मीडिया के लिए बॉम्बे HC की गाइडलाइंस- बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार का नाम ना करें उजागर

Edited By vasudha,Updated: 31 Jan, 2021 11:14 AM

bombay high court print and electronic media

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच नेरेप पीड़ितों की पहचान उजागर करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मीडिया संस्थानों के लिए दिशा निर्देश जारी किए।  कोर्ट ने कहा कि बलात्कार या बाल शोषण के शिकार पीडितों का असली नाम या उससे जुडी कोई भी...

नेशनल डेस्क:  बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने रेप पीड़ितों की पहचान उजागर करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मीडिया संस्थानों के लिए दिशा निर्देश जारी किए।  कोर्ट ने कहा कि बलात्कार या बाल शोषण के शिकार पीडितों का असली नाम या उससे जुडी कोई भी जानकारी को उजागर नहीं किया जा सकता । पीड़िता की पहचान का खुलासा कर उसके निजता के अधिकार का हनन माना जाएगा। 

 

माता-पिता का नाम भी नहीं छाप सकती मीडिया
औरंगाबाद बेंच ने कहा कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया इत्यादि  यह सुनिश्चित करे कि बलात्कार या बाल शोषण के शिकार लोगों की पहचान कर  उनके स्कूल, अभिभावकों के पते या नाम का विवरण प्रकाशित ना किया जाए। इसके साथ ही मीडिया को माता-पिता के नाम, उनके आवासीय या कार्यालय के पते प्रकाशित करने से भी रोक लगानी चाहिए।यहां तक कि अगर पीड़ित की मौत हो गई हो तब भी पीड़ित की नजदीकी रिश्तेदार या सेशंस जज की अनुमति के बिना नाम या पहचान उजागर नहीं किया जाए।

 

क्या है इसकी सजा 
बता दें कि बलात्कार की शिकार लड़की या महिला का नाम प्रचारित-प्रकाशित करने और उसके नाम को ज्ञात बनाने से संबंधित कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228 ए के तहत अपराध है। आईपीसी की धारा 376, 376ए, 376बी, 376सी, 376डी, 376जी के तहत केस की पीडिता का नाम प्रिंट या पब्लिश करने पर दो साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। कानून के तहत बलात्‍कार पीडि़ता के निवास, परिजनों, दोस्‍तों, विश्‍वविद्यालय या उससे जुड़े अन्‍य विवरण को भी उजागर नहीं किया जा सकता। 

 

मां का बयान कानून से उपर: कोर्ट
वहीं इससे पहले एक याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मां के बयान को कानून से भी ऊपर माना था। औरंगाबाद बेंच ने अपने एक फैसले में कहा कि एक मां के पास अपने बच्चे को समझने के लिए दैवीय शक्तियां होती है, अगर बच्ची की मां ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि उसकी बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है तो वह कानून से ऊपर है। कोर्ट ने कहा कि अपराध के समय पीड़िता करीब साढ़े चार साल की थी, इसलिए अपने साथ हुए जघन्य अपराध को बताने में असमर्थ थी। कोर्ट ने कहा कि मां का अपमानजनक बयान यह विश्वास दिलाने के लिए काफी है, उसकी बेटी के साथ बलात्कार हुआ था।
 

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