Edited By Utsav Singh,Updated: 08 Apr, 2024 12:40 PM
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बस्तर में जनसभा से पहले सोमवार को कहा कि उन्हें इस बारे में बात करनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने में वह विफल क्यों रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी आज बस्तर में एक जनसभा को...
नेशनल डेस्क : कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बस्तर में जनसभा से पहले सोमवार को कहा कि उन्हें इस बारे में बात करनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने में वह विफल क्यों रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी आज बस्तर में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर पोस्ट किया, "आज प्रधानमंत्री मोदी छत्तीसगढ़ के बस्तर जा रहे हैं। यहां भाजपा के व्यवहार से साफ़ पता चलता है कि कॉरपोरेट पूंजीपतियों के साथ उनकी मित्रता लोगों के प्रति उनके कर्तव्यों से कहीं अधिक गहरी है। "
हसदेव अरण्य वन को "राज्य का फेफड़ा" माना जाता है
उन्होंने कहा, "हमें उम्मीद है कि एक आदिवासी बहुल ज़िले में प्रधानमंत्री इस पर थोड़ी बात तो कर ही सकते हैं कि वह राज्य में आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने में क्यों विफल रहे हैं।" रमेश ने दावा किया, "घने, जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरण्य वन को "राज्य का फेफड़ा" माना जाता है। लेकिन आज यही हसदेव अरण्य वन भाजपा और उनके पसंदीदा मित्र, अडाणी एंटरप्राइजेज के कारण ख़तरे में है। जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी, तो जंगल की रक्षा के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने इस जंगल में 40 कोयला ब्लॉक रद्द कर दिए थे। जब भाजपा सत्ता में आई है, तब उन्होंने इस फ़ैसले को पलट दिया है। "
उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री और भाजपा इतनी बेरहमी से छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के जीवन को कैसे ख़तरे में डाल सकते हैं? कांग्रेस महासचिव ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा शुरू किए गए नगरनार स्टील प्लांट को पिछले साल अक्टूबर में बहुत धूमधाम से जनता को समर्पित किया। बस्तर के लोगों को आशा थी कि 23,800 करोड़ रुपये की लागत से बना यह विशाल प्लांट बस्तर के विकास को गति देगा और स्थानीय युवाओं के लिए हज़ारों अवसर पैदा करेगा। "
नया अधिनियम 2006 के वन अधिनियम को कमज़ोर करता है
उन्होंने दावा किया, " वास्तव में, भाजपा सरकार 2020 से इस संयंत्र का निजीकरण करने की योजना बना रही है। उसने 50.79 प्रतिशत की हिस्सेदारी अपने मित्रों को बेचने का फ़ैसला किया था। पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले, गृह मंत्री अमित शाह बस्तर आए थे और वादा किया था कि संयंत्र का निजीकरण नहीं किया जाएगा - लेकिन तथ्य यह है कि भाजपा सरकार ने अभी तक इस दावे को मान्य करने के लिए ठोस आश्वासन नहीं दिया है।" रमेश ने सवाल किया कि क्या भाजपा कोई सबूत दिखा सकती है कि उसने इस इस्पात संयत्र को अपने कॉरपोरेट मित्रों को बेचने का न कभी इरादा किया था और न ही कभी करेगी?
उन्होंने कहा, "2006 में, भारत के आदिवासी समुदायों का दशकों पुराना संघर्ष समाप्त हो गया जब कांग्रेस सरकार ने ऐतिहासिक वन अधिकार अधिनियम पेश किया। पिछले साल, जब प्रधानमंत्री मोदी ने वन संरक्षण संशोधन अधिनियम पेश किया, तो यह सारी प्रगति उलटी दिशा में हो गई। नया अधिनियम 2006 के वन अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करता है।" रमेश ने प्रश्न किया कि क्या प्रधानमंत्री कभी जल-जंगल-ज़मीन के नारे पर दिखावा करना बंद करेंगे और आदिवासी कल्याण के लिए सार्थक रूप से अपनी प्रतिबद्धता जताएंगे?