92 साल के ताऊ ना होते तो शायद लौट ना पाता कमांडो, लोग बुलाते हैं इन्हे बस्तर का गांधी

Edited By vasudha,Updated: 09 Apr, 2021 10:01 AM

commandos bastar gandhi naxal attack

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले हफ्ते शनिवार को मुठभेड़ के बाद अपहृत किये गए ‘कोबरा'' कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास को सैकड़ों ग्रामीणों के सामने नक्सलियों द्वारा सुरक्षित रिहा कर दिया गया है। जवान को...

नेशनल डेस्क: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले हफ्ते शनिवार को मुठभेड़ के बाद अपहृत किये गए ‘कोबरा' कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास को सैकड़ों ग्रामीणों के सामने नक्सलियों द्वारा सुरक्षित रिहा कर दिया गया है।  जवान को सकुशल वापिस लाने के पीछे जो शख्स हैं, वह है 92 साल के ताऊ धर्मपाल सैनी जी । उन्हें बस्तर का गांधी भी कहा जाता है।  

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45 साल पहले आए थे यहां
खबरों की मानें तो मुख्यमंत्री भूपेश्वर बघेल ने ताऊ से कही राकेश्वर सिंह को सकुशल लाने का अनुरोध किया था। कहा जाता है कि वे कोई 45 साल पहले अपनी युवावस्था में बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ कर इतने विचलित हुए कि यहां आए और यहीं के हो गए। खबर के अनुसार दशहरा के आयोजन से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी। यह खबर उनके मन में घर कर गई। उन्होंने बस्तर की लड़कियों की हिम्मत और ताक़त को सकारात्मक बनाने की ठानी।

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नक्सली भी करते हैं  धर्मपाल सैनी का सम्मान
उनके डिमरापाल स्थित आश्रम में हजारों की संख्या में मेडल्स और ट्रॉफियां रखी हुई हैं।आश्रम की छात्राएं अब तक स्पोर्ट्स में ईनाम के रूप में 30 लाख से ज्यादा की राशि जीत चुकी हैं। धर्मपाल जी को बालिका शिक्षा में बेहतर योगदान के लिए 1992 में सैनी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। 2012 में 'द वीक' मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द इयर चुना था। श्री सैनी के  बस्तर में आने के बाद साक्षरता का ग्राफ 10 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत के करीब पहुंच चुका है। उनके विद्यालय की बच्चियां  एथलीट, डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में जा चुकी हैं । अब कोबरा कमांडो की इतने विपरीत हालातों में भी सुरक्षित आना बताता है कि धर्मपाल सैनी की पैठ और मान्यता केवल बस्तर के घरों में नहीं, बल्कि नक्सली भी उन्हें सम्मान देते हैं।  

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नक्सली हमले में 22 जवान हुए थे शहीद
​खबर तो यह भी है कि वे कई महीने से नक्सलियों से शांति वार्ता के लिए प्रयास कर रहे थे। वार्ता के शुरू होने से पहले केंद्रीय बलों ने यह दबिश दी और वार्ता को पटरी से नीचे उतार दिया। गौरतलब है कि इस महीने की तीन तारीख को राज्य के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर के सरहदी क्षेत्र के जोनागुड़ा और टेकलगुड़ा गांव के करीब नक्सली हमले में 22 जवानों की मृत्यु के बाद से लापता सीआरपीएफ की 210 कोबरा बटालियन के कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की वीरवार की शाम रिहाई हुई। मन्हास की सुरक्षित रिहाई से राज्य सरकार और सुरक्षा बल ने राहत की सांस ली है।

 

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