इसी मंदिर से मिला था कांग्रेस को चुनाव चिन्ह पंजा,मां के आशीर्वाद से सत्ता में लौटी थी इंदिरा गांधी

Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Oct, 2020 04:14 PM

congress got election symbol from this temple

बुंदेलखंड की वीरांगना नगरी झांसी स्थित महाकाली विद्यापीठ मंदिर की महिमा यूं पूरे क्षेत्र में विख्यात है और लोग इस शक्ति को मानते हैं। इस सिद्धपीठ की शक्ति को स्वीकारने और उसके आगे नतमस्तक होने वाले बड़े नामों में एक नाम देश की सबसे शक्तिशाली...

नेशनल डेस्कः बुंदेलखंड की वीरांगना नगरी झांसी स्थित महाकाली विद्यापीठ मंदिर की महिमा यूं पूरे क्षेत्र में विख्यात है और लोग इस शक्ति को मानते हैं। इस सिद्धपीठ की शक्ति को स्वीकारने और उसके आगे नतमस्तक होने वाले बड़े नामों में एक नाम देश की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री मानी जाने वाली इंदिरा गांधी का भी है जिन्होंने मुसीबत के समय माई के दर पर सिर झुकाया और मां का आशीर्वाद पाकर एक बाद फिर राजयोग प्राप्त किया। महाकाली विद्यापीठ मंदिर को सिद्धपीठ बनाने वाले मंत्रशास्त्री पंडित प्रेम नारायण त्रिवेदी के नाती और फिलहाल मंदिर के व्यवस्थापक और संचालक पंडित गोपाल त्रिवेदी ने शुक्रवार को मंदिर के गौरवशाली इतिहास से जुड़े इस वाकये को उजागर करते हुए बताया कि 1977 में सत्ता से बाहर होकर क्षीण हुई कांग्रेस में एक फिर से नवऊर्जा का संचार करने का उपाय खोजती इंदिरा गांधी भगवती मां काली के दरबार में सिर झुकाने पहुंची थी। 

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इसी मंदिर से मिला था कांग्रेस को चुनाव चिन्ह पंजा
माई का ही आशीर्वाद प्राप्त कर ही उन्होंने कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बदला था, आज कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘पंजा' इसी सिद्धपीठ की देन है। पंडित त्रिवेदी ने बताया कि उनके दादा जी पंड्त प्रेम नारायण त्रिवेदी ने झांसी में सबसे पहले 1965 में शक्ति मंडल की स्थापना की थी और मंदिर में लक्षचंडी यज्ञ कराया था। इसके बाद उनको मां भगवती की प्रेरणा हुई और उसी दौरान वह कांग्रेस के कद्दावर नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलापति त्रिपाठी के संपर्क में आए। धीरे-धीरे त्रिपाठी का इस मंदिर में आगमन प्रारंभ हुआ और इस दौरान उन्हें मेरे दादा जी, जो गुरुजी के नाम से विख्यात थे, उनके ज्ञान और सिद्धी के बारे में काफी गहनता से पता चला। कांग्रेसी नेता इंदिरा गांधी के करीबी नेताओं में से थे और 1977 में जब कांग्रेस निस्तेज हो सत्ता से बाहर हो गई थी। देश में कांग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर थी ऐसे में दोबारा कांग्रेस के वैभव को लौटाने को लेकर इंदिरा गांधी बेहद परेशान थीं। कांग्रेस को इन मुश्किल हालातों से बाहर निकालने के लिए इंदिरा गांधी ने कई शक्ति पीठों की यात्रा की और सिर झुकाया और इसी क्रम में कमलापति त्रिपाठी के माध्यम से उन्हें झांसी की सिद्धपीठ मां भगवती के मंदिर के बारे में जानकारी हुई और वह माई के दर्शनों के लिए 1978 में झांसी आई। 

 

मां ने दिया उम्मीद से ज्यादा
यूं तो इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री नहीं थी लेकिन फिर भी उनके साथ एक बड़ा लाव -लश्कर यहां आया लेकिन उस समय कांग्रेस का प्रभाव देश में काफी कमजोर हो चुका था। उन्होंने पं प्रेम नारायण त्रिवेदी से मुलाकात की। पंडित जी से मुलाकात के दौरान भी वह काफी पशोपेश में थीं और उन्होंने पूछा कि पंडित जी मुझे बताएं कि मेरे मन में क्या चल रहा है इस पर पं त्रिवेदी ने कहा कि आप मां भगवती से बहुत सूक्ष्म मांग रही हो और मैं आपके मुख को देखकर यह जान रहा हूं कि जो आप मांग रही हो उससे बहुत अधिक आपको मिलने वाला है। इस पर इंदिरा और अधीर हो उठीं और उन्होंने पंडित जी से कहा कि मैं नहीं समझ पार रही हूं कि मुझे क्या मिलने वाला है। तो पंडित जी ने कहा कि मैं आपके मुखमंडल से आपको देश का प्रधानमंत्री दोबारा बनते देख रहा हूं। पंडित जी की यह बात सुनकर वह अवाक रह गईं और कहा कि इस समय कांग्रेस के लिए देश में हालात बेहद विपरीत हैं और आप दोबारा प्रधामंत्री बनने की बात कह रहे हैं यह कैसे संभव है। पंडित जी ने कहा कि यह निश्चित होगा। मां भगवती की कृपा आप पर हैं और आप देश की सत्ता हासिल करेंगी और आपका वैभव पुन: लौटेगा। 

 

कांग्रेस को मिला पुर्नजीवन
कांग्रेस में पुर्नजीवन लाने के उपाय के बारे में इंदिरा ने काफी अनुरोध कर पूछा तो पंडित जी ने उन्हें मंदिर में एक विशेष पूजन कराने को कहा। पूजन के बाद पंडित जी ने इंदिरा को कहा कि मां भगवती प्रेरणा दे रहीं हैं कि आप अपना चुनाव चिन्ह बदलें। हो सकता है कि इससे कांग्रेस में नवऊर्जा का संचार हो और आपकी पार्टी को नवजीवन मिले। इसके बाद इंदिरा ने नया चुनाव चिन्ह के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मां का आशीर्वाद हाथ के रूप में होता है तो आप अब हाथ के निशान को ही पार्टी का चुनाव चिन्ह बनाए।  इंदिरा गांधी की अधीरता अब भी कम नहीं हुई और उन्होंने पंडित जी से फिर पूछा कि मां भगवती की कृपा मुझ पर हुई है इसका कोई संकेत होगा , यह हमें पता कैसे चलेता। इस पर पंडित जी ने बताया कि चुनाव परिणामों में जब तीन चौथाई से अधिक मत आपकी पार्टी को मिलने लगे तो समझ जाइएगा कि आप जो भगवती मां काली के दरबार से ले जा रहीं हैं उसे माई ने आपको वहां प्रदान कर दिया है और आपके वैभव के पुनआर्गमन का समय आ गया है। 

 

बहुमत के साथ जीती इंदिरा गांधी
मां का आशीर्वाद ले इंदिरा ने अगला लोकसभा चुनाव पार्टी के पुराने चिन्ह ‘‘ गाय बछडे '' के स्थान पर, नए चिन्ह ‘‘ हाथ '' के साथ लड़ा। चुनाव के शुरूआती परिणामों में स्थिति कांग्रेस के विपरीत नजर आने लगी और व्याकुल इंदिरा ने त्रिपाठी से इस बारे में बात की। जिसके बाद  त्रिपाठी ने पंडित जी ने बात की और उन्हें इंदिरा की व्याकुलता के बारे में बताया जिस पर पंडित जी ने उन्हें माई के चरणों का नारियल प्रदान किया और सब ठीक होने का आशीर्वाद दिया। बस उसी के बाद नए-नए क्षेत्रों के बैलेट पेपर के परिणाम सामने आने लगे और स्थिति कांग्रेस के पक्ष में बनती गई तथा आखिर में अभूतपूर्व बहुमत से कांग्रेस ने यह चुनाव जीता और इस अप्रत्याक्षित जीत के बाद एक बार फिर लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी भगवती मां काली के द्वार पर पहुंची। इस सिद्धपीठ और भगवती मां काली की अकथनीय शक्ति ने देश की सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली प्रधानमंत्री को अपनी शक्ति का एहसास कराया और उन्होंने दो बार मां के चरणों में शीश नमन किया दूसरी बार मां के आशीर्वाद के रूप में मिला ‘‘ पंजा '' उन्होंने मंदिर में भी चढ़ाया था। 

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