरोध इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत NDFB को गैर कानूनी घोषित कर दिया। बोडो उग्रवादियों पर हिंसा, जबरन उगाही और हत्‍या का आरोप है। इस हिंसा की 2823 लोगों की मौत हुई।

 

कौन है बोडो
बोडो असम का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है जो राज्‍य की कुल जनसंख्‍या का 5 से 6 प्रतिशत है। लंबे समय तक असम के बड़े हिस्‍से पर बोडो आदिवासियों का न‍ियंत्रण रहा है। असम के चार जिलों कोकराझार, बाक्‍सा, उदालगुरी और चिरांग को मिलाकर बोडो टेरिटोरिअल एरिया डिस्ट्रिक का गठन किया गया है। इन जिलों में कई अन्‍य जातीय समूह भी रहते हैं। बोडो लोगों ने साल 1966-67 में राजनीतिक समूह प्‍लेन्‍स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम के बैनर तले अलग राज्‍य बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। साल 1987 में ऑल बोडो स्‍टूडेंट यूनियन ने एक बार फिर से बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। उस समय यूनियन के नेता उपेंद्र नाथ ब्रह्मा ने असम को 50-50 में बांटने की मांग की। दरअसल, यह विवाद असम समझौते में असम के लोगों के हितों के संरक्षण की बात कही गई थी। इसके फलस्‍वरूप बोडो लोगों ने अपनी पहचान बचाने के लिए एक आंदोलन शुरू कर दिया। दिसंबर 2014 में अलगवादियों ने कोकराझार और सोनितपुर में 30 लोगों की हत्‍या कर दी। इससे पहले साल 2012 में बोडो-मुस्लिम दंगों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख लोग विस्‍थापित हुए थे।

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ये है समझौते के अंदर

  • इस समझौते में असम में रहने वाले बोडो आदिवासियों को कुछ राजनीतिक अधिकार और समुदाय के लिए कुछ आर्थिक पैकेज मुहैया कराया जाएगा।
  • समझौते के बाद भारत सरकार को उम्मीद है कि एक संवाद और शांति प्रकिया के तहत उग्रवादियों का मुख्य धारा में शामिल करने का सिलसिला शुरू होगा।
  • ये समझौता मुख्य रूप से तीन पक्षों के बीच हुआ है, जिसमें केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड शामिल हैं।

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