लॉकडाउन में भी यौन हिंसा का शिकार हुए बच्चे, 6 महीने में मिली 13,244 शिकायतें

Edited By vasudha,Updated: 22 Sep, 2020 04:35 PM

children who have been victims of violence even in lockdown

भारत में बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामले कम होनी की जगह बढ़ते जा रहे हैं, जो एक चिंता ​का विषय है। लॉकडाउन के दौरान भी ऐसे मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। राज्यसभा में सरकार ने जानकारी देते हुए बताया कि 1 मार्च, 2020 से 18 सितंबर, 2020 तक देश...

नेशनल डेस्क: भारत में बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामले कम होनी की जगह बढ़ते जा रहे हैं, जो एक चिंता ​का विषय है। लॉकडाउन के दौरान भी ऐसे मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। राज्यसभा में सरकार ने जानकारी देते हुए बताया कि 1 मार्च, 2020 से 18 सितंबर, 2020 तक देश भर से बाल पोर्नोग्राफ़ी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की 13,244 शिकायतों मिली हैं।

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महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने लिखित जवाब में बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अनुसार बाल यौन शोषण के 420 मामलों की जानकारी एनसीपीसीआर को 1 मार्च 2020 से 31 अगस्त 2020 तक प्राप्त हुई है। इसके साथ ही बाल यौन मामलों की 3,941 फोन कॉल मिलीं हैं। 

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समाजवादी पार्टी ने बच्चों को उत्पीड़न से बचाने की मांग करते हुए सुझाव दिया कि उनके बेहतर भविष्य के लिए देश में अगले दस वर्षों तक बच्चों पर केंद्रित योजना बनाई जानी चाहिए। सपा के रविप्रकाश वर्मा ने कहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन लागू किया गया था और इस दौरान स्कूल, कॉलेज बंद हो गए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय बाल आयोग ने सूचना दी है कि लॉकडाउन के शुरुआती दो चरणों के दौरान करीब 92,000 बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले सामने आए। यह अत्यंत दुखद एवं चिंतनीय है। 

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सपा नेता ने कहा कि राष्ट्रीय आंकड़े बताते हैं कि करीब 52 फीसदी बच्चे उत्पीड़न के शिकार होते हैं। ऐसे बच्चे बड़े हो कर भी अपना अतीत भूल नहीं पाते तथा अपमान एवं उपेक्षा के कारण लंबे समय तक अजीब से भय और मानसिक पीड़ा के साथ जीते हैं तथा आजीवन मनोविकार के शिकार रहते हैं। इससे न केवल बच्चों का भविष्य बर्बाद होता है बल्कि यह चक्र भी चलता रहता है और इसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ती है। वर्मा ने मांग की कि देश में ऐसे बच्चों को शुरू में ही पहचान कर उनका मनोविज्ञान उपचार आरंभ कर देना चाहिए। साथ ही उन्होंने मांग की कि स्थानीय निकायों को बच्चों को सुरक्षित माहौल देने के लिए सीधे तौर पर जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
 

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